"मेरी प्रेम कहानी-मेड फॉर ईच अदर"
"मेरी प्रेम कहानी-मेड फॉर ईच अदर"
***राजीव तनेजा***
"हैलो"...
"मे आई स्पीक टू मिस्टर राजीव तनेजा?"
"यैस!...स्पीकिंग"
"सर!..मैँ 'रिया' बोल रही हूँ 'फ्लाना एण्ड ढीमका' बैंक से"
"हाँ जी!...बोलिए"
"सर!...वी आर प्रोवाईडिंग होम लोन ऐट वैरी रीज़नेबल रेटस"
"सॉरी मैडम!..आई एम नाट इंटरैस्टिड"
"सर!...बहुत अच्छी स्कीम दे रही हूँ आपको"...
"हाँ जी!...बताएँ"...
"सर!..हम आपको बहुत ही कम ब्याज पे लोन प्रोवाईड कराएँगे"...
"अभी कहा ना आपको...कि नहीं चाहिए"...
"सर!...पहले मेरी पूरी बात सुन लें"..
"प्लीज़"...
"अच्छा फटाफट बताएँ...मैँ रोमिंग में हूँ"...
"सर!...आप अगर हमारे से लोन लेते हैँ तो उसका सबसे बड़ा फायदा तो ये है कि समय पे किश्त ना चुका पाने की कंडीशन में हम आपके घर अपने गुण्डे और लठैत नहीं भेजते हैँ"...
"ओह!...अच्छा"..
"फिर तो ठीक है"...
"एक्चुअली!...मुझे गुण्डों से और उनकी मार-कुटाई से बड़ा डर लगता है"..
"यू नो!... एक बारी मेरे दोस्त कम...पड़ोसी कम...रिश्तेदार के घर पे काफी तोड़फोड़ और हंगामा कर गए थे"...
"सर!...वो उस कमीना एण्ड कुत्ता कम्पनी के रिकवरी एजेंट होंगे"...
"ये तो पता नहीं"...
"दरअसल!..वो हैँ ही बड़े कुत्ते लोग"..
"बिलावजह कस्टमरज़ को तंग करते हैँ"...
"ये भी नहीं जानते कि ग्राहक तो भगवान का रूप होता है और कोई अपनी मर्ज़ी से थोड़े ही फँसता है बैंको के जाल में"...
"ऊपर से बाज़ार में मन्दा-ठण्डा तो चलता ही रहता है"...
"जी"...
"थोड़ा सब्र तो उन्हें रखना ही चाहिए कि कोई उनके पैसे खा थोड़े ही जाएगा?"....
"ऐक्चुअली!...सच कहूँ तो कुछ लोगों को बेवजह फाल्तू के काम करने की आदत होती है"....
"इतनी सब मेहनत करने की ज़रूरत ही क्या है?"...
"हमारे बैंक से लोन लेने के बाद तो वैसे भी आदमी किश्तें चुकाते-चुकाते अपने ही कष्टों से मर जाता है"....
"ही...ही....ही"...
"क्या?"...
"प्लीज़!...आप माईन्ड ना करें"...
"आप इतना सब उल्टा-सीधा बके चली जा रही हैँ और मुझे कह रही हैँ कि माईंड ना करें?
"एक्चुअली!...इट वाज़ से पी.जे"..
"पी.जे माने?"...
"प्योर जोक...प्रैक्टिकल जोक"...
"ओह!...फिर तो आप बड़े ही खतरनाक जोक मारती हैँ....मिस...पिंकी"....
"ये तो सर!...कुछ भी नहीं..मेरे जोक्स के आगे तो बड़े-बड़े हिल जाया करते हैँ"...
"ओह!...रियली?"...
"जी"...
"और सर!...मेरा नाम 'पिंकी' नहीं बल्कि 'रिया' है"...
"ओह!...फिर तो आपने ठीक किया"....
"क्या ठीक किया...सर?"...
"यही...कि अपना नाम बता के"...
"वर्ना खामख्वाह कंफ्यूज़न क्रिएट होता रहता"...
"किस तरह का कंफ्यूज़न...सर?"..
"एक्चुअली!..फ्रैंकली स्पीकिंग...इस तरह के दो-चार फोन तो रोज़ ही आ जाते हैँ ना"...
"तो?"...
"तो सबके नाम याद करने में अच्छी-खासी मुश्किल पेश आ जाया करती है"...
"सर!...जब आप हमसे एक बार लोन ले लेंगे ना...तो फिर कभी भी मेरा नाम नहीं भूल पाएंगे"...
"और वैसे भी मैँ भूलने वाली चीज़ नहीं हूँ ...सर"...
"जी!...वो तो आपकी बातों से ही मालुम चल गया है"...
"क्या मालुम चल गया है...सर?"...
"यही कि आप बातें बड़ी दिलचस्प करती हैँ"...
"थैंक्स फॉर दा काम्प्लीमैंट...सर"...
"एक्चुअली!...फ्रैंकली स्पीकिंग..यू हैव ए वैरी..वैरी स्वीट एण्ड सैक्सी वॉयस"...
"झूठे!...
फ्लर्ट करना तो कोई आप मर्दों से सीखे"..
"प्लीज़!...इसे झूठ ना समझें"...
"सच में!...आपकी आवाज़ बड़ी ही मीठी और सुरीली है"
"तुम्हारी कसम"..
"अच्छा जी!...अभी मुझसे बात करते हुए सिर्फ आपको यही कोई दस-बारह मिनट हुए हैँ और आप मेरी कसमें भी खाने लगे"...
"एक्चुअली!...रिया...
वो क्या है कि किसी को समझने में पूरी उम्र बीत जाया करती है और किसी को जानने के लिए सिर्फ चन्द सकैंड ही काफी होते हैँ"...
"यू नो!...जोड़ियाँ ..ऊपर स्वर्ग से ही बन कर आती हैँ"...
"जी!..बात तो आप सही कह रहे हैँ"...
"सर!...वैसे आप रहते कहाँ हैँ?"...
"जी!...शालीमार बाग"...
"वहाँ तो प्रापर्टी के बहुत ज़्यादा रेट होंगे ना सर?"...
"जी!...यही कोई सवा लाख रुपए गज के हिसाब से सौदे हो रहे हैँ आजकल और अभी परसों ही डेढ सौ गज में बना एक सैकैंड फ्लोर बिका है पूरे अस्सी लाख रुपए का"
"गुड!...मैँ भी सोच रही थी कोई सौ-पचास गज का प्लाट ले के डाल दूँ"...
"आने वाले टाईम में कुछ ना कुछ मुनाफा दे के ही जाएगा"...
"बिलकुल सही सोचा है आपने"...
"किसी भी और चीज़ में इनवैस्ट करने से अच्छा है कि कोई प्लाट या मकान खरीद के रख लिया जाए"..
"लेकिन मुझे ये फ्लोर-फ्लार का चक्कर बेकार लगता है"...
"ये भी क्या बात हुई कि नीचे कोई और रहे और ऊपर कोई और?"...
"ऊपर छत पे सर्दियों में धूप सेकनी हो या फिर पापड़-वड़ियाँ सुखाने हों तो बस दूसरों के मोहताज हो गए हम तो"...
"जी!..ये बात तो है".
"इसमें कहाँ की अक्लमन्दी है कि ज़रा-ज़रा से काम के लिए दूसरों को डिस्टर्ब कर उनकी घंटी बजाते रहो"...
"जी!...बिलकुल सही कहा सर आपने"...
"सर!...आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूं?"...
"अरे यार!...इसमें बुरा मानने की क्या बात है?"...
"हक बनता है आपका"..
"आप एक-दो क्या पूरे सौ सवाल पूछें तो भी कोई गम नहीं"..
"ये नाचीज़!..आपकी सेवा में हमेशा हाज़िर रहेगा"...
"टीं...टीं...बीप...बीप......बीप"...
"ओह!...लगता है कि बैलैंस खत्म होने वाला है"..
"मैँ बस दो मिनट में ही रिचार्ज करवा के आपको फोन करता हूँ"...
"हाँ!...चिंता ना करें मैँ नम्बर सेव कर लूँगा"..
"नहीं!...आप रहने दें"...मैँ ही कर लूंगी"..
"हमें वैसे भी अपना दिन का टॉरगैट पूरा करना होता है"..
"ओ.के"...
(दस मिनट बाद)
"हैलो!..राजीव?"...
"हाँ जी!..."
"और सुनाएँ!..क्या हाल-चाल हैँ?"...
"बस!...क्या सुनाएँ?..कट रही है जैसे के तैसे"..
"ऐसे क्यों बोल रही हो यार?"...
"बस ऐसे ही!...कई बार लगता है कि जैसे जीवन में कुछ बचा ही नहीं है"...
"चिंता ना करो!...मैँ हूँ ना?"...
"सब ठीक हो जाएगा"..
"कुछ ठीक नहीं होने वाला है"...
"थोड़ी-बहुत ऊँच-नीच तो सब के साथ लगी रहती है"...
"इनसे घबराने के बजाए इनका डट कर मुकाबला करना चाहिए"...
"जी"...
"खैर!...आप बताएँ!...क्या पूछना चाहती थी आप?"...
"नहीं!...रहने दें...फिर कभी...किसी अच्छे मौके पे"...
"आज से...अभी से अच्छा मौका और क्या होगा?"...
"आज ही आपसे पहली बार बात हुई और आज ही आपसे दोस्ती हुई"...
"और वैसे भी दोस्ती में कोई शक...कोई शुबह नहीं रहना चाहिए"...
"जी!...सही कहा आपने"...
"सर!...मैँ ये कहना चाहती थी कि...
"पहले तो आप ये सर...सर लगाना छोड़ें"...
"एक्चुअली!...टू बी फ्रैंक...बड़ा ही ऑकवर्ड और अनडीसैंट सा फील होता है जब कोई अपना इस तरह फॉरमैलिटी भरे लहज़े में बात करे"...
"आप मुझे सीधे-सीधे राजीव कह के पुकारें"...
"जी!...सर...ऊप्स सॉरी राजीव"...
"हा हा हा हा"...
"एक्चुअली क्या है 'राजीव' कि मैँने कभी किसी से ऐसे ओपनली फ्री हो के बात नहीं करी है"...
"हमें हमारे प्रोफैशन में सिखाया भी यही गया है कि सामने वाला बन्दा कैसा भी घटिया हो और कैसे भी...कितना भी रूडली बात करे लेकिन हमें अपनी पेशेंस...अपने धैर्य को नहीं खोना है और अपने चेहरे पे हमेशा मुस्कान बना के रखनी है"...
"हमारी आवाज़ से किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि हमारे अन्दर क्या चल रहा है"...
"यू नो प्रोफैशनलिज़म"...
"सही ही है..अगर आप लोग अपने कस्टमरज़ के साथ बतमीज़ी के साथ पेश आएँगे तो अगला पूरी बात सुनने के बजाए झट से फोन काट देगा"...
"वोही तो"...
"हाँ तो आप बताएँ कि आप क्या पूछना चाहती थी?"...
"राजीव!...किसी और दिन पे क्यों ना रखें ये टॉपिक?...
"देखो!...जब मैँने तुम्हें दिल से अपना मान लिया है तो हमारे बीच कोई पर्दा ...कोई दिवार नहीं रहनी चाहिए"..
"जी"...
"तो फिर पूछो ना यार...क्या पूछना है आपको?"...
"मैँ तो सिम्पली बस यही जानना चाहती थी कि यहाँ शालीमार बाग में आपका अपना मकान है या फिर किराए का?"...
"किराए का?"...
"यार!...ये किराया-विराया देना तो मुझे शुरू से ही पसन्द नहीं"...
"इसलिए तो पाँच साल पहले पिताजी का जमा-जमाया टिम्बर का बिज़नस छोड़ मैँ अमृतसर से भाग कर दिल्ली चला आया कि कौन हर महीने किराया भरता फिरे?"...
"और आज देखो!...अपनी मेहनत...अपनी हिम्मत से मैँने सब कुछ पा लिया है...ये मकान...ये गाड़ी"...
"ओह!..तो इसका मतलब खूब तरक्की की है जनाब ने दिल्ली आने के बाद"...
"बिलकुल!...लाख मुश्किलें आई मेरे सामने लेकिन ज़मीर गवाह है मेरा कि मैँने कभी हार नहीं मानी और कभी ऊपरवाले पर अपने विश्वास को नहीं खोया"...
"उसी ने दया-दृष्टि दिखाई अपनी"...
"वर्ना!...मैँ तो कब का थक-हार के टूट चुका होता और आज यहाँ दिल्ली में नहीं बल्कि वापिस बैक टू दा पवैलियन याने के अमृतसर लौट गया होता"...
"यहाँ...इस निष्ठुर और अनजान शहर में मेरा है ही कौन?"...
"शश्श!...ऐसे नहीं बोलते"...
"चिंता ना करो"....
"अब मैँ हूँ ना तुम्हारे साथ"...
"तुम्हारे हर दुख..हर दर्द की साथिन"...
"वैसे कितने कमरे हैँ आपके मकान में?"..
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"कुछ नहीं!...वैसे ही नॉलेज के लिए पूछ लिया"..
"पूरे छै कमरों का सैट हैँ"......
"छै कमरे?"......
"वाऊ!....दैट्स नाईस(Wow!...That's Nice)....
"लेकिन आप इतने कमरों का क्या करते हैँ?"...
"क्या बीवी...बच्चे?"
"कहाँ यार?...अभी तो मैँ कुँवारा हूँ"...
"Wow!..
"व्हाट ए लवली को इंसीडैंस...मैँ भी अभी तक कुँवारी हूँ"...
"फिर तो खूब मज़ा आएगा जब मिल बैठेंगे कुँवारे दो"...
"जी बिलकुल"..
"लेकिन आप अकेले इतने कमरों का करते क्या हैँ?"...
"दो तो मैँने अपने पास रखे हैँ और एक मेहमानों के लिए"...
"और बाकी के तीन कमरे?"...
"बाकी के तीन कमरे?"...
"हाँ!...याद आया"...
"वो क्या है कि कई बार मैँ अकेला बोर हो जाता हूँ इसलिए फिलहाल किराए पे चढा रखे हैँ"...
"ठीक किया"...
"अपना थोड़ी-बहुत आमदनी भी हो जाती होगी और अकेले बोर होने से भी बच जाते होगे"..
"जी"...
"लेकिन अब चिंता ना करें...मैँ आपको बिलकुल भी बोर ना होने दूंगी"...
"जब भी..कभी भी ज़रा सा भी लगे कि आप बोर हो रहे है तो आप कभी भी..किसी भी वक्त मुझे फोन कर दिया करें"...
"मेरा वायदा है आपसे कि आप मेरी कम्पनी को पूरा एंजाय करेंगे"...
"जी...ज़रूर"...
"शुक्रिया"....
"दोस्ती में...प्यार में...नो थैंक्स...नो शुक्रिया"...
"ध्यान रहेगा ना?"...
"जी!...ज़रूर"....
"ओ.के"...
"यार!...बातों ही बातों में मैँ ये पूछना तो भूल ही गया कि आप कहाँ रहती हैँ?"...
"घर में कौन-कौन है वगैरा...वगैरा"...
"अब क्या बताऊँ? "...
"घर में माँ-बाप और बस हम तीन बहनें"....
"सबसे छोटी...सबसे लाडली और सबसे नटखट मैँ ही हूँ"...
"और घर?"...
"रहने को फिलहाल मैँ जहाँगीर पुरी में रह रही हूँ"...
"वो जो साईड पे लाल रंग के फ्लैट बने हुए हैँ?"...
"नहीं यार!...जे.जे.कालौनी में रह रही हूँ"...
"गुस्सा तो मुझे बहुत आता है अपने मम्मी-पापा पर कि उन्हें यही सड़ी सी कालौनी मिली थी रहने के लिए लेकिन क्या करूँ माँ-बाप हैँ मेरे"...
"बचपन से पाला-पोसा..पढाया-लिखाया उन्होंने"...
"उनके सामने फाल्तू बोलना ठीक नहीं"...
"जी"...
"खैर !..आप बताएँ...क्या-क्या आपकी हाबिज़ हैँ?"...
"हाबिज़ माने?"...
"क्या-क्या आपके शौक हैँ?"..
"ओह!..अच्छा"...
"मुझे बढिया खाना...बढिया पहनना....बड़े-बड़े होटलों में घूमना-फिरना...स्वीमिंग करना...फिल्में देखना और फाईनली देर रात तक डिस्को में अँग्रेज़ी धुनों पे नाचना-गाना पसन्द है"...
"गुड"...
"म्यूज़िक तो मुझे भी बहुत पसन्द है"....
"लेकिन मुझे ये रीमिक्स वाले गाने तो बिलकुल ही पसन्द नहीं"...
"ये क्या बात हुई कि मेहनत करनी नहीं...रियाज़ करना नहीं और बैठ गए पहले से रेकार्ड की हुई रैडीमेड धुनों को कि चलो..इनको मिक्स करके एक नया रीमिक्स बनाएँ"...
"अरे!...गीत-संगीत का इतना ही शौक है तो उठाओ हॉरमोनियम और बजाओ दिल से सारंगी"...
"नई धुन.....नया गीत तैयार ना हो तो कहना"...
"लगता है कि आपको संगीत की...सुरों की काफी समझ है"...
"अरे!..म्यूज़िक तो मेरी जान है...मेरा पैशन है और कई इंस्ट्रूमैंट्स मैँ खुद बजाना जानता हूँ"...
"Wow!...That's nice"...
"जब तक सुबह उठ के मैँ घंटे दो घंटे रियाज़ ना कर लूँ...चैन ही नहीं पड़ता"...
"गुड"...
"संगीत के अलावा और क्या-क्या शौक हैँ आपके"...
"म्यूज़िक के अलावा मुझे हार्स राईडिंग पसन्द है...लॉग ड्राईव....गैम्ब्लिंग पसन्द है...हॉलीवुड मूवीज़ पसन्द हैँ"...
"इसके अलावा और भी बहुत कुछ पसन्द है...जब मिलोगी...तब बताऊँगा"...
"ओ.के"...
"तो फिर कब मिल रही हैँ आप?"...
"देखते हैँ"...
"बताओ ना!...प्लीज़"...
"क्या बात है?...बड़े बेताब हुए जा रहे हो मुझसे मिलने को"...
"ऐसा क्या है मुझमें?"...
"और नहीं तो क्या?....जिसकी आवाज़ ही इतनी खूबसूरत हो..उसे पर्सनली मिलना भी तो चाहिए"...
"पता तो चले कि ऊपर वाले ने मेरी किस्मत में कौन सा नायब तोहफा लिखा है?"...
"इतना ऊपर ना चढाओ मुझे कि कभी नीचे उतर ही ना पाऊँ"...
"बताओ ना यार!...कब मिल रही हो?"...
"ओ.के....कल तो मुझे शापिंग करने करौल बाग जाना है"...
"क्यों ना आप भी मेरे साथ चलें"...
"जी...बिलकुल"...
"आप बताएँ..कितने बजे मिलेंगी?"....
मैँ आपको ..आपके घर से ही पिक कर लूँगा"...
"नहें!...आस-पड़ोस वाले फाल्तू बाते बनाएंगे...क्या फायदा?"...
"फिर?"...
"सुबह मुझे अपनी सहेली के साथ शालीमार बाग में ही काम है...वहीं से निबट के मैँ आपके घर आ जाऊँगी"...
"कोई प्राब्लम तो नहीं है ना आपको?"..
"नहीं!...मुझे भला क्या प्राब्लम होनी है?"...
"मैँ तो वैसे भी अकेला रहता हूँ"...
"गुड!...यही ठीक रहेगा"....
"मैँ आपके पास सारे काम निबटा के ...यही कोई बारह-साढे बारह तक पहुँच जाऊँगी"...
"ओ.के"...
"उसके बाद घंटे दो घंटे सुस्ता के तीन-चार बजे तक चलेंगे शापिंग के लिए"...
"तब तक मौसम भी सुहाना हो जएगा"...
"यू नो!..मुझे तो धूप में घूमना-फिरना बिलकुल भी पसन्द नहीं"...
"बेकार में मज़े-मज़े में कांप्लैक्शन खराब हो जाए...क्या फायदा?"..
"जी"...
"तो फिर कल मिलते हैँ"...
"ओ.के...मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा"...
"मुझे भी"...
"अपना ध्यान रखना"...
"आप भी"...
"ओ.के...बाय"...
"बाय...ब्बाय"...
"ट्रिंग..ट्रिंग"...
"हैलो"...
"अरे!...आपने अपना पता तो बताया ही नहीं".....
"कैसे पहुँचूगी आपके घर?"...
"ओह!...बातों-बातों में ध्यान ही नहीं रहा"...
"आप नोट करें"...
"हाँ!..एक मिनट"...
"हाँ जी!...बताएँ"...
"आपने ये केला गोदाम देखा है शालीमार का?"...
"जी!...अच्छी तरह"..
"बस!...उसी के साथ ही है"...
"क्या BK-1 Block में?"...
"नहीं...नहीं...उस तरफ नहीं"...
"दूसरी तरफ तो A-Pocket है"...
"हाँ!...उसी तरफ"...
"इसका मतलब AA Block है आपका"...
"नहीं यार"...
"फिर कहाँ?"...
"AA Block के साथ वो फॉर्टिस वालों का अस्पताल बन रहा है ना?"...
"जी"...
"बस!...उसी के साथ जो झुग्गी बस्ती है"...
"हाँ!..है"..
"बस!...उसी में...उसी में घर है मेरा"...
"क्या?"...
"जी"...
"लेकिन तुम तो कह रहे थे कि अपना मकान है छै कमरों का"...
"अरे!...दिल्ली में अपनी झुग्गी होना मतलब अपना मकान होना ही है"...
"पूरी छै झुग्गियों पे कब्ज़ा है मेरा"...
"और उन्हीं में से तीन किराए पे उठाई हुई होंगी?"..
"जी"...
"तुम तो ये भी कह रहे थे कि अमृतसर में तुम्हारे पिताजी का टिम्बर का बिज़नस है?"...
"हाँ!...है ना"...
"वहीं सदर थाने के पास वाले चौक पे 'दातुन' बेचने का बरसों पुराना ठिय्या है हमारा"...
"क्या?"...
"और ये जो तुम म्यूज़िक और घुड़ सवारी के शौक के बारे में बता रहे थे....वो सब भी क्या धोखा था?"...
"जानू!...ना मैँने तुम्हें पहले कभी झूठ कहा और ना ही अब कहूँगा"...
"ये सच है कि म्यूज़िक का मुझे बचपन से बड़ा शौक है और इसी वजह से मैँने दिल्ली आने के बाद शादी-ब्याहों में ढोल बजाने का काम शुरू किया"...
"ओह!...इसका मतलब ...तभी बैंड-बाजे वालों की सोहबत में रहते हुए कई तरह के म्यूज़िक इंस्ट्रूमैंटस को बजाना सीख लिया होगा? जैसे पीपनी...सारंगी...बाँसुरी वगैरा...वगैरा"...
"जी"...
"और ये घुड़सवारी?"...वो भी आपने वहीं से सीखी?"...
"जी!...वो दर असल क्या है कि बैंड-बाजे वालों के यहाँ घोड़ी वाले भी आते रहते थे"...
"तो उनसे ही ये हुनर सीख लिया"...
"जी"...
"ओ.के"...
"तो फिर कल कितने बजे आ रही हो?"...
"आ रही हूँ?"...
"सपने में भी ऐसे ख्वाब ना देखिओ"...
"क्यों?...क्या हुआ?"...
"स्साले!...कंगले की औलाद"...
"मेरे साथ डेट पे जाना चाहता है?"...
"स्साले!..ऐसी-ऐसी जगह चक्कू-छुरियाँ पड़वाऊँगी कि ना किसी को दिखाते बनेगा और ना किसी को बताते बनेगा"...
"एक मिनट!...चुप्प...बिलकुल चुप्प"...
"मुझे इतना बोल रही है तो तू कौन सा आसमान से टपकी है?"...
"जानता हूँ!...अच्छी तरह जानता हूँ"...
"जहाँ तू रहती है ना?...वहाँ की एक-एक गली से...एक-एक चप्पे से वाकिफ हूँ मैँ"...
"तुम्हारे यहाँ किसी की भी सौ रुपए से ज़्यादा की औकात नहीं है"...
"आऊँगा...आऊँगा तेरी ही गली आऊँगा और तुझसे नहीं बल्कि तेरी पड़ौसन के साथ रात भर रंगरलियाँ मनाऊँगा"
उखाड़ ले इय्य्यो मेरा!...जो उखाड़ना हो"...
"शटअप!...यू ब्लडी @#$%ं&*
"भाड़ में जाओ"....
""यू ऑल सो शटअप... ब्लडी @#$%ं&%#
"गो टू हैल"...
***राजीव तनेजा***
Rajiv Taneja
Delhi,India
http://hansteraho.blogspot.com
+919810821361
+919896397625
7 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब राजीव जी
बधाई हो इस मोड के लिये !
क्या राजीव भाई आपभी हद् ही करते। कम से कम एक दो बार डेट पर जाने के बाद सच्चाई बताते।
वाह राजीव जी आज तो हकीकत मे मौज मस्ती-डेट पे जाने की इच्छा हो रही है-जाता हुं जे जे कालोनी से होते हुए एक चक्कर काट ही आता हुं।-मजा आ गया- हा हा हा लेकिन आपने बड़ी जल्दी ही मामला रफ़ा दफ़ा कर दिया।
ये पहेली के चक्कर में पिछले आठ दस दिन से जो मिस कर रहा था, आपने एक ही मास्टर स्ट्रोक में उस कमी को पूरा कर दिया....साथ ही आपने अनचाही कॉल्स से कैसे मौज ली जाती है, वो रास्ता भी दिखा दिया...इस व्यंग्य को पढ़कर... ओए लकी, लकी ओए.... फिल्म का वो दृश्य याद आ गया जिसमें किशोर लकी स्कूटर न दिलाने पर पिता परेश रावल से कहता है....मैं वी किन कंगलया दे घर पैदा हो गया....
जय हिंद...
बहुत खूब राजीव जी !
बढ़िया लिखा है रोचकता अंत तक बनी रही.....
प्रसंग काफी रोचक था, लेकिन यह सच्चाई बयान करता है।
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