इच्छा
"इच्छा "
मेरी बस इतनी सी इच्छा ,
जीवन संग बिताऊँ।
पर क्या यह छोटी सी इच्छा,
उसको थी मंजूर।
मैंने तुमसे जब भी मांगा,
मांगा बस संग देदो।
पर क्या तुम इतनी सी इच्छा,
कर पाए मेरी पूरी।
मैंने सोचा एक इच्छा तुम,
सबकी करते पूरी।
पर मैंने न जाना यह कि,
कभी न होगी पूरी।।
- कुसुम ठाकुर -
6 टिप्पणियाँ:
भावपूर्ण!!
वाह जी बहुत सुंदर.
इच्छायें तो कभी भी किसी की पूरी नहीं होती। कोई न कोई रह जाती है मगर आपकी कविता वाली इच्छा का शिकवा सब से अधिक रहता है बहुत सुन्दर कविता है शुभकामनायें
बेह्तरीन भाव पुर्ण कविता-आभार
पता नहीं क्यूँ कुछ इच्छाएं वो कभी पूरी नहीं करता...
नीरज
हर किसी को मुकमल्ल जहाँ नहीं मिलता ...भावपूर्ण रचना
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