tag:blogger.com,1999:blog-18005788189162148152024-03-14T02:36:31.663+05:30चर्चा पान की दुकान परपान की दुकान आम चर्चाओं का एक केन्द्रब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comBlogger102125tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-5315241609524356692022-02-16T18:21:00.001+05:302022-02-16T18:21:53.275+05:30हँसी की एक डोज़- इब्राहीम अल्वी <div>कई बार कुछ कवि मित्र मुझसे अपनी कविताओं के संग्रह को पढ़ने का आग्रह करते हैं मगर मुझे लगता है कि मुझमें कविता के बिंबों..सही संदर्भों एवं मायनों को समझने की पूरी समझ नहीं है। इसलिए आमतौर पर मैं कविताओं को पढ़ने से बचने का थोड़ा सा प्रयास करता हूँ। हालांकि कई बार मैंने खुद भी कुछ कविताओं जैसा कुछ लिखने का प्रयास भी किया मगर जल्द ही समझ आ गया कि फिलहाल तो कविताएँ रचना या उन पर कुछ लिखना मेरे बस की बात नहीं। ऐसे में अगर कोई मित्र स्नेहवश अपना कविताओं का संकलन मुझे भेंट करता है तो मैं सकुचाहट भरी सोच में डूब जाता हूँ कि उस पर क्या लिखूँ? </div><div><br></div><div>साथ ही खुद के एक हास्य व्यंग्यकार होने के नाते अगर कहीं मुझे हास्य या व्यंग्य से सराबोर रचनाएँ दिखें भले ही वह गद्य या फिर पद्य शैली में हों तो मेरा मन खुद ही उन्हें आत्मसात करने के लिए उतावला हो उठता है। अब ऐसे में जब बड़े प्रेम से मेरे कवि मित्र इब्राहीम अल्वी जी ने अपनी हास्य कविताओं का संकलन 'हास्य की एक डोज़' मुझे प्रेम से भेंट किया तो मैं खुद को इसे यथाशीघ्र पढ़ने से रोक नहीं सका।</div><div><br></div><div>आइए..अब बात करते हैं इस मज़ेदार काव्य संकलन की तो इस संकलन की कविताओं में इब्राहीम जी अपनी कविताओं के ज़रिए ऐसी ऐसी चीज़ों..बातों की कल्पना कर लेते हैं जिनसे हमारा रोज़ का वास्ता होते हुए भी हम उनके बारे में ऐसा कुछ कभी सोच नहीं पाते।</div><div><br></div><div>जैसे कि आमतौर पर कहा जाता है कि..</div><div><br></div><div>"जहाँ ना पहुँचे रवि..वहाँ पहुँचे कवि।"</div><div><br></div><div>अर्थात जहाँ रवि अर्थात सूर्य की रौशनी भी नहीं पहुँच पाती, वहाँ भी कवि अपनी कल्पना की उड़ान के ज़रिए आसानी से पहुँच जाता है। इसी की एक बानगी के रूप में इब्राहीम जी ने पक्षियों..जानवरों इत्यादि से ले कर रोज़मर्रा की खानपान की चीज़ों एवं सब्ज़ियों जैसे आलू..टमाटर..प्याज़..नींबू..अण्डे..</div><div> मुर्गे तक को नहीं बख्शा।</div><div><br></div><div>उनकी किसी कविता में वे ईश्वर से उन्हें इन्सान के बजाय कुत्ता या फिर पक्षी बनाने की प्रार्थना करते दिखाई देते हैं जबकि वे उसे मनुष्य जन्म दे कर कवि बनाना चाहते हैं। उनकी किसी कविता में तनावमुक्त रहने के लिए सुबह शाम हँसी की डोज़ लेने की बात की जाती दिखाई देती है। तो किसी अन्य कविता में वे मज़ेदार ढंग से दिन प्रतिदिन महँगे होते प्याज़ की व्यथा का जिक्र करते नज़र आते हैं।</div><div><br></div><div>उनकी किसी अन्य कविता में भैंसे की माँ का दूध याने के भैंस का दूध पीने की वजह से भैंसे और इन्सान में आपस में भाई भाई का संबंध स्थापित किया जा रहा है। तो किसी अन्य कविता में शरीर के बाकी अंगों की पेट के प्रति ईर्ष्या से तंग आ जब वह भूख हड़ताल कर बैठता है। किसी अन्य कविता में गधा इलैक्शन लड़ने की सोच रहा है तो कहीं किसी अन्य कविता में वे बन के बुद्धू..लौट के फिर वापिस घर को आ रहे हैं। किसी कविता में उन रिटायर हो चुके बूढ़ों की व्यथा झलकती है जिनकी अब उनकी अपनी औलादें ही इज़्ज़त नहीं करती। तो किसी अन्य कविता में बुढ़ापे में बत्तीसी निकलवाने के बाद वे बोलना कुछ चाहते हैं मगर अर्थ का अनर्थ करते हुए बोला कुछ और जा रहा है।</div><div><br></div><div>एक अन्य कविता में मुँह के अंदर बत्तीस दाँत, जीभ को ताना दे रहे हैं कि उसकी हरकतों की वजह से उन्हें बहुत दिक्कत होती है। तो किसी अन्य कविता में मोटे आदमी की दिक्कतों का मज़ेदार ढंग से वर्णन किया गया है। किसी कविता में बुर्के वाली मोहतरमा के साथ बस में बैठ वे इतरा रहे हैं तो कहीं किसी कविता में वे फेसबुक पर चैटिंग और फिर डेट का प्लान बना रहे हैं। किसी कविता में कागज़ के माध्यम से वे जीवन में डॉक्युमेंट्स की अहमियत बता रहे हैं। तो किसी अन्य कविता में वे रोड एक्सीडेंट में घायल को अस्पताल पहुँचा कर अब खुद पछता रहे हैं कि पुलिस अब उन्हें खामख्वाह में परेशान कर रही है।</div><div><br></div><div>उनकी किसी कविता में जहाँ दिन प्रतिदिन महँगी होती दालों पर कटाक्ष किया जाता नज़र आता है। तो वहीं किसी अन्य कविता में एक नवीन प्रयोग के तौर पर पेड़ों के कटने से होने वाले नुकसानों को बताने के लिए वे एक साथ कई बाल कहानियों के संदर्भ भी इस बात से जोड़ते नज़र आते हैं। इसी संकलन की किसी कविता में वे अपनी कविता के ज़रिए भिखारी और नेता में समानता स्थापित करते दिखाई देते हैं। तो किसी अन्य कविता में गाँव के सीधे साधे भोले जीवन और शहर के निष्ठुरता भरे जीवन की बात कर उनमें ज़मीन आसमान के फ़र्क को बताते दिखाई देते हैं। </div><div><br></div><div>उनकी किसी कविता देश में भिखारियों की बढ़ती सँख्या के प्रति चिंता जताई जाती दिखाई देती है। तो किसी अन्य कविता में पत्नी के गुज़र जाने के बाद उसकी याद में तड़पता पति दिखाई देता है। किसी कविता में वे शहर के प्रदूषण भरे जीवन और गाँव के सादे जीवन के बीच का फ़र्क दिखाते नज़र आते हैं तो किसी अन्य कविता में मूँछों की महिमा का वर्णन पढ़ने को मिलता है। किसी कविता में आदमी की एक्सपायरी डेट निकलती दिखाई देती है तो किसी कविता में डॉक्टरों द्वारा लड़की का दिल पहलवान के दिल से बदला जाता दिखाई देता है । किसी अन्य कविता में वे पत्नी और माँ के बीच मंझधार में फँसे दिखाई देते हैं कि पत्नी से पहले प्रेम करें या फिर माँ की सेवा पहले करें।</div><div><br></div><div>उनकी किसी कविता में करुणात्मक ढंग से सड़क पर करतब दिखाने वाले छोटे बच्चों के माध्यम से देश के विकास पर सवाल उठाया जाता नज़र आता है। तो किसी अन्य कविता में मोबाइल जैसी तकनीक के आ जाने से डाक और चिट्ठियों के लुप्तप्राय होने या उनकी महत्ता के कम होने अथवा खत्म होने की बात उठायी जाती दिखाई देती है। </div><div><br></div><div>इसी संकलन की किसी कविता में देश की अर्थव्यवस्था के कैशलैस होने से नक़द रुपया इस्तेमाल करने के आदि लोगों को इससे ही रही परेशानी की बात की गयी है। तो किसी अन्य कविता में जीभ और आँखों की बात की गयी है कि इनके सही एवं संयमित इस्तेमाल से जहाँ एक तरफ़ बिगड़े काम बन जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ इनके बेलगाम होने से बने हुए काम भी बिगड़ जाते हैं। एक अन्य कविता घर छोड़, परदेस में काम कर पैसा कमाने गए उन लोगों की बात करती है कि वे ना घर के..ना घाट के अर्थात कहीं के नहीं रहते।</div><div><br></div><div>इसी संकलन की किसी अन्य कविता में भारत के विभिन्न इलाकों के विभिन्न रहन सहन के तौर-तरीकों और खानपान की भिन्नताओं से ही देश के सौंदर्य..एकता और अखंडता की बात की गई है। तो किसी अन्य कविता में शहर के शोर-शराबे और तौर तरीकों से दूर पुनः वापस गाँव लौट जाने की बात की गई है। एक अन्य कविता शारीरिक क्रियाओं जैसे खांसी और उबासी की बात करती है कि वे किसी खास इलाके..तबके या धर्म की मोहताज नहीं है। </div><div><br></div><div>किसी कविता में शारीरिक कमी के चलते पैदा हुए लोगों अर्थात किन्नरों की व्यथा कही गई है। तो किसी कविता में बढ़ती महंगाई की बात तो किसी कविता में इस बात की तस्दीक की गई है कि बढ़ती उम्र के साथ सबके पेंच ढीले हो जाते हैं। इसी संकलन की किसी अन्य रचना में गाँवों के शहरीकरण के बाद आए बदलावों की बात की गयी है। किसी रचना में अन्दर की बात कह इब्राहीम जी बहुत सी बातों को छुपाते हुए भी उनके बारे में बहुत कुछ कह गए हैं। </div><div><br></div><div>किसी कविता में नकली डिग्रियों के दम पर लग रही सरकारी नौकरियों पर कटाक्ष किया जाता नज़र आता है। तो किसी शरारती कविता में लिफ़्ट में लिखे वाक्य को अमली जामा पहना इब्राहीम जी बिना ब्याह किए ही छह बच्चों के बाप बनते नज़र आते हैं।</div><div><br></div><div>कहने का मतलब ये कि इब्राहीम जी की रचनाओं में जहाँ एक तरफ़ हल्की फुल्की बातों के ज़रिए हास्य उत्पन्न किया जाता नज़र आता दिखाई देता है तो वहीं दूसरी तरफ़ उनकी कई रचनाएँ गहरे कटाक्ष और विसंगतियों को भी अपने में समेटे नज़र आती हैं।</div><div><br></div><div>कई बार हम किसी शब्द का दूसरों से ग़लत उच्चारण सुन कर या फिर कई बार किसी खास शब्द को ले कर हमारा खुद का ही उच्चारण सही नहीं होता तो उसे लिखते वक्त हम जस का तस उतार देते हैं। इस स्तर पर भी इस संकलन में कुछ जगहों पर कमी दिखाई दी। दरअसल किसी से बात करने या कहीं कुछ बोलते वक्त तो खैर..इससे काम चल जाता है या चल सकता है। मगर जब बात उसी शब्द को लिखने या उसके कहीं..किसी किताब में छपने की आती है तो उस शब्द का सही तरीके से बिना किसी वर्तनी की अशुद्धि के लिखा या छपा होना निहायत ही ज़रूरी हो जाता है। </div><div><br></div><div>वर्तनी की त्रुटियों के अतिरिक्त प्रूफरीडिंग के स्तर पर भी इस संकलन में कई कमियाँ दिखाई दी। उदाहरण के तौर पर पेज नम्बर 14 में लिखा दिखाई दिया कि..</div><div><br></div><div>'देखकर तीनों के चेहरे की नमक'</div><div><br></div><div>यहाँ 'चेहरे की नमक' के बजाय 'चेहरे का नमक' आएगा।</div><div><br></div><div>इस बाद पेज नंबर 19 पर लिखा दिखाई दिया कि..</div><div><br></div><div>'जीभ बोली, मैं तुम्हारा परिचय दुनिया से करती हूँ </div><div> खट्टे मीठे और तीखे स्वाद चखाती हूँ'</div><div><br></div><div>यहाँ 'मैं तुम्हारा परिचय दुनिया से करती हूँ' की जगह 'मैं तुम्हारा परिचय दुनिया से कराती हूँ' आएगा।</div><div><br></div><div>पेज नंबर 21 पर लिखा दिखाई दिया कि..</div><div><br></div><div>'जब ये इस तरह करता है ये मेरा चित्र चरित्र हनन'</div><div><br></div><div>इस वाक्य में दो बार 'ये' शब्द का इस्तेमाल किया गया जबकि किसी भी 'ये' शब्द को हटाने से ही वाक्य सही बन पाएगा। </div><div><br></div><div>आगे बढ़ने पर पेज नंबर 32 पर लिखा दिखाई दिया कि..</div><div><br></div><div>'मैं कहता हूं सिंगल हूँ, किराया डबल का बता रहा है बड़ी दृढ़ता है'</div><div><br></div><div>यहाँ 'बड़ी दृढ़ता' की जगह 'बड़ी धृष्टता' या 'बड़ी ढीठता' आएगा।</div><div><br></div><div>इसी पेज पर इसके आगे लिखा दिखाई दिया कि..</div><div><br></div><div>'आपके चढ़ाना उतारना भी तो पड़ता है'</div><div><br></div><div>'यहाँ 'आपके' की जगह 'आपको' आएगा।</div><div><br></div><div>** 'आदत से मजबूर' कविता में कवि अपनी जेब काटने की आदत से मजबूर है लेकिन इसी कविता की एक पंक्ति इस प्रकार लिखी दिखाई दी कि..</div><div><br></div><div>'कोई समय हो दिन या रात, सुबह या शाम</div><div> फर्क नहीं कुछ, बूढ़ा हो या जवान, हत्या से काम'</div><div> </div><div>यहाँ 'हत्या से काम' का तात्पर्य समझ में नहीं आया कि जेब काटते काटते कवि..हत्या जैसे गंभीर अपराध की तरफ़ कैसे मुड़ गया?</div><div><br></div><div>यूँ तो यह मज़ेदार किताब मुझे लेखक द्वारा उपहारस्वरूप मिली मगर अपने पाठकों की जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगा कि इसके 116 पृष्ठीय पेपरबैक संस्करण को छापा है शब्दांकुर प्रकाशन ने और इसका मूल्य रखा गया है 200/- रुपए। जो कि मुझे थोड़ा ज़्यादा लगा। <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/--5_Z-EEPIwA/YgzzZ7UXD5I/AAAAAAACFiQ/ORnDOcG4txQMHCq2J7Zvxw7pulISRyZeACNcBGAsYHQ/s1600/1645015908234408-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div>राजीव तनेजाhttp://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-702437585566173772021-10-27T15:22:00.001+05:302021-10-27T15:22:29.326+05:30छत्तीसगढ़ के लोक -देवता पर पहला उपन्यास : देवी करिया धुरवा <div> <b>(आलेख : स्वराज करुण )</b><br></div><div>दुनिया के अधिकांश ऐसे देशों में जहाँ गाँवों की बहुलता है और खेती बहुतायत से होती है ,जहाँ नदियों ,पहाड़ों और हरे -भरे वनों का प्राकृतिक सौन्दर्य है , ग्राम देवताओं और ग्राम देवियों की पूजा -अर्चना वहाँ की एक प्रमुख सांस्कृतिक विशेषता मानी जाती है। सूर्य ,चन्द्रमा ,आकाश ,अग्नि , वायु ,जल और वर्षा की चमत्कारिक प्राकृतिक शक्तियों ने इन्हें भी प्राचीन काल से ही लोक -मानस में देवताओं और देवियों के रूप में प्रतिष्ठित किया। चाहे नील नदी और सहारा रेगिस्तान का देश मिस्र हो या अफ्रीकी महाद्वीप के छोटे -बड़े देश , चाहे एशिया महाद्वीप का चीन हो या भारत , सभी देशों में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उनके अपने -अपने देवी -देवता होते हैं। </div><div> भारतीय संस्कृति में तो प्राचीन काल से ही नदियों , पहाड़ों और वनों को भी देवी -देवता के रूप में पूजा जाता है और मानव समाज के प्रति उनके अमूल्य और अतुलनीय योगदान के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया जाता है। राजतंत्र के जमाने में प्रत्येक राजवंश के स्वयं के कुल देवता और कुल -देवियाँ हुआ करती थी ।</div><div> <b>कुल -देवों और कुल -देवियों की पूजा -परम्परा</b><br></div><div> **********</div><div>अब तो राजतंत्र नहीं है,लेकिन कुल देवों और कुल देवियों की पूजा की परंपरा उनके यहाँ पीढ़ी दर -पीढ़ी आज भी चली आ रही है। यहाँ तक कि हम जैसे सामान्य मनुष्यों के भी अपने कुल देवता और कुल देवियाँ होती हैं।हमारे यहां जनजातीय समाजों के भी अपने -अपने आराध्य देव और अपनी -अपनी आराध्य देवियां हैं। कई मनुष्य भी अपनी विलक्षण प्रतिभा ,अपने शौर्य ,अदम्य साहस और लोक हितैषी कार्यों की वजह से समाज में सम्मानित होकर लोक मानस में देवी-देवता के रूप में स्थापित हो जाते हैं। उन्हें अलौकिक और अतुलनीय शक्तियों का केन्द्र मान लिया जाता है। आगे चलकर वे व्यापक जन -आस्था का केन्द्र बन जाते हैं। उन्हें लोक -देवता अथवा लोक -देवी के रूप में लोक -मान्यता मिल जाती है।</div><div><b>हर गाँव और ग्राम समूहों के अपने देवी -देवता </b> ****************<br></div><div>कृषि प्रधान भारत के ग्रामीण परिवेश वाले राज्य छत्तीसगढ़ में भी लगभग हर गाँव के और ग्राम समूहों के अपने देवी -देवता हैं। हमारे अतीत में कई ऐसी महान विभूतियों ने इस धरती पर जन्म लिया ,जिन्होंने लोक -कल्याण की भावना से देश और समाज के हित में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित कर दिया और लोक -देवता और लोक -देवी के रूप में जनता के दिलों पर हमेशा के लिए रच -बस गए। </div><div> छत्तीसगढ़ के लोक देवता करिया धुरवा और उनकी पत्नी करिया धुरविन यानी राजकुमारी देवी कुंअर की जीवन गाथा इसका एक महत्वपूर्ण उदाहरण है ,जिन्हें महासमुंद जिले की तत्कालीन कौड़िया की ज़मींदारी रियासत में जनता के बीच और विशेष रूप से आदिवासी समाज में देवी -देवता के रूप में अपार प्रतिष्ठा मिली। आगे चलकर एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में उन्हें कौड़िया का शासक (राजा ) बनाया गया। </div><div> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-oPXX19XU4bo/YXkhVASoLUI/AAAAAAAADfI/3GtLPK-FmtgSmboJthfR3LxEg49zSF7HACLcBGAsYHQ/s1600/1635328317647041-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div></div><div><br></div><div><br></div><div> <b>अर्जुनी में है करिया धुरवा का मंदिर</b></div><div> ***********</div><div>उनका बहुत प्राचीन और इकलौता मंदिर राजधानी रायपुर से तक़रीबन 100 किलोमीटर और तहसील मुख्यालय पिथौरा से लगभग छह किलोमीटर पर ग्राम अर्जुनी में स्थित है । मुम्बई-कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 53 के किनारे ग्राम मुढ़ीपार से होकर अर्जुनी की दूरी सिर्फ़ दो किलोमीटर है। हर साल अगहन पूर्णिमा के मौके पर जन -सहयोग से तीन दिवसीय भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। आम तौर पर यह करिया धुरवा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ प्रदेश अनेक आंचलिक देवी -देवताओं की जन्म भूमि और कर्म भूमि के रूप में विख्यात है ।</div><div> अंचल के <b>प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवशंकर पटनायक </b>की सशक्त लेखनी से करिया धुरवा की जीवन गाथा पहली बार उपन्यास के रूप में सामने आयी है। पिथौरा निवासी श्री पटनायक रामायण और महाभारत के पात्रों पर आधारित कई पौराणिक उपन्यासों के सिद्धहस्त लेखक हैं। जहाँ तक मुझे जानकारी है ,यह छत्तीसगढ़ के किसी लोक -देवता पर केन्द्रित पहला उपन्यास है। करिया धुरवा इस उपन्यास के नायक हैं ,वहीं इसमें मानसाय और नोहर दस्यु जैसे अत्याचारी खलनायक भी हैं । किसी भी अत्याचारी खलनायक की तरह उनका भी अंत बहुत बुरा होता है। उपन्यास में जन -कल्याणकारी लोकप्रिय शासकों के रूप में कोसल महाराजा और सिंहगढ़ नरेश प्रियभान के चरित्र को भी रोचक ढंग से उभारा गया है। करिया धुरवा और उनकी पत्नी देवी कुंअर के नाम पर उपन्यास का शीर्षक 'देवी करिया धुरवा ' रखा गया है।नायिका देवी कुंअर को इसमें एक जागरूक ,सशक्त और साहसी नारी के रूप में चित्रित किया गया है।</div><div> <b>फ़िल्म निर्माण की संभावना </b><br></div><div> ******************</div><div>मुझे लगता है कि अनेक रोचक और रोमांचक घटनाओं से परिपूर्ण इस उपन्यास पर एक बेहतरीन फ़ीचर फ़िल्म भी बन सकती है ,बशर्ते छालीवुड के हमारे प्रतिभावान फ़िल्मकार इसके लिए आगे आएं और इसकी संभावनाओं पर विचार करें। </div><div> <b>किंवदंतियों और कल्पनाओं का भी सहारा</b></div><div> *****************</div><div> लेखक ने उपन्यास को रोचक और प्रेरक बनाने के लिए जहाँ किंवदंतियों लोक -धारणाओं और कल्पनाओं का सहारा लिया है ,वहीं कई प्रसिद्ध लेखकों की पुस्तकों का गहन अध्ययन करके भी उन्होंने कुछ तथ्यों को इसमें अपनी शैली में प्रस्तुत किया है। उपन्यास लिखने के पहले उन्होंने तथ्य -संकलन के लिए करिया धुरवा मेला समिति के पदाधिकारियों और अंचल के अनेक प्रबुद्ध लोगों और इतिहासकारों से भी चर्चा की थी। उपन्यास के शुरुआती साढ़े छह पन्नों के वक्तव्य में लेखक ने उन सबके प्रति आभार प्रकट किया है। उपन्यासकार का कहना है कि लोक मान्यताओं के अनुसार यह घटना 200 वर्ष पहले की है। लेकिन इतिहास इस बारे में ख़ामोश है। किसी प्रकार का प्रामाणिक दस्तावेज नहीं था। अतः कोसल राज्य को केन्द्र बिंदु में रखना ही उन्होंने उचित माना। उपन्यासकार के अनुसार करिया धुरवा एक आदिवासी युवा है। उसके दो भाई कचना धुरवा और सिंगा धुरवा भी हैं। करिया धुरवा एक कुशल और अप्रतिम शिल्पकार हैं और अदम्य साहस के धनी कुशल योद्धा भी। वह अच्छे चित्रकार और मूर्तिकार हैं । उनके भाई कचना भी एक साहसी और मेधावी युवा हैं और सिंगा वनौषधियों के अच्छे जानकार और माँ कंकालिन के भक्त हैं। । उपन्यासकार ने अपनी इस कृति के सन्दर्भ में प्रारंभ में यह भी लिखा है कि करिया धुरवा के हाथों निर्मित मूर्तियाँ आज भी अर्जुनी सहित आस पास स्थित सरागटोला ,छिबर्रा, कोकोभाठा ,गतवारी डिपरा और पोटापारा नामक गाँवों में आज भी मौज़ूद हैं। </div><div> <b>कोसल भूमि पर विस्तारित कथानक </b><br></div><div> **********</div><div>यहाँ यह उल्लेख करना भी उचित होगा कि तत्कालीन समय में ,सैकड़ों वर्ष पहले भारत के अन्य भू भागों की तरह छत्तीसगढ़ भी अनेक छोटी -बड़ी रियासतों में बँटा हुआ था। इन रियासतों के अपने -अपने पूजनीय देवी -देवता हुआ करते थे। उस समय यह सम्पूर्ण विशाल भू -भाग कोसल और दक्षिण कोसल के नाम से भी जाना जाता था । उपन्यास का ताना -बाना इसी भू -भाग में रचा गया है। मानव सभ्यता का इतिहास हमें बताता है कि विभिन्न राजनीतिक परिवर्तनों के कारण दुनिया में देशों और प्रदेशों की सीमाएं भी समय -समय पर परिवर्तित होती रहती हैं।उपन्यास का कथानक तत्कालीन कोसल प्रदेश की छोटी -बड़ी अनेक रियासतों में फैला हुआ है। इसमें छत्तीसगढ़ के वर्तमान पड़ोसी राज्य ओड़िशा के बूढ़ा सांवर और पाटना गढ़ का भी उल्लेख है और पाटनागढ़ के आश्रित राज्य पिपौद का भी। बूढ़ा सांवर को राज बोड़ासाम्बर भी कहा जाता है ,जिसका वर्तमान मुख्यालय ओड़िशा के बरगढ़ जिले का पदमपुर कस्बा है ,जोकि एक तहसील मुख्यालय भी है।वहीं पाटनागढ़ भी अब ओड़िशा के बलांगीर जिले का तहसील मुख्यालय है। करिया ,कचना और सिंगा ,तीनों आदिवासी समाज के हैं। लेखक के अनुसार धुरवा उपनाम मध्यवर्ती छत्तीसगढ़ के अंचलों में अधिक प्रचलित है और तीनों इन अंचलो के जन -मानस के नायक हैं। तीनों भाई आमात्य गोंड समुदाय के है । </div><div><br></div><div> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-IxL9PGtkwOU/YXkhPHZrv5I/AAAAAAAADfE/xUjLhT-K6i0d_ghpwT2T_RIW9VzBWV1WgCLcBGAsYHQ/s1600/1635328294926090-1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://lh3.googleusercontent.com/-IxL9PGtkwOU/YXkhPHZrv5I/AAAAAAAADfE/xUjLhT-K6i0d_ghpwT2T_RIW9VzBWV1WgCLcBGAsYHQ/s1600/1635328294926090-1.png" width="400">
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</div></div><div> उपन्यासकार शिवशंकर पटनायक </div><div> </div><div> <b>सिंहगढ़ के प्रजा -वत्सल राजा प्रियभान </b></div><div> ****************</div><div> उपन्यास की शुरुआत कोसल राज्य की सिंहगढ़ रियासत के प्रजा वत्सल राजा प्रियभान के आदर्श व्यक्तित्व और न्याय प्रिय तथा लोक कल्याणकारी प्रशासन के वर्णन से होती है। प्रियभान को उनके इस करुणामय व्यक्तित्व के कारण जनता 'संत राजा ' के नाम से सम्बोधित करती है। उपन्यासकार के अनुसार कोसल राज्य की रियासतों में सिंहगढ़ आदर्श था । चित्रोत्पला महानदी के किनारे यह रियासत सघन वनों और सोना -चाँदी ,ताम्बा ,लोहा जैसी बहुमूल्य खनिज सम्पदाओं से परिपूर्ण थी। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य दर्शनीय था। संत राजा की कोई संतान नहीं थी । कठोर तपस्या से उन्हें ठाकुर देवता बूढ़ादेव का आशीर्वाद मिला और कन्या रत्न की प्राप्ति हुई ,जिसका नामकरण देवी कुंअर किया गया। </div><div> <b>राजकुमारी का अपहरण</b><br></div><div> ***************</div><div>रियासत में एक दिन संत राजा प्रियभान की पुत्री राजकुमारी देवी कुंअर का अपहरण हो जाता है। अपहरण की साजिश राजा के ही पालित पुत्र चन्द्रभान द्वारा रची जाती है ,जो राजकुमारी को जहरीला प्रसाद खिलाकर बेहोश कर देता है और उसके तत्काल बाद महानदी की लहरों में डोंगी पर घात लगाकर बैठे नोहर नामक दस्यु के लोग उसे अगवा कर लेते हैं । चन्द्रभान सिंहगढ़ की रानी जोतकुंअर के भाई तेज का पुत्र है । तेज के आग्रह पर राजा प्रियभान ने चन्द्रभान को महल में रखकर उसका लालन पालन किया था। बहरहाल ,अपहृत राजकुमारी को बचाने के लिए उसकी सहेली सुकमत महानदी के किनारे किनारे दौड़ लगाती है। तभी महानदी के तट पर स्थित एक गाँव के लोग इस दृश्य को देखकर शोर मचाते हैं । </div><div> <b> करिया धुरवा की धमाकेदार एंट्री </b><br></div><div> **************<br></div><div>तभी उस कोलाहल भरे दृश्य में करिया धुरवा की धमाकेदार एंट्री होती है और वह नदी में छलांग लगाकर पूरी ताकत से डोंगी को रोक लेता है।यह करिया धुरवा का गाँव है। बेहोश राजकुमारी को करिया के निवास में लाया जाता है। करिया के निर्देश पर उनके छोटे भाई सिंगा वनौषधियों से राजकुमारी का उपचार करता है। वह होश में आ जाती है। इसी दरम्यान वहाँ अचानक नोहर दस्यु के तलवारधारी लोग आ धमकते हैं। तीनों भाई अपने अदम्य साहस से उनका मुकाबला करके उन्हें वहाँ से भगा देते हैं। करिया धुरवा राजकुमारी को सुकमत के साथ पालकी में सिंहगढ़ रवाना किया जाता है। सुरक्षा की दृष्टि से उनके साथ करिया प्रशिक्षित युवा लड़ाकुओं को भेजता है। क्रिया स्वयं घोड़े पर उनके साथ चल रहा होता है। रास्ते में एक बार और नोहर दस्यु के लोग राजकुमारी को अगवा करने के लिए हमला करते हैं,लेकिन करिया अपने अदम्य साहस से मुकाबला करते हुए इस हमले को विफल कर देता है।इस संघर्ष के समय राजकुमारी भी पालकी से उतर जाती है और करिया पर पीछे से वार करने की कोशिश कर रहे एक हमलावर को भूमि पर पटक देती है। इसके बाद करिया अपने शौर्य और पराक्रम से हमलावरों को गाजर मूली की तरह काटने लगता है ।कई हमलावर भाग जाते हैं। राजकुमारी को करिया सुरक्षित ढंग से सिंहगढ़ पहुँचाता है।</div><div> <b>चिंगरोल के अत्याचारी शासक ने किया था <br></b></div><div><b> कोसल की 18 रानियों का अपहरण </b></div><div> *************</div><div> उपन्यास में करिया धुरवा के शौर्य की दो और घटनाओं का भी वर्णन है ।इनमें से एक घटना उस समय की है ,जब चिंगरोल नामक जमींदारी के अत्याचारी शासक मानसाय ने अपने खुशामदी स्वभाव से कोसल महाराज के पास जाकर झूठ मूठ अपना परिचय करिया धुरवा के मित्र के रूप में दिया और महाराज का विश्वास जीतकर उनके महल में रहने लगा। मानसाय को वशीकरण विद्या के तहत देवीधरा मंत्र की सिद्धि प्राप्त थी ।एक दिन उसने कोसल नरेश के महल की 18 रानियों पर इस मंत्र का प्रयोग करके उन्हें अपने वश में कर लिया और रात्रि में अपने मित्रों के सहयोग से उन्हें लेकर भाग निकला। रास्ते में कौड़िया रियासत के एक स्थान पर करिया धुरवा प्रकट होता है। वह कोसल नरेश की इन 18 रानियों को मान साय समेत पास के एक बड़े गाँव में ले आता है ।करिया के निर्देशों के अनुरूप गाँव की कुछ महिलाएं इन रानियों को सरोवर में नहलाकर मंत्र -बाधा से मुक्त करती हैं। करिया के ही निर्देश पर गाँव के लोग मानसाय को एक वृक्ष के तने से बांध देते हैं। </div><div> <b>आज भी है वह गाँव अट्ठारहगुड़ी </b><br></div><div> **************</div><div> करिया धुरवा ने कोसल नरेश की इन सभी 18 रानियों के लिए जनता के सहयोग से वहाँ रहने की व्यवस्था करवाई और उनके लिए स्वयं के खर्च से अट्ठारह गुड़ियों ( निवासों) का भी निर्माण करवाया।करिया ने ग्राम प्रधान से कहा कि निवास को मंदिर कहा जाता है।इसे हम आदिवासी गुड़ी कहते हैं। करिया ने यह भी कहा कि आज से कौड़िया राज्य में स्थित यह गाँव इन निर्दोष माताओं के कारण अट्ठारहगुड़ी के नाम से जाना जाएगा। कौड़िया रियासत में आज भी यह गाँव है ,जो वर्तमान पिथौरा तहसील के ग्राम नयापारा (खुर्द )से लगा हुआ है।मानसाय चिंगरोल रियासत का शासक था। यह रियासत पाटना गढ़ राज्य के अंतर्गत आती थी। करिया के सुझाव पर मानसाय को कोसल की राजधानी के कारागार में बंदी बनाकर रखा गया। कोसल नरेश ने उसके अत्याचारों के बारे में चिंगरोल से प्राप्त गंभीर शिकायतों की जाँच करवाने का निर्णय लिया। सिंगा धुरवा ने चिंगरोल पहुँचकर इन शिकायतों की जाँच की ,जो सही पायी गयी।पाटनागढ़ के राजा ने चिंगरोल को अपने नियंत्रण में ले लिया। फिर शासक मानसाय को मौत की सजा दे दी गयी।उस पर कॉल नरेश से मिथ्या कथन ,कपट भाव से रानियों पर देवीधरा मंत्र का प्रयोग करके उनका अपहरण करने ,चिंगरोल की जनता के शोषण और उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे।</div><div> <b>करिया ने द्वंद्व युद्ध में किया दस्यु नोहर का अंत </b><br></div><div> ******</div><div> एक अन्य घटना में सम्पूर्ण कोसल प्रदेश को दस्यु नोहर के आतंक से मुक्त करने के लिए करिया के सुझाव पर कोसल नरेश ने द्वंद्व युद्ध का आयोजन करने का निर्णय लिया । इसमें नोहर को विजयी होने की स्थिति में राजद्रोह के आरोप से क्षमादान की शर्त रखी गयी। करिया ने नोहर के साथ द्वंद्व युद्ध की पेशकश की। मल्ल युद्ध में तो किसी एक की जीत और किसी एक की हार होती है ,जबकि द्वंद्व युद्ध में दोनों में से किसी एक की मौत तय मानी जाती है।विजयादशमी के दिन कोसल नरेश की उपस्थिति में सिंहगढ़ में हुए द्वंद्व युद्ध में करिया ने अपने शारीरिक और मानसिक कौशल से पाशविक शक्ति वाले दस्यु नोहर को मौत के घाट उतार दिया।</div><div> <b>तीनों भाई बनाए गए तीन रियासतों के राजा </b><br></div><div> *********</div><div>इसके बाद सिंहगढ़ के राजभवन में हुई एक पारिवारिक बैठक में सिंहगढ़ के राजा प्रियभान ने कोसल नरेश के समक्ष प्रस्ताव रखा कि करिया को कौड़िया उसके भाई कचना को बिंद्रा और सिंगा को भाठा राज्यों का शासक (राजा) बनाने का प्रस्ताव रखा । कोसल नरेश ने तीनों को इन राज्यों का राजा घोषित करते हुए राजाज्ञा भी जारी कर दी।दरअसल इन तीनों राज्यों में अनेक प्रशासनिक समस्याएं थीं। कोसल नरेश का कहना था कि कौड़िया राज्य (वर्तमान पिथौरा तहसील ) उत्कल राज्यों की सीमा पर होने के कारण काफी संवेदनशील है। बिंद्रा राज्य (वर्तमान जिला - बिंद्रानवागढ़ या गरियाबंद) के राजा अत्यंत धार्मिक तथा सरल स्वभाव के हैं।अतः यह राज्य शिथिल प्रशासन से ग्रस्त है।कभी भी वाह्य आक्रमण हो सकता है।महानदी के तट से कुछ दूर स्थित भाठा राज्य (वर्तमान भाठापारा तहसील ) का शासक महत्वाकांक्षी और क्रूर है।उसका अधिकांश समय शिकार खेलने में चला जाता है। इन्हीं गंभीर कारणों से तीनों राज्यों का शासन तीनों भाइयों को सौंपा गया।इसके बाद कोसल नरेश के प्रस्ताव पर सिंहगढ़ नरेश प्रियभान ने राजकुमारी देवी कुंअर का विवाह करिया धुरवा से कर दिया । दोनों कौड़िया राज्य पहुँचे। महाराज करिया ने एक महत्वपूर्ण घटना क्रम में पड़ोसी राज्य पिपौद के नशेबाज और विलासी शासक केवराती को बंदी बनाए जाने के बाद भी उसकी पत्नी की प्रार्थना स्वीकार करते हुए उसे क्षमा कर दिया।</div><div> <b>तुम दोनों को मंदिर में स्थापित किया जाएगा </b><br></div><div> *****************</div><div> एक दिन जब कौड़िया महाराज करिया और रानी देवी कुंअर महल में कुछ मंत्रणा कर रहे थे ,तभी वहाँ अचानक एक साधु का आगमन हुआ। साधु ने दोनों को क्रमशः साक्षात महा काल कालेश्वर बूढा देव और शक्ति स्वरूपा भवानी का अंश बताया और कहा कि तुम दोनों की पूजा मानव करेगा और तुम दोनों को मंदिर में देव और देवी के रूप में स्थापित किया जाएगा। इसके बाद साधु अपने विश्राम की व्यवस्था करने के लिए कहकर अदृश्य हो गए। महाराज करिया और देवी कुंअर संशय में पड़ गए कि ये साधु कहीं स्वयं साक्षात ठाकुर देव या महादेव बूढ़ा देव तो नहीं थे ? आज भी तत्कालीन कौड़िया रियासत के ग्राम अर्जुनी में स्थित मंदिर में करिया धुरवा और देवी करिया धुरवाइन यानी देवी कुंअर की पूजा होती है और अगहन महीने की पूर्णिमा के दिन वहाँ तीन दिनों तक विशाल मेले का आयोजन होता है।</div><div> <b>पात्रों के माध्यम से प्रेरक संदेश </b><br></div><div> ***********</div><div> आंचलिक भाव -भूमि पर आधारित अपने इस उपन्यास में पात्रों के माध्यम से कई ऐसे प्रेरक विचार भी पाठकों के सामने आते हैं ,जिनकी प्रासंगिकता आज के समय में और भी अधिक बढ़ जाती है । इनके माध्यम से लेखक ने समाज को प्रेरणादायक संदेश देने का प्रयास किया है। जैसे --बाल्यकाल में सिंहगढ़ नरेश प्रियभान की पुत्री देवी कुंअर का अपने पिता से यह पूछना कि समाज में पुत्रवान भवः जैसा आशीष क्यों दिया जाता है ,जबकि पुत्र और पुत्री ,दोनों ही तो संतान हैं , या फिर गुरु के द्वारा देवी कुंअर से यह कहना कि जब हम मनुष्य अथवा मानव का उल्लेख करते हैं तो इसका आशय ही नर एवं नारी दोनों हैं ,दोनों एक -दूसरे के पूरक हैं और नारी को शिक्षा अनिवार्य रूप से प्राप्त करनी चाहिए ,क्योंकि इसके माध्यम से ही वह मातृकुल और सासू कुल को तार सकती है। </div><div><b>महिला सशक्तिकरण का प्रतीक देवी कुंअर </b><br></div><div> ***********</div><div>उपन्यास में राजकुमारी देवी कुंअर के व्यक्तित्व को तत्कालीन समाज में महिला सशक्तिकरण के लिए काम करने वाली एक जागरूक नारी के रूप में प्रस्तुत किया गया है। वह महिलाओं को संगठित करती है। वह घुड़सवारी , तीरंदाजी और खड्ग चालन में भी माहिर है। राज्य की महिलाओं से उसका जीवंत सम्पर्क रहता है।वह जन -सामान्य के घरों में भी सहजता और आत्मीयता से आती जाती है, उनकी रसोई में जाकर बरा , सोंहारी, ठेठरी ,खुरमी जैसे तरह -तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बनाती है।तीज -त्यौहारों में उनके साथ रहती है। महिलाओं को शिक्षा और संगठन शक्ति का महत्व बताती है। रूढ़ियों और अंध-विश्वासों से बचने की नसीहत देती है ,संस्कारों के साथ आत्मरक्षा के लिए उन्हें तीर ,बरछा और तलवार चलाना भी सिखाती है। वह मदिरापान की सामाजिक बुराई के ख़िलाफ़ भी उन्हें सचेत करती है।</div><div> <b>युद्ध का अर्थ ही सर्वनाश </b><br></div><div> ***********</div><div>इतना ही नहीं ,बल्कि उपन्यास में महाराज करिया धुरवा की छवि एक शांतिप्रिय शासक के रूप में भी उभरती है। वह अपने पड़ोसी राज्य पिपौद के राजा केवराती से युद्ध नहीं चाहते। रानी देवी कुंअर से अपने युद्ध विरोधी शांतिप्रिय विचारों को साझा करते हुए वह कहते हैं --" द्वंद्व युद्ध के परिणाम से केवल दोनों प्रतिभागी प्रभावित हो सकते हैं ,किंतु युद्ध का अर्थ ही सर्वनाश है। एक अपराधी होता है ,किंतु अंसख्य निरपराध ,निर्दोष , राज्य - धर्म के नाम पर दोनों ओर से जीवन के मूल्य पर दंड प्राप्त करते हैं। इसमें भी एक सैनिक अपने प्राणों की आहुति देता है ,किंतु पीड़ित तो पूरा परिवार होता है।मैं भी अनावश्यक युद्ध नहीं चाहता।साथ ही युद्ध को थोपा जाना भी मैं उचित नहीं मानता। मुझे कौड़िया की प्रजा पर शत -प्रतिशत विश्वास है। सैन्य शक्ति की मुझे तनिक भी चिन्ता नहीं है,क्योंकि पिपौद की प्रजा भी युद्ध नहीं चाहती। वास्तविकता यह है कि मै मात्र केवराती के लिए किसी भी मूल्य पर प्रजा के जीवन को युद्ध के माध्यम से अशांत नहीं करना चाहता। " </div><div> उपन्यास में एक राजा अथवा शासक को कैसा होना चाहिए ,इसे भी कौड़िया महाराज करिया धुरवा के माध्यम से स्पष्ट किया गया है। वह अपनी रानी से कहते हैं -- "किसी भी राजा अथवा शासक को निजत्व को कभी भी महिमा मंडित कर सर्वोपरि नहीं मान लेना चाहिए। मान-अपमान ,यश -अपयश की व्याख्या करते समय सर्व कल्याण और प्रजा हित का चिंतन आवश्यक है। "</div><div> <b>एकलव्य थे करिया धुरवा के आदर्श </b><br></div><div> ******************</div><div>लेखक ने उपन्यास में महाभारत के चर्चित पात्र एकलव्य का भी जिक्र किया है।वैसे एकलव्य के जीवन पर उनका एक उपन्यास अलग से भी है ,लेकिन करिया धुरवा पर केन्द्रित यह उपन्यास हमें बताता है कि वह (करिया धुरवा ) एकलव्य की जीवन गाथा से बहुत प्रभावित है। इसमें सिंहगढ़ नरेश अपनी पुत्री देवी कुंअर को बताते है कि करिया धुरवा का आदर्श नायक आदिवासी पुरखा पुरुष एकलव्य है। आगे के एपिसोड में कौड़िया के महल में महाराज करिया धुरवा और उनकी रानी भी आपसी बातचीत में एकलव्य की चर्चा करते हैं।करिया अपनी रानी से कहते हैं --" देवी ,हम महान व्रती ,तपी और त्यागी एकलव्य के वंशज हैं , जिनका चिंतन हमारा धर्म तथा दर्शन जीवन मंत्र है। तुम्हें स्मरण है न देवी , वनवासी वन -नायक एकलव्य ने ही महाराज युधिष्ठिर से वनवासियों के हित में अनेक राजाज्ञाएँ जारी करायी और प्रथम बार महाराज युधिष्ठिर ने वनवासियों को आदिवासी के रूप में अलंकृत कर सम्बोधित किया था। "</div><div> <b>द्रोणाचार्य ने नहीं मांगा था एकलव्य का अंगूठा </b></div><div> ***********</div><div> उपन्यास में एक नया तथ्य यह भी उभरकर आया है कि गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य से अंगूठा नहीं मांगा था। रानी देवी कुंअर इस संदर्भ में महाराज करिया से कहती हैं -- " भील वनवासी युवक एकलव्य हमारे गौरव हैं।गुरु द्वारा शिक्षा देने से वंचित किए जाने पर भी गुरु माटी प्रतिमा के समक्ष त्याग ,निष्ठा तथा निर्भाव से समस्त शास्त्र विधाओं में पारंगत होना तथा गुरु के दक्षिणा मांगने के भाव को समझकर ही सीधे हाथ के अंगूठे को काटकर दे देना और गुरु को जन -रोष के कलंक से मुक्त करते हुए दृढ़ता से कहना कि गुरु ने तो अपने मुख से दक्षिणा मांगी ही नही थी ,उन्होंने तो अर्जुन की मानसिकता का ही जिक्र किया था ,मैंने ही आशय समझ कर अंगूठा काटकर दे दिया था , गुरु को मानसिक उलझन तथा धर्म संकट से मुक्त करना शिष्य का परम दायित्व होता है , वास्तव में एकलव्य की महानता ही थी।" </div><div><br></div><div> लोक देवता करिया धुरवा पर आधारित इस प्रथम उपन्यास में और भी कई प्रेरक प्रसंग हैं ,जिनसे पता चलता है कि करिया धुरवा और रानी देवी कुंअर केवल मूर्तियों के रूप में प्रणम्य नहीं हैं बल्कि मानव के रूप में उनके विचार और उनके कार्य हर किसी के लिए अनुकरणीय हैं ,प्रेरणादायक हैं। लगभग 136 पृष्ठों के इस उपन्यास की प्रवाह पूर्ण भाषा पाठकों को अंत तक बांधकर रखती है। <b>आलेख --स्वराज्य करुण</b></div>Swarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-5533168373429375532020-08-11T14:49:00.001+05:302020-08-11T14:49:48.317+05:30अभ्युदय-1- नरेंद्र कोहली(समीक्षा(<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://lh3.googleusercontent.com/-w06F1LYjoDk/XzJisVki-uI/AAAAAAABoyg/rAPF7Yu-ho8LIt3TPVWWgZ5-afnEZoWkgCLcBGAsYHQ/s1600/1597137582076177-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><div align="left"><p dir="ltr">मिथकीय चरित्रों की जब भी कभी बात आती है तो सनातन धर्म में आस्था रखने वालों के बीच भगवान श्री राम, पहली पंक्ति में प्रमुखता से खड़े दिखाई देते हैं। बदलते समय के साथ अनेक लेखकों ने इस कथा पर अपने विवेक एवं श्रद्धानुसार कलम चलाई और अपनी सोच, समझ एवं समर्थता के हिसाब से उनमें कुछ ना कुछ परिवर्तन करते हुए, इसके किरदारों के फिर से चरित्र चित्रण किए। नतीजन...आज मूल कथा के एक समान होते हुए भी रामायण के कुल मिला कर लगभग तीन सौ से लेकर एक हज़ार तक विविध रूप पढ़ने को मिलते हैं। इनमें संस्कृत में रचित वाल्मीकि रामायण सबसे प्राचीन मानी जाती है। इसके अलावा अनेक अन्य भारतीय भाषाओं में भी राम कथा लिखी गयीं। हिंदी, तमिल,तेलुगु,उड़िया के अतिरिक्त संस्कृत,गुजराती, मलयालम, कन्नड, असमिया, नेपाली, उर्दू, अरबी, फारसी आदि भाषाएँ भी राम कथा के प्रभाव से वंचित नहीं रह पायीं।</p>
<p dir="ltr">राम कथा को इस कदर प्रसिद्धि मिली कि देश की सीमाएँ लांघ उसकी यशकीर्ति तिब्बत, पूर्वी तुर्किस्तान, इंडोनेशिया, नेपाल, जावा, बर्मा (म्यांम्मार), थाईलैंड के अलावा कई अनेक देशों तक जा पहुँची और थोड़े फेरबदल के साथ वहाँ भी नए सिरे से राम कथा को लिखा गया। कुछ विद्वानों का ऐसा भी मानना है कि ग्रीस के कवि होमर का प्राचीन काव्य इलियड, रोम के कवि नोनस की कृति डायोनीशिया तथा रामायण की कथा में अद्भुत समानता है। राम कथा को आधार बना कर अमीश त्रिपाठी ने हाल फिलहाल में अंग्रेज़ी भाषा में इस पर हॉलीवुड स्टाइल का तीन भागों में एक वृहद उपन्यास रचा है तो हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री नरेन्द्र कोहली भी इस अद्भुत राम कथा के मोहपाश से बच नहीं पाए हैं।</p>
<p dir="ltr">दोस्तों.... आज मैं बात करने जा रहा हूँ श्री नरेन्द्र कोहली द्वारा रचित "अभ्युदय-1" की। इस पूरी कथा को उन्होंने दो भागों में संपूर्ण किया है। इस उपन्यास में उन्होंने देवताओं एवं राक्षसों को अलौकिक शक्तियों का स्वामी ना मानते हुए उनको आम इंसान के हिसाब से ही ट्रीट किया है। </p>
<p dir="ltr">उनके अनुसार बिना मेहनत के जब भ्रष्टाचार, दबंगई तथा ताकत के बल पर कुछ व्यक्तियों को अकृत धन की प्राप्ति होने लगी तो उनमें नैतिक एवं सामाजिक भावनाओं का ह्रास होने के चलते लालच, घमंड, वैभव, मदिरा सेवन, वासना, लंपटता तथा दंभ इत्यादि की उत्पत्ति हुई। अत्यधिक धन तथा शस्त्र ज्ञान के बल पर अत्याचार इस हद तक बढ़े कि ताकत के मद में चूर ऐसे अधर्मी लोगों द्वारा सरेआम मारपीट तथा छीनाझपटी होने लगी। अपने वर्चस्व को साबित करने के लिए राह चलते बलात्कार एवं हत्याएं कर, उन्हीं के नर मांस को खा जाने जैसी अमानवीय एवं पैशाचिक करतूतों को करने एवं शह देने वाले लोग ही अंततः राक्षस कहलाने लगे।</p>
<p dir="ltr">शांति से अपने परिश्रम एवं ईमानदारी द्वारा जीविकोपार्जन करने के इच्छुक लोगों को ऐसी राक्षसी प्रवृति वालों के द्वारा सताया जाना आम बात हो गयी। आमजन को ऋषियों के ज्ञान एवं बौद्धिक नेतृत्व से वंचित रखने एवं शस्त्र ज्ञान प्राप्त करने से रोकने के लिए शांत एवं एकांत स्थानों पर बने गुरुकुलों एवं आश्रमों को राक्षसों द्वारा भीषण रक्तपात के बाद जला कर तहस नहस किया जाने लगा कि ज्ञान प्राप्त करने के बाद कोई उनसे, उनके ग़लत कामों के प्रति तर्क अथवा विरोध ना करने लगे। </p>
<p dir="ltr">वंचितो की स्थिति में सुधार के अनेक मुद्दों को अपने में समेटे हुए इस उपन्यास में मूल कहानी है कि अपने वनवास के दौरान अलग अलग आश्रमों तथा गांवों में राम, किस तरह ऋषियों, आश्रम वासियों और आम जनजीवन को संगठित कर, शस्त्र शिक्षा देते हुए राक्षसों से लड़ने के लिए प्रेरित करते हैं। पढ़ते वक्त कई स्थानों पर मुझे लगा कि शस्त्र शिक्षा एवं संगठन जैसी ज्ञान की बातों को अलग अलग आश्रमों एवं स्थानों पर बार बार घुमा फिरा कर बताया गया है। जिससे उपन्यास के बीच का हिस्सा थोड़ा बोझिल सा हो गया है जिसे संक्षेप में बता कर उपन्यास को थोड़ा और चुस्त दुरस्त किया जा सकता था। लेकिन हाँ!...श्रुपनखा का कहानी में आगमन होते ही उपन्यास एकदम रफ्तार पकड़ लेता है।</p>
<p dir="ltr">इस उपन्यास में कहानी है राक्षसी अत्याचारों से त्रस्त ऋषि विश्वामित्र के ऐसे राक्षसों के वध के लिए महाराजा दशरथ से उनके पुत्रों, राम एवं लक्षमण को मदद के रूप में माँगने की। इसमें कहानी है अहल्या के उद्धार से ले कर ताड़का एवं अन्य राक्षसों के वध, राम-सीता विवाह, कैकयी प्रकरण, राम वनवास, अगस्त्य ऋषि एवं कई अन्य उपकथाओं से ले कर सीता के हरण तक की। इतनी अधिक कथाओं के एक ही उपन्यास में होने की वजह से इसकी मोटाई तथा वज़न काफी बढ़ गया है। जिसकी वजह इसे ज़्यादा देर तक हाथों में थाम कर पढ़ना थोड़ा असुविधाजनक लगता है। </p>
<p dir="ltr">700 पृष्ठों के इस बड़े उपन्यास(पहला भाग) को पढ़ते वक्त कुछ स्थानों पर ऐसा भी भान होता है कि शायद लेखक ने कुछ स्थानों पर इसे स्वयं टाइप कर लिखने के बजाए किसी और से बोल कर इसे टाइप करवाया है क्योंकि कुछ जगहों पर शब्दों के सरस हिंदी में बहते हुए प्रवाह के बीच कर भोजपुरी अथवा मैथिली भाषा का कोई शब्द अचानक फुदक कर उछलते हुए कोई ऐसे सामने आ जाता है। </p>
<p dir="ltr">धाराप्रवाह लेखन से सुसज्जित इस उपन्यास को पढ़ने के बाद लेखक की इस मामले में भी तारीफ करनी होगी कि उन्होंने इसके हर किरदार के अच्छे या बुरे होने के पीछे की वजहों का, सहज मानवीय सोच के साथ मंथन करते हुए उसे तार्किक ढंग से प्रस्तुत किया है। </p>
<p dir="ltr">700 पृष्ठों के इस उपन्यास के पेपरबैक संस्करण की कीमत ₹450/- रुपए है और इसके प्रकाशक हैं डायमंड बुक्स। उपन्यास का कवर बहुत पतला है। एक बार पढ़ने पर ही मुड़ कर गोल होने लगा। अंदर के कागजों की क्वालिटी ठीकठाक है।फ़ॉन्ट्स का साइज़ थोड़ा और बड़ा होना चाहिए था। इन कमियों की तरफ ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। आने वाले भविष्य के लिए लेखक तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।<br>
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</div><p dir="ltr"><br>
</p>राजीव तनेजाhttp://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-34928823022814753232016-01-12T16:47:00.001+05:302016-01-12T16:47:37.523+05:30गरीब के घर प्रापर्टी का झगडा,छत्तीसगढ कांग्रेस में मचे घमासान को देख कर ...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/u3cQMr_sh_A" width="459"></iframe>Anil Pusadkarhttp://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-77846075656941024762016-01-10T19:12:00.001+05:302016-01-10T19:12:53.420+05:30बाप अपने बेटे की बलि दे रहा है!शर्मनाक है?साक्षरता,विकास और रोज़गार के दा...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/b59-q8ylRM4" width="459"></iframe>Anil Pusadkarhttp://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-21466989761638670042016-01-08T16:45:00.001+05:302016-01-08T16:45:58.744+05:30जब आप अपने घर में गंदगी नही करते तो बाहर क्यों?घर में सफाई रखते है तो बा...<iframe allowfullscreen="" frameborder="0" height="344" src="https://www.youtube.com/embed/IFE5IUZVg7Q" width="459"></iframe>Anil Pusadkarhttp://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-5561804909016451902016-01-06T21:05:00.006+05:302016-01-06T21:05:57.739+05:30गीत / फ़ौजी का बयान<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 14px; line-height: 19.32px; margin-bottom: 6px;">
<span style="background-color: transparent; font-size: large;"><span style="color: red;">मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ</span></span></div>
<span style="color: red; font-size: large;">मातृभूमि ही माता मेरी, सच्चे मन से बोल रहा हूँ.<br /><br />धर्म है मेरा देश की रक्षा, चाहे जान चली जाए.<br />लेकिन मेरी माँ दुश्मन के हाथों नहीं छली जाए.<br />मेरे देश के लोग चैन से सोएं, बस ये चाहत है ।<br />हरदम मेरी माँ मुस्काए,जिससे मुझे महब्बत है.<br />दुशमन के सर पर ही उसकी, मौत बना मैं डोल रहा हूँ।<br />मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ.।<br /><br />हंस कर मेरी माँ ने मुझको , वर्दी यह पहनाई थी।<br />और पिता के चेहरे पर भी खुशियों की शहनाई थी ।<br />देश की खातिर जीना-मरना,यह करके दिखलाऊंगा ।<br />अगर शहादत पायी तो फिर नाम अमर कर जाऊँगा। <br />माँ के दूध से हिम्मत पाई हर पल खुद को तौल रहा हूँ।<br />मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ.<br /><br />पीठ कभी ना दिखलाऊंगा, माँ ने यही सिखाया है।<br />फौलादी सीने वाला हूँ, बहना ने बतलाया है।<br />देश हमारा धर्म है सुन्दर, इसको बारम्बार नमन। <br />मेरे लहू से सदा रहेगा, रौशन-हरियर मेरा चमन। <br />मेरी कीमत क्या जानोगे, हर पल मैं अनमोल रहा हूँ।<br />मैं सीमा का इक फ़ौजी हूँ, आज हृदय को खोल रहा हूँ।</span><div class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #141823; display: inline; font-family: helvetica, arial, sans-serif; line-height: 19.32px;">
<div style="font-size: 14px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
</div>
</div>
girish pankajhttp://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-59956746842606784152014-11-22T21:58:00.006+05:302014-11-22T21:58:58.742+05:30अब तो ''समाजवादी'' बग्घी पे आ रहा है<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<b><span style="color: #990000; font-size: large;"><br />'लोहिया' तेरे मिशन को ये कौन खा रहा है <br />अब तो ''समाजवादी'' बग्घी पे आ रहा है<br /><br />लूटो गरीब को पर बातें गरीब की हों <br />ये मुल्क पूंजी-पूंजी अब खुल के गा रहा है.<br /><br />जो लोग थे 'मुलायम' दिखते 'कठोर' कैसे <br />'आजम' का आज 'जाजम' अब इनको भा रहा है<br /><br />सारे विचार अच्छे बेकार हो गए हैं <br />ये दौर देखिये अब क्या दिन दिखा रहा है<br /><br />सच्चे समाजवादी बेकार हो गए हैं <br />नकली है माल जितना वो उतना छा रहा है</span></b></div>
girish pankajhttp://www.blogger.com/profile/16180473746296374936noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-3069175240622418572014-11-18T08:17:00.000+05:302014-11-18T08:17:19.886+05:30काली कमाई का सबसे सुरक्षित ठिकाना बैंक लॉकर !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name">
<a href="http://swaraj-karun.blogspot.in/2014/11/blog-post_18.html"> </a>
</h3>
<div class="post-header">
</div>
<div dir="ltr" style="text-align: left;">
भ्रष्टाचार और काला धन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं . दोनों
एक-दूजे के लिए ही बने हैं और एक-दूजे के फलने-फूलने के लिए ज़मीन तैयार
करते रहते हैं . यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दोनों एकदम सगे मौसेरे भाई
हैं. भ्रष्टाचार से अर्जित करोड़ों-अरबों -खरबों की दौलत को छुपाकर रखने के
लिए तरह -तरह की जुगत लगाई जाती है . भ्रष्टाचारियों द्वारा इसके लिए अपने
नाते-रिश्तेदारों ,नौकर-चाकरों और यहाँ तक कि कुत्ते-बिल्लियों के नाम से
भी बेनामी सम्पत्ति खरीदी जाती है . बेईमानी की कालिख लगी दौलत अगर छलकने
लगे तो सफेदपोश चोर-डाकू उसे अपने बिस्तर और यहाँ तक कि टायलेट में भी
छुपाकर रख देते हैं . .हालांकि देश के सभी राज्यों में हर साल और हर महीने
कालिख लगी कमाई करने वाले सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के घरों पर
छापेमारी चलती रहती है ,करोड़ों -अरबों की अनुपातहीन सम्पत्ति होने के
खुलासे भी मीडिया में आते रहते हैं .<br />
आपको यह जानकर शायद हैरानी होगी कि हमारे देश के
राष्ट्रीयकृत और निजी क्षेत्र के बैंक भी भ्रष्टाचारियों की बेहिसाब
दौलत को छुपाने का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गए हैं .जी हाँ ! ये बैंक
जाने-अनजाने इन भ्रष्ट लोगों की मदद कर रहे हैं और उनकी काली कमाई के
अघोषित संरक्षक बने हुए हैं ! वह कैसे ? तो जरा विचार कीजिये ! प्रत्येक
बैंक में ग्राहकों को लॉकर रखने की भी सुविधा मिलती है .हालांकि सभी
खातेदार इसका लाभ नहीं लेते ,लेकिन कई इच्छुक खातेदारों को बैंक शाखाएं
निर्धारित शुल्क पर लॉकर आवंटित करती हैं .उस लॉकर में आप क्या रखने जा
रहे हैं , उसकी कोई सूची बैंक वाले नहीं बनाते . उन्हें केवल अपने लॉकर के
किराए से ही मतलब रहता है . लॉकर-धारक से उसमे रखे जाने वाले सामानों की
जानकारी के लिए कोई फ़ार्म नहीं भरवाया जाता . .आप सोने-चांदी
,हीरे-जवाहरात से लेकर बेहिसाब नोटों के बंडल तक उसमे रख सकते हैं . एक
मित्र ने मजाक में कहा - अगर आप चाहें तो अपने बैंक लॉकर में दारू की बोतल
और अफीम-गांजा -भांग जैसे नशीले पदार्थ भी जमा करवा सकते हैं .<br />
कहने का मतलब यह कि बैंक वाले अपनी शाखा में लॉकर की मांग करने
वाले किसी भी ग्राहक को निर्धारित किराए पर लॉकर उपलब्ध करवा कर अपनी
ड्यूटी पूरी मान लेते हैं .हाल ही में कुछ अखबारों में यह समाचार पढ़ने को
मिला कि एक भ्रष्ट अधिकारी के बैंक लॉकर होने की जानकारी मिलने पर जांच
दल ने जब उस बैंक में उसे साथ ले जाकर लॉकर खुलवाया तो उसमे पांच लाख रूपए
नगद मिले ,जबकि उसमे विभिन्न देशों के बासठ नोटों के अलावा कई विदेशी
सिक्के भी उसी लॉकर से बरामद किये गए ..उसके ही एक अन्य बैंक के लॉकर में
करोड़ों रूपयों की जमीन खरीदी से संबंधित रजिस्ट्री के अनेक दस्तावेज भी पाए
गए .जरा सोचिये ! इस व्यक्ति ने पांच लाख रूपये की नगद राशि को अपने बैंक
खाते में जमा क्यों नहीं किया ? उसने इतनी बड़ी रकम को लॉकर में क्यों रखा ?
फिर उस लॉकर में विदेशी नोटों और विदेशी सिक्कों को रखने के पीछे उसका
इरादा क्या था ? हमारे जैसे लोगों के लिए तो पांच लाख रूपये भी बहुत बड़ी
रकम होती है .इसलिए मैंने इसे 'इतनी बड़ी रकम' कहा .<br />
बहरहाल हमारे देश में बैंकों के लॉकरों में पांच लाख तो क्या ,
पांच-पांच करोड रूपए रखने वाले भ्रष्टाचारी भी होंगे .आम धारणा है कि भारत
के काले धन का जितना बड़ा जखीरा विदेशी बैंकों में है ,उससे कहीं ज्यादा
काला धन देश में ही छुपा हुआ है और तरह-तरह के काले कारोबार में उसका
धडल्ले से इस्तेमाल हो रहा है . ऐसा लगता है कि बैंक लॉकर भी काले-धन को
सुरक्षित रखने का एक सहज-सरल माध्यम बन गए हैं .ऐसे में अगर देश के भीतर
छुपाकर रखे गए काले धन को उजागर करना हो तो सबसे पहले तमाम बैंक-लॉकर
धारकों के लिए यह कानूनन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि वे अपने लॉकर में
रखे गए सामानों की पूरी जानकारी बैंक-प्रबंधन को दें .ताकि उसका रिकार्ड
सरकार को भी मिल सके .अगर लॉकर धारक ऐसा नहीं करते हैं तो उनके लॉकर जब्त
कर लिए जाएँ . मुझे लगता है कि ऐसा होने पर अरबों-खरबों रूपयों का काला धन
अपने आप बाहर आने लगेगा और उसका उपयोग देश-हित में किया जा सकेगा .(<b>स्वराज्य करुण </b>)</div>
</div>
Swarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-79688396006813867962011-11-26T09:29:00.000+05:302011-11-26T09:30:05.809+05:30एक तमाचा तो नाकाफी है<div style="text-align: justify;">एक थप्पड़ दिल्ली में ऐसा पड़ा कि अब इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। सुनाई पड़नी भी चाहिए। आखिर यह आम आदमी का थप्पड़ है, इसकी गूंज तो दूर तलक जानी ही चाहिए। कहते हैं कि जब आम आदमी तस्त्र होकर आप खोता है तो ऐसा ही होता है। आखिर कब तक आम जनों को ये नेता बेवकूफ बनाते रहेंगे और कीड़े-मकोड़े समाते रहेंगे। अन्ना हजारे का बयान वाकई गौर करने लायक है कि क्या एक ही मारा। वास्तव में महंगाई को देखते हुए यह एक तमाचा तो नाकाफी लगता है।<br />इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश का हर आमजन महंगाई की मार से इस तरह मर रहा है कि उनको कुछ सुझता नहीं है। ऐसे में जबकि कुछ समझ नहीं आता है तो इंसान वही करता है जो उसे सही लगता है। और संभवत: उस आम आदमी हरविंदर सिंह ने भी वही किया जो उनको ठीक लगा। भले कानून के ज्ञाता लाख यह कहें कि कानून को हाथ में लेना ठीक नहीं है। लेकिन क्या कानून महज आम जनों के लिए बना है? क्या अपने देश के नेता और मंत्री कानून से बड़े हैं? क्यों कर आम जनों के खून पसीने की कमाई पर भ्रष्टाचार करके ये नेता मौज करते हैं। क्या भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है? हर नेता भ्रष्टाचार करके बच जाता है।<br />अब अपने देश के राजनेताओं को समझ लेना चाहिए कि आम आदमी जाग गया है, अब अगर ये नेता नहीं सुधरे तो हर दिन इनकों सड़कों पर पिटते रहने की नौबत आने वाली है। कौन कहता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि सरकार की मानसकिता ही नहीं है देश में महंगाई कम करने की। एक छोटा सा उदाहरण यह है कि आज पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ाई जा रही है। कीमत बढ़ रही है, वह तो ठीक है, लेकिन सरकार क्यों कर इस पर लगने वाले टैक्स को समाप्त करने का काम नहीं करती है। एक इसी काम से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा। जब पेट्रोल-डीजल पर टैक्स ही नहीं होगा तो यह इतना सस्ता हो जाएगा जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। आज पेट्रोल और डीजल की कीमत का दोगुना टैक्स लगता है। टैक्स हटा दिया जाए तो महंगाई हो जाएगी न समाप्त।<br />पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों की मांग ही आम जनों के खाने की वस्तुओं पर पड़ती है। माल भाड़ा बढ़ता है और महंगाई बेलगाम हो जाती है। जब महंगाई अपने देश में बेलगाम है तो एक आम इंसान बेलगाम होकर मंत्री का गाल लाल कर देता है तो <span>क्या</span> यह गलत है। एक आम आदमी के नजरिए से तो यह कताई गलत नहीं है।<br />थप्पड़ पर अन्ना हजारे के बयान पर विवाद खड़ा करने का भी प्रयास किया गया। उनका कहना गलत नहीं था, बस एक मारा। वास्तव में महंगाई की मार में जिस तरह से आम इंसान पिस रहा है, उस हिसाब से तो एक तमाचा नाकाफी है। <br /><br /></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/11286604850372846901noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-69089637729183130592011-11-12T09:14:00.000+05:302011-11-12T09:15:38.387+05:30राजनीति अब धंधेबाजों का खेल<div style="text-align: justify;"><span style="font-weight: bold; color: rgb(204, 0, 0);">आज अपने देश की राजनीति पूरी तरह से धंधेबाजों का खेल बनकर रह गई है। यह बात हम हवा में नहीं कह रहे हैं। आज अपने राज्य और देश का विकास चाहने वाले राजनेताओं की जरूरत नहीं रह गई है। अच्छे राजनेता राजनीति से किनारा कर गए हैं। अपने राज्य छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचंद्र सिंह देव भी ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजनीति की गंदगी को देखते हुए राजनीति से </span><span style="font-weight: bold; color: rgb(204, 0, 0);">किनारा</span><span style="font-weight: bold; color: rgb(204, 0, 0);"> कर लिया है। उनसे बात करने का मौका मिला तो उनका यह दर्द उभर कर सामना आया। उन्होंने जो कुछ हमें बताया हम उनके शब्दों में ही पेश कर रहे हैं। </span><br />छत्तीसगढ़ में विकास का सपना लिए मैंने 1967 में पहला विधानसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीता था। मेरी जीत के पीछे मेरा नहीं बल्कि मेरे पिता डीएस सिंह देव का नाम था जिनके कारण मुझ जैसे अंजान को मतदाताओं ने सिर आंखों पर बिठाया था। यहां से शुरू हुए मेरे राजनीति के सफर के बाद मैंने छह बार चुनाव जीता। पांच बार कांग्रेस की टिकिट पर और एक बार निर्दलीय। लेकिन इधर राजनीति में जिस तरह से हालात बदले और आज राजनीति जिस तरह से व्यापार में बदल गई है उसके कारण ही मुझे सक्रिय राजनीति से किनारा करना पड़ा। राजनीति से भले मैंने संन्यास ले लिया है, लेकिन जब भी विकास की बात आती है तो मैं चाहे छत्तीसगढ़ हो या मप्र या फिर मेरा पुराना राज्य बंगाल, मैं सबके लिए लड़ने हमेशा तैयार रहता हूं।<br />राजनीति में आने का पहला मकसद होता है अपने क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए काम करना। मैंने अपने राजनीतिक जीवन में यही प्रयास किया, लेकिन जब मुझे लगने लगा कि अब राजनीति ऐसी नहीं रह गई जिसमें रहकर कुछ किया जा सके तो मैंने संन्यास लेने का फैसला कर लिया। आज का मतदाता वोट डालने के एवज में पैसा चाहता है। वैसे मैं आज भी कांग्रेस में हूं, लेकिन सक्रिय राजनीति से मेरा कोई नाता नहीं रह गया है। मैं वर्तमान में राजनीतिक हालात की बात करूं तो आज कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टियों में अस्थिरता का दौर चल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के 11 सालों की यात्रा की बात करें तो कांग्रेस शासन काल के तीन साल तो राज्य की बुनियाद रखने में ही निकल गए। भाजपा सरकार के आठ सालों की बात करें तो इन सालों में भाजपा सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसको महत्वपूर्ण माना जा सके।<br />छत्तीसगढ़ बना तो इसकी आबादी दो करोड़ 5 लाख थी। छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य है। यहां कोयला, लोहा, बाक्साइड, चूना, पत्थर भारी मात्रा में हैं। राज्य में इंद्रावती नदी से लेकर महानदी के कारण पानी की कमी नहीं है। इतना सब होने के बाद जिस तरह से राज्य का विकास होना था वह नहीं हो सका है। राज्य की 75 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, लेकिन जहां तक विकास का सवाल है तो राज्य में दस प्रतिशत ही विकास किया गया है और वह भी शहरी क्षेत्रों में। राज्य में 35 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। राज्य में उद्योग तो लगे लेकिन ये उद्योग प्राथमिक उद्योग ही रहे। प्राथमिक उद्योग से मेरा तात्पर्य यह है कि कच्चे माल को सांचे में ढालने का ही काम किया गया है। उच्च तकनीक का कोई उद्योग राज्य में स्थापित नहीं किया जा सका है। अपने राज्य की तुलना में हरियाणा और पंजाब में कोई खनिज संपदा नहीं है, फिर भी इन राज्यों में उद्योगों की स्थिति छत्तीसगढ़ से ज्यादा अच्छी है। छत्तीसगढ़ का कच्चा माल बाहर जा रहा है, यह स्थिति राज्य के लिए हानिकारक है।<br />छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है पर कृषि के लिए कुछ नहीं किया गया है। मैं इंडिया टूडे के एक सर्वे का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें देश के राज्यों में छत्तीसगढ़ को कृषि में 19वें स्थान पर रखा गया है। इसी तरह से अधोसंरचना में 19वां, निवेश में छठा, स्वास्थ्य में तीसरा सुक्ष्म अर्थव्यवस्था में 19वां और संपूर्ण विकास के मामले में देश में 16वें स्थान में रखा गया है। यह सर्वे भी साबित करता है कि राज्य में विकास नहीं हो सका है। जो 10 प्रतिशत विकास हुआ है, वह अमीरों का हुआ है।<br />मेरा ऐसा मानना है कि भाजपा विकास के सही मायने समझ ही नहीं सकी। भाजपा को कृषि, लघु उद्योग, हस्तशिल्प पर जोर देना था ताकि गांवों में रहने वाली 75 प्रतिशत आबादी का विकास होता। ऐसा क्यूं नहीं हुआ यह एक चिंता का विषय है। जिस तरह से राज्य में उद्योग आ रहे हैं और खनिज संपदा का दोहन कर रहे हैं उससे राज्य आने वाले 40-50 सालों में खोखला हो जाएगा। सरकार ने दो रुपए किलो चावल दिया, यह अच्छी बात है, लेकिन इससे आर्थिक विकास कहां हुआ? सरकार को गरीबी रेखा में जीवन यापन करने वालों को इस रेखा से बाहर करने की दिशा में काम करना था।<br />मैं अंत में अक्टूबर 2000 में मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लिए गए अपने एक पत्र का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें मैंने उन्हें लिखा था कि आपके पास तो बालाघाट का एक लांजी ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, लेकिन छत्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा क्षेत्र नक्सल प्रभावित है, अगर नक्सली क्षेत्र में सही विकास नहीं हुआ तो छत्तीसगढ़ नक्सलगढ़ हो जाएगा, आज लगता है कि मेरी यह भविष्यवाणी सच साबित हो गई है।<br /><br /></div>राजकुमार ग्वालानीhttp://www.blogger.com/profile/11286604850372846901noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-86625356619431228872011-04-03T14:21:00.091+05:302013-10-07T23:51:26.177+05:30आज़ादी और लोकतंत्र पर खतरे का संकेत !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div id="post-css">
<table border="0" cellpadding="0" id="border-table"><tbody>
<tr> <td align="left" valign="top"><table border="0" cellpadding="0" style="border-bottom: 1px dotted rgb(204, 204, 204); margin-bottom: 10px;"><tbody>
<tr> <td align="left" valign="top"><b> ( चौथी दुनिया में प्रकाशित यह आलेख राज भाटिया के ब्लॉग पर था ,जो उन्हें किसी ने ई-मेल से भेजा था . यह खोजपूर्ण रिपोर्ट वाकई हमारे देश की आज़ादी और हमारे लोकतंत्र पर गंभीर खतरे का संकेत देकर जनता को सचेत करती है . राष्ट्र-हित और जन-हित में इसकी 'चर्चा पान की दुकान ' पर भी होनी चाहिए .इसलिए इसे यहाँ जस का तस प्रस्तुत किया जा रहा है. केवल मूल-आलेख के शीर्षक में परिवर्तन किया गया है. शेष यथावत है. हम 'चौथी दुनिया' को इस गंभीर राष्ट्रीय समस्या पर रिपोर्ट प्रकाशन के लिए बधाई और भाई राज भाटिया को अपने ब्लॉग पर इसकी प्रस्तुति के लिए धन्यवाद देते हुए 'पान की दुकान' के हमारे आदरणीय ग्राहकों के बीच चर्चा के लिए भी इसे पेश कर रहे हैं )</b></td> <td align="left" valign="top" width="94"><div id="text_size" style="float: right;">
<div id="plustext">
</div>
</div>
</td></tr>
</tbody></table>
<table border="0" cellpadding="0" style="border-bottom: 1px dotted rgb(204, 204, 204); margin-bottom: 10px;"><tbody>
<tr><td align="left" valign="top" width="94"><br /></td><td align="left" valign="top" width="94"><br /></td> </tr>
</tbody></table>
<div class="entry">
<div id="textchange">
<div style="background: none repeat scroll 0% 0% rgb(254, 252, 204); border-bottom: 2px solid rgb(0, 0, 255); border-top: 2px solid rgb(0, 0, 255);">
<ul>
<li><span style="color: red;"><b>नकली नोट पर अब तक का सबसे बडा ख़ुलासा</b></span></li>
<li><span style="color: red;"><b>रिजर्व बैंक के ख़जाने में नकली नोट कैसे पहुँचे</b></span></li>
<li><span style="color: red;"><b>सीबीआई ने रिजर्व बैंक में क्यों छापा मारा</b></span></li>
<li><span style="color: red;"><b>नकली नोट के खुलासे से यूरोप में भुचाल क्यों आया</b></span></li>
</ul>
</div>
देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सीबीआई ने छापा डाला. उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले. वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की. दरअसल सीबीआई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया. या शायद सीबीआई ने भारत सरकार को इस घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं. देश अंधेरे में और देश को तबाह करने वाले रोशनी में हैं. आइए, आपको <a href="http://www.chauthiduniya.com/?attachment_id=21249" rel="attachment wp-att-21249"><br />
</a>आज़ाद भारत के सबसे बड़े आपराधिक षड्यंत्र के बारे में बताते हैं, जिसे हमने पांच महीने की तलाश के बाद आपके सामने रखने का फ़ैसला किया है. कहानी है रिज़र्व बैंक के माध्यम से देश के अपराधियों द्वारा नक़ली नोटों का कारोबार करने की.<br />
नक़ली नोटों के कारोबार ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपने जाल में जकड़ लिया है. आम जनता के हाथों में नक़ली नोट हैं, पर उसे ख़बर तक नहीं है. बैंक में नक़ली नोट मिल रहे हैं, एटीएम नक़ली नोट उगल रहे हैं. असली-नक़ली नोट पहचानने वाली मशीन नक़ली नोट को असली बता रही है. इस देश में क्या हो रहा है, यह समझ के बाहर है. चौथी दुनिया की तहक़ीक़ात से यह पता चला है कि जो कंपनी भारत के लिए करेंसी छापती रही, वही 500 और 1000 के नक़ली नोट भी छाप रही है. हमारी तहक़ीक़ात से यह अंदेशा होता है कि देश की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाने-अनजाने में नोट छापने वाली विदेशी कंपनी के पार्टनर बन चुके हैं. अब सवाल यही है कि इस ख़तरनाक साज़िश पर देश की सरकार और एजेंसियां क्यों चुप हैं?<br />
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<b><span style="color: #333399;">एक जानकारी जो पूरे देश से छुपा ली गई, अगस्त 2010 में सीबीआई की टीम ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वाल्ट में छापा मारा. सीबीआई के अधिकारियों का दिमाग़ उस समय सन्न रह गया, जब उन्हें पता चला कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के ख़ज़ाने में नक़ली नोट हैं. रिज़र्व बैंक से मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिसे पाकिस्तान की खु़फिया एजेंसी नेपाल के रास्ते भारत भेज रही है. सवाल यह है कि भारत के रिजर्व बैंक में नक़ली नोट कहां से आए? क्या आईएसआई की पहुंच रिज़र्व बैंक की तिजोरी तक है या फिर कोई बहुत ही भयंकर साज़िश है, जो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर चुकी है. सीबीआई इस सनसनीखेज मामले की तहक़ीक़ात कर रही है. छह बैंक कर्मचारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की है. इतने महीने बीत जाने के बावजूद किसी को यह पता नहीं है कि जांच में क्या निकला? सीबीआई और वित्त मंत्रालय को देश को बताना चाहिए कि बैंक अधिकारियों ने जांच के दौरान क्या कहा? नक़ली नोटों के इस ख़तरनाक खेल पर सरकार, संसद और जांच एजेंसियां क्यों चुप है तथा संसद अंधेरे में क्यों है?</span></b></blockquote>
अब सवाल यह है कि सीबीआई को मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में छापा मारने की ज़रूरत क्यों पड़ी? रिजर्व बैंक से पहले नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के क़रीब 70-80 बैंकों में छापा पड़ा. इन बैंकों में इसलिए छापा पड़ा, क्योंकि जांच एजेंसियों को ख़बर मिली है कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नक़ली नोट भेज रही है. बॉर्डर के इलाक़े के बैंकों में नक़ली नोटों का लेन-देन हो रहा है. आईएसआई के रैकेट के ज़रिए 500 रुपये के नोट 250 रुपये में बेचे जा रहे हैं. छापे के दौरान इन बैंकों में असली नोट भी मिले और नक़ली नोट भी. जांच एजेंसियों को लगा कि नक़ली नोट नेपाल के ज़रिए बैंक तक पहुंचे हैं, लेकिन जब पूछताछ हुई तो सीबीआई के होश उड़ गए. कुछ बैंक अधिकारियों की पकड़-धकड़ हुई. ये बैंक अधिकारी रोने लगे, अपने बच्चों की कसमें खाने लगे. उन लोगों ने बताया कि उन्हें नक़ली नोटों के बारे में कोई जानकारी नहीं, क्योंकि ये नोट रिजर्व बैंक से आए हैं. यह किसी एक बैंक की कहानी होती तो इसे नकारा भी जा सकता था, लेकिन हर जगह यही पैटर्न मिला. यहां से मिली जानकारी के बाद ही सीबीआई ने फ़ैसला लिया कि अगर नक़ली नोट रिजर्व बैंक से आ रहे हैं तो वहीं जाकर देखा जाए कि मामला क्या है. सीबीआई ऱिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहुंची, यहां उसे नक़ली नोट मिले. हैरानी की बात यह है कि रिज़र्व बैंक में मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिन्हें आईएसआई नेपाल के ज़रिए भारत भेजती है.<br />
रिज़र्व बैंक आफ इंडिया में नक़ली नोट कहां से आए, इस गुत्थी को समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ली नोटों के मामले को समझना ज़रूरी है. दरअसल हुआ यह कि आईएसआई की गतिविधियों की वजह से यहां आएदिन नक़ली नोट पकड़े जाते हैं. मामला अदालत पहुंचता है. बहुत सारे केसों में वकीलों ने अनजाने में जज के सामने यह दलील दी कि पहले यह तो तय हो जाए कि ये नोट नक़ली हैं. इन वकीलों को शायद जाली नोट के कारोबार के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था, स़िर्फ कोर्ट से व़क्त लेने के लिए उन्होंने यह दलील दी थी. कोर्ट ने जब्त हुए नोटों को जांच के लिए सरकारी लैब भेज दिया, ताकि यह तय हो सके कि ज़ब्त किए गए नोट नक़ली हैं. रिपोर्ट आती है कि नोट असली हैं. मतलब यह कि असली और नक़ली नोटों के कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिन्ह सब एक जैसे हैं. जांच एजेंसियों के होश उड़ गए कि अगर ये नोट असली हैं तो फिर 500 का नोट 250 में क्यों बिक रहा है. उन्हें तसल्ली नहीं हुई. फिर इन्हीं नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया. वहां से भी रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं. फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया. नक़ली नोट कितने असली हैं, इसका पता तब चला, जब अमेरिका की एक लैब ने यह कहा कि ये नोट नक़ली हैं. लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि जिन्हें पकड़ना मुश्किल है और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं और नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है. अमेरिका की लैब ने जांच एजेंसियों को पूरा प्रूव दे दिया और तरीक़ा बताया कि कैसे नक़ली नोटों को पहचाना जा सकता है. इस लैब ने बताया कि इन नक़ली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां छेड़छाड़ हुई है. इसके बाद ही नेपाल बॉर्डर से सटे बैंकों में छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ. नक़ली नोटों की पहचान हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि नेपाल से आने वाले 500 एवं 1000 के नोट और रिज़र्व बैंक में मिलने वाले नक़ली नोट एक ही तरह के कैसे हैं. जिस नक़ली नोट को आईएसआई भेज रही है, वही नोट रिजर्व बैंक में कैसे आया. दोनों जगह पकड़े गए नक़ली नोटों के काग़ज़, इंक और छपाई एक जैसी क्यों है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के 500 और 1000 के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है और पाकिस्तान के पास वह टेक्नोलॉजी है ही नहीं. इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जहां से ये नक़ली नोट आईएसआई को मिल रहे हैं, वहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी सप्लाई हो रहे हैं. अब दो ही बातें हो सकती हैं. यह जांच एजेंसियों को तय करना है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों की मिलीभगत से नक़ली नोट आया या फिर हमारी अर्थव्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय मा़फ़िया गैंग की साज़िश का शिकार हो गई है. अब सवाल उठता है कि ये नक़ली नोट छापता कौन है.<br />
हमारी तहक़ीक़ात डे ला रू नाम की कंपनी तक पहुंच गई. जो जानकारी हासिल हुई, उससे यह साबित होता है कि नक़ली नोटों के कारोबार की जड़ में यही कंपनी है. डे ला रू कंपनी का सबसे बड़ा करार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ था, जिसे यह स्पेशल वॉटरमार्क वाला बैंक नोट पेपर सप्लाई करती रही है. पिछले कुछ समय से इस कंपनी में भूचाल आया हुआ है. जब रिजर्व बैंक में छापा पड़ा तो डे ला रू के शेयर लुढ़क गए. यूरोप में ख़राब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला छा गया. इस कंपनी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कुछ ऐसे नोट दे दिए, जो असली नहीं थे. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टीम इंग्लैंड गई, उसने डे ला रू कंपनी के अधिकारियों से बातचीत की. नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने हम्प्शायर की अपनी यूनिट में उत्पादन और आगे की शिपमेंट बंद कर दी. डे ला रू कंपनी के अधिकारियों ने भरोसा दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा कि कंपनी से जुड़ी कई गंभीर चिंताएं हैं. अंग्रेजी में कहें तो सीरियस कंसर्नस. टीम वापस भारत आ गई.<br />
डे ला रू कंपनी की 25 फीसदी कमाई भारत से होती है. इस ख़बर के आते ही डे ला रू कंपनी के शेयर धराशायी हो गए. यूरोप में हंगामा मच गया, लेकिन हिंदुस्तान में न वित्त मंत्री ने कुछ कहा, न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कोई बयान दिया. रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों ने जो चिंताएं बताईं, वे चिंताएं कैसी हैं. इन चिंताओं की गंभीरता कितनी है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ डील बचाने के लिए कंपनी ने माना कि भारत के रिज़र्व बैंक को दिए जा रहे करेंसी पेपर के उत्पादन में जो ग़लतियां हुईं, वे गंभीर हैं. बाद में कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी को 13 अगस्त, 2010 को इस्ती़फा देना पड़ा. ये ग़लतियां क्या हैं, सरकार चुप क्यों है, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया क्यों ख़ामोश है. मज़ेदार बात यह है कि कंपनी के अंदर इस बात को लेकर जांच चल रही थी और एक हमारी संसद है, जिसे कुछ पता नहीं है.<br />
5 जनवरी, 2011 को यह ख़बर आई कि भारत सरकार ने डे ला रू के साथ अपने संबंध ख़त्म कर लिए. पता यह चला कि 16,000 टन करेंसी पेपर के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू की चार प्रतियोगी कंपनियों को ठेका दे दिया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू को इस टेंडर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इतना बड़ा फै़सला क्यों लिया. इस फै़सले के पीछे तर्क क्या है. सरकार ने संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया. 28 जनवरी को डे ला रू कंपनी के टिम कोबोल्ड ने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ उनकी बातचीत चल रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि डे ला रू का अब आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ कोई समझौता होगा या नहीं. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी डे ला रू से कौन बात कर रहा है और क्यों बात कर रहा है. मज़ेदार बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ख़ामोश रहा.<br />
इस तहक़ीक़ात के दौरान एक सनसनीखेज सच सामने आया. डे ला रू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 2005 में सरकार ने दफ्तर खोलने की अनुमति दी. यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में डील करती है. यह भारत में असली और नक़ली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेचती है. मतलब यह है कि यही कंपनी नक़ली नोट भारत भेजती है और यही कंपनी नक़ली नोटों की जांच करने वाली मशीन भी लगाती है. शायद यही वजह है कि देश में नक़ली नोट भी मशीन में असली नज़र आते हैं. इस मशीन के सॉफ्टवेयर की अभी तक जांच नहीं की गई है, किसके इशारे पर और क्यों? जांच एजेंसियों को अविलंब ऐसी मशीनों को जब्त करना चाहिए, जो नक़ली नोटों को असली बताती हैं. सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि डे ला रू कंपनी के रिश्ते किन-किन आर्थिक संस्थानों से हैं. नोटों की जांच करने वाली मशीन की सप्लाई कहां-कहां हुई है.<br />
हमारी जांच टीम को एक सूत्र ने बताया कि डे ला रू कंपनी का मालिक इटालियन मा़िफया के साथ मिलकर भारत के नक़ली नोटों का रैकेट चला रहा है. पाकिस्तान में आईएसआई या आतंकवादियों के पास जो नक़ली नोट आते हैं, वे सीधे यूरोप से आते हैं. भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और देश की जांच एजेंसियां अब तक नक़ली नोटों पर नकेल इसलिए नहीं कस पाई हैं, क्योंकि जांच एजेंसियां अब तक इस मामले में पाकिस्तान, हांगकांग, नेपाल और मलेशिया से आगे नहीं देख पा रही हैं. जो कुछ यूरोप में हो रहा है, उस पर हिंदुस्तान की सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया चुप है.<br />
अब सवाल उठता है कि जब देश की सबसे अहम एजेंसी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया, तब सरकार ने क्या किया. जब डे ला रू ने नक़ली नोट सप्लाई किए तो संसद को क्यों नहीं बताया गया. डे ला रू के साथ जब क़रार ़खत्म कर चार नई कंपनियों के साथ क़रार हुए तो विपक्ष को क्यों पता नहीं चला. क्या संसद में उन्हीं मामलों पर चर्चा होगी, जिनकी रिपोर्ट मीडिया में आती है. अगर जांच एजेंसियां ही कह रही हैं कि नक़ली नोट का काग़ज़ असली नोट के जैसा है तो फिर सप्लाई करने वाली कंपनी डे ला रू पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. सरकार को किसके आदेश का इंतजार है. समझने वाली बात यह है कि एक हज़ार नोटों में से दस नोट अगर जाली हैं तो यह स्थिति देश की वित्तीय व्यवस्था को तबाह कर सकती है. हमारे देश में एक हज़ार नोटों में से कितने नोट जाली हैं, यह पता कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि जाली नोट अब हमारे बैंकों और एटीएम मशीनों से निकल रहे हैं.<br />
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<b>डे ला रू का नेपाल और आई एस आई कनेक्शन</b></h2>
कंधार हाईजैक की कहानी बहुत पुरानी हो गई है, लेकिन इस अध्याय का एक ऐसा पहलू है, जो अब तक दुनिया की नज़र से छुपा हुआ है. इस खउ-814 में एक ऐसा शख्स बैठा था, जिसके बारे में सुनकर आप दंग रह जाएंगे. इस आदमी को दुनिया भर में करेंसी किंग के नाम से जाना जाता है. इसका असली नाम है रोबेर्टो ग्योरी. यह इस जहाज में दो महिलाओं के साथ स़फर कर रहा था. दोनों महिलाएं स्विट्जरलैंड की नागरिक थीं. रोबेर्टो़ खुद दो देशों की नागरिकता रखता है, जिसमें पहला है इटली और दूसरा स्विट्जरलैंड. रोबेर्टो को करेंसी किंग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह डे ला रू नाम की कंपनी का मालिक है. रोबेर्टो ग्योरी को अपने पिता से यह कंपनी मिली. दुनिया की करेंसी छापने का 90 फी़सदी बिजनेस इस कंपनी के पास है. यह कंपनी दुनिया के कई देशों कें नोट छापती है. यही कंपनी पाकिस्तान की आईएसआई के लिए भी काम करती है. जैसे ही यह जहाज हाईजैक हुआ, स्विट्जरलैंड ने एक विशिष्ट दल को हाईजैकर्स से बातचीत करने कंधार भेजा. साथ ही उसने भारत सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह किसी भी क़ीमत पर करेंसी किंग रोबेर्टो ग्योरी और उनके मित्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. ग्योरी बिजनेस क्लास में स़फर कर रहा था. आतंकियों ने उसे प्लेन के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया. लोग परेशान हो रहे थे, लेकिन ग्योरी आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था. उसके पास सैटेलाइट पेन ड्राइव और फोन थे.यह आदमी कंधार के हाईजैक जहाज में क्या कर रहा था, यह बात किसी की समझ में नहीं आई है. नेपाल में ऐसी क्या बात है, जिससे स्विट्जरलैंड के सबसे अमीर व्यक्ति और दुनिया भर के नोटों को छापने वाली कंपनी के मालिक को वहां आना पड़ा. क्या वह नेपाल जाने से पहले भारत आया था. ये स़िर्फ सवाल हैं, जिनका जवाब सरकार के पास होना चाहिए. संसद के सदस्यों को पता होना चाहिए, इसकी जांच होनी चाहिए थी. संसद में इस पर चर्चा होनी चाहिए थी. शायद हिंदुस्तान में फैले जाली नोटों का भेद खुल जाता.<br />
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<b>नकली नोंटों का मायाजाल</b></h2>
सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि 2006 से 2009 के बीच 7.34 लाख सौ रुपये के नोट, 5.76 लाख पांच सौ रुपये के नोट और 1.09 लाख एक हज़ार रुपये के नोट बरामद किए गए. नायक कमेटी के मुताबिक़, देश में लगभग 1,69,000 करोड़ जाली नोट बाज़ार में हैं. नक़ली नोटों का कारोबार कितना ख़तरनाक रूप ले चुका है, यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों में हुईं कुछ महत्वपूर्ण बैठकों के बारे में जानते हैं. इन बैठकों से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की एजेंसियां सब कुछ जानते हुए भी बेबस और लाचार हैं. इस धंधे की जड़ में क्या है, यह हमारे ख़ुफिया विभाग को पता है. नक़ली नोटों के लिए बनी ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत नक़ली नोट प्रिंट करने वालों के स्रोत तक नहीं पहुंच सका है. नोट छापने वाले प्रेस विदेशों में लगे हैं. इसलिए इस मुहिम में विदेश मंत्रालय की मदद लेनी होगी, ताकि उन देशों पर दबाव डाला जा सके. 13 अगस्त, 2009 को सीबीआई ने एक बयान दिया कि नक़ली नोट छापने वालों के पास भारतीय नोट बनाने वाला गुप्त सांचा है, नोट बनाने वाली स्पेशल इंक और पेपर की पूरी जानकारी है. इसी वजह से देश में असली दिखने वाले नक़ली नोट भेजे जा रहे हैं. सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि नक़ली नोटों के मामलों की तहक़ीक़ात के लिए देश की कई एजेंसियों के सहयोग से एक स्पेशल टीम बनाई गई है. 13 सितंबर, 2009 को नॉर्थ ब्लॉक में स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के हेड क्वार्टर में एक मीटिंग हुई थी, जिसमें इकोनोमिक इंटेलिजेंस की सारी अहम एजेंसियों ने हिस्सा लिया. इसमें डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, वित्त मंत्रालय, सीबीआई और सेंट्रल इकोनोमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि जाली नोटों का कारोबार अब अपराध से बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया है. इससे पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आईबी, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, सीईआईबी, कस्टम और अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस बैठक में यह तय हुआ कि ब्रिटेन के साथ यूरोप के दूसरे देशों से इस मामले में बातचीत होगी, जहां से नोट बनाने वाले पेपर और इंक की सप्लाई होती है. तो अब सवाल उठता है कि इतने दिनों बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, जांच एजेंसियों को किसके आदेश का इंतजार है<b>?( यह आलेख 'चौथी दुनिया' से साभार )</b><br />
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Swarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-3177859666764779812011-04-02T06:49:00.000+05:302011-04-02T06:49:16.658+05:30वाकई , आईडिया हो तो ऐसा !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><h2 class="date-header"></h2><div class="date-posts"><div class="post-outer"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/-CXm53z01hoI/TZYQ3PilhHI/AAAAAAAAAPA/WtjA9cPIhFg/s1600/Cricket-Revolution-5.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="147" src="http://1.bp.blogspot.com/-CXm53z01hoI/TZYQ3PilhHI/AAAAAAAAAPA/WtjA9cPIhFg/s320/Cricket-Revolution-5.jpg" width="320" /></a></div><div class="post hentry"><a href="http://www.blogger.com/post-edit.g?blogID=1800578818916214815&postID=317785966676477981" name="8621511114683377094"></a> </div><div class="post hentry"> ( लघु-कथा ) <br />
<div class="post-header"></div><div class="post-body entry-content" id="post-body-8621511114683377094"><div dir="ltr" style="text-align: left;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"> लेखक <b> -- स्वराज्य करुण </b> </div></div><div dir="ltr" style="text-align: left;"> देश के पहरेदार और समाज के ठेकेदार अब हमको और आपको 'जागते रहो' की पुकार लगा कर सावधान नहीं करते. आज-कल उनका जोशीला नारा हो गया है--'खेलते रहो, खेलते रहो '. इसी में उनकी भलाई है . क्यों और कैसे , यह जानना हो , तो पढ़िए यह लघु-कथा . </div><div dir="ltr" style="text-align: left;"> किसी देश के एक शहर में कुछ जागरूक युवाओं ने महंगाई , मिलावट ,मुनाफाखोरी, जमाखोरी, बेरोजगारी कल-कारखानों के बढ़ते प्रदूषण और सार्वजनिक जीवन में व्याप रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रगतिशील युवा मंच का गठन किया था. काले कारोबारियों , उद्योगपतियों और अज़गर संस्कृति वाले भ्रष्ट अफसरों ने अपने कथित वी.आई .पी. क्लब में शराब की बहती नदी के बीच इस समाचार को छोटे परदे के लाफ्टर -शो वाले जोकरों का कोई लतीफा मान कर चटखारों के साथ इसका खूब मज़ा लिया.<br />
एक दिन युवा मंच के कार्यकर्ताओं ने सेठ धरमचंद की दुकान पर मिर्च के पैकेट में लकड़ी के बुरादे की मिलावट पकड़ ली. दूसरे दिन इन्ही कार्यकर्ताओं ने एक मशहूर मिठाई की दुकान' मधुर मिष्ठान्न' में नकली खोवे का जखीरा बरामद किया . प्रमाण सहित दोनों मामलों की शिकायत स्थानीय खाद्य-निरीक्षक से की गयी. लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई . कलेक्टर को लिखा गया . कोई ज़वाब नहीं आया .शिकायत ने और भी आला -अफसरों के दफ्तरों तक दौड़ लगाई . फिर भी कोई नतीजा नहीं निकला . सेठ धरमचंद और मिठाई दुकानदार दोनों खूब हँस रहे थे ,लेकिन प्रगतिशील युवा मंच ने जब नाराज़ हो कर शहर बंद का आव्हान किया ,तो दोनों चिंतित हो गए .<br />
सेठ जी ने मोबाईल फोन पर आरा -मिल के मालिक सत्यव्रत और मधुर-मिष्ठान्न के प्रोप्राइटर हरिश्चन्द्र को आपात बैठक के लिए बुलवाया . दरअसल जिस मामले को वे तीनों मामूली समझ रहे थे ,वह उतना ही गंभीर होता जा रहा था . मिलावट से परेशान जनता इन युवाओं को समर्थन दे रही थी . सत्यव्रत जी का चिंतित होना भी स्वाभाविक था.क्योंकि सेठ धरमचंद के 'देशभक्त ब्रांड ' मिर्च के लिए लकड़ी के बुरादे की पूर्ति उनके आरा-मिल से होती थी. हरिश्चन्द्र जी के माथे पर भी गहरी चिंता की लकीरें उभरने लगी थी .कारण यह कि नकली खोवे के राष्ट्रीय कारोबार में भी तीनों साझेदार थे.<br />
अब तक तीनों को मिलावट के इस काले कारोबार में करोड़ों का मुनाफ़ा हो चुका था और वे पिछले कई वर्षों से ऐश-ओ-आराम की जिंदगी का मज़ा ले रहे थे .रहस्यों का पर्दाफ़ाश होने पर अब उन्हें यह फायदे का व्यापार डूबता दिखाई दे रहा था. तीनों साझेदारों की आपात बैठक सेठ धरमचंद के महलनुमा मकान में शुरू हुई . बैठक में सेठ धरमचंद ने धरम-करम का हवाला देते हुए कहा - जनता को बेवकूफ बना कर रूपए कमाने के दिन लगता है कि लद गए . क्या करें ,समझ में नहीं आ रहा . सत्यव्रत जी ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा- '' निराश नहीं होना चाहिए . तुम तो अभी से हिम्मत हार रहे हो.'' धरमचंद ने मायूसी के साथ कहा -''अब उपाय ही क्या रह गया है सत्यव्रत भाई ? '' तभी सेठ धरमचंद का पैंतीस वर्षीय सुपुत्र वसूलीचंद ' 'उपाय है बाबूजी ,मै बताता हूं '' कहते हुए कमरे में आया . वह स्थानीय महाविद्यालय में पिछले दस वषों से समाज-शास्त्र में एम.ए. का छात्र था और छात्र-संघ का अध्यक्ष भी. ''क्या उपाय है बेटे ? ''--तीनों साझेदारों ने बहुत व्यग्र होकर उसकी तरफ देखा . इस पर मुस्कुराते हुए 'धर्म-पुत्र ' ने उन्हें जो उपाय बताया , उसे सुनकर तीनों मित्रों की बांछे खिल उठीं . सत्यव्रत जी ने धरमचंद की पीठ ठोंकी -वाह ! क्या होनहार बेटा पाया है तुमने !<br />
'मिलावटखोरों के खिलाफ कल शहर बंद के आयोजन को सफल बनाएँ ' --प्रगतिशील युवा मंच के कार्यकर्ता एक सायकल रिक्शे पर घूम-घूम कर लाऊड स्पीकर से नागरिकों के नाम अपील प्रसारित कर रहे थे . जनता में मिलावटखोरों के खिलाफ काफी गुस्सा था. लिहाजा ,वह इस बंद को कामयाब बनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार थी . बंद के दिन रास्ते वीरान हो गए थे . मिलावटखोरों ने भी डर के मारे अपनी दुकानें बंद रखी . नागरिकों का यह स्व-स्फूर्त बंद शत-प्रतिशत सफल होने के साफ़-साफ़ संकेत दे रहा था. सुबह के दस बजे ही थे . <br />
तभी शहर की वीरान सडकों पर एक मोटर गाड़ी घूमने लगी , जिस पर लाऊड-स्पीकर से ऐलान किया जा रहा था --- ' आज सवेरे नेहरु-स्टेडियम में हमारे जिले और पड़ोसी जिले के प्रसिद्ध क्लबों की मशहूर टीमों के बीच बीस-बीस ओवरों का क्रिकेट मैच होगा. इसका शुभारंभ महेंद्र सिंह धोनी के ड्राय -क्लीनर सुरेन्द्र सिंह जी करेंगे . आप लोगों से निवेदन है कि मैच देख कर अपना मनोरंजन करें और खिलाड़ियों का भी हौसला बढाएं ! '' फिर क्या था ? स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी अपने घरों से निकल कर परेड-मैदान की तरफ दौड़ने लगे ! मूंगफली . चाट-पकौड़े , टायलेट-क्लीनर (कोल्ड-ड्रिंक ), पान-गुटका और बीडी -सिगरेट बेचने के लिए खोमचे वाले और छोटे दुकानदार भी दौड़े ! शहर के रईसजादों की चमचमाती कारें भी मैदान की ओर दौड़ने लगी .मैदान खचाखच भर गया . विशेष अतिथियों के लिए आरक्षित सीटों पर बैठे सेठ धरमचंद , सत्यव्रत और हरिश्चन्द्र काफी खुश नजर आ रहे थे . उन्होंने देखा - शहर के नागरिक मिलावट की समस्या को भूल कर क्रिकेट मैच देखने में मगन हैं और नगर-बंद की अपील करने वाले प्रगतिशील युवा मंच के कार्यकर्ता अपना सिर धुन रहे हैं !<br />
सत्यव्रत जी ने सेठ धरमचंद को बधाई दी और कहा --- '' वाह ! क्या आइडिया दिया था तुम्हारे लाडले बेटे ने ! अब हम 'देशभक्त' ब्रांड मिर्च पावडर का व्यापार खुलकर आसानी से कर सकेंगे ! मिर्च पावडर में बुरादे की मिलावट के लिए मेरी 'जंगल-प्रेमी' आरा मशीन भी खूब चलेगी !'' बधाई हो धरमचंद ! मेरी नकली खोवे की मिठाइयां भी खूब बिकेंगी !''--हरिश्चन्द्र ने चहकते हुए कहा . क्रिकेट मैच देखने के बाद तीनो साझेदार खुशी-खुशी एक सितारा होटल के बीयर-बार में गए,जहां उन्होंने जमकर जाम छलकाया . <br />
लेखक - <b>स्वराज्य करुण </b></div></div></div></div></div></div>Swarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-25611456266678667212011-03-30T23:16:00.000+05:302011-03-30T23:16:55.726+05:30कर्मचारी चयन आयोग की लापरवाही<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><a href="http://swaraj-karun.blogspot.com/" style="display: block;"> </a> <br />
<div class="header-cap-bottom cap-bottom"> </div><div class="tabs-outer"> <div class="tabs-cap-top cap-top"> </div><div class="fauxborder-left tabs-fauxborder-left"> <div class="region-inner tabs-inner"> <div class="tabs section" id="crosscol"><div class="widget LinkList" id="LinkList1"> <div class="date-outer"> <span class="widget-item-control"> <span class="item-control blog-admin"> <a class="quickedit" href="http://www.blogger.com/rearrange?blogID=9115179131781037598&widgetType=LinkList&widgetId=LinkList1&action=editWidget&sectionId=crosscol" target="configLinkList1" title="Edit"> </a></span></span><div class="date-posts"> <div class="post-outer"> <div class="post hentry"> <br />
<div class="post-header"> </div><div class="post-body entry-content" id="post-body-2552452644568836522"> <div dir="ltr" style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> </div><div style="text-align: left;"> <span style="font-size: large;">बेरोजगार इंजीनियरों का भविष्य हुआ चौपट !</span></div><div style="text-align: left;"><br />
</div><div style="text-align: left;"><div style="text-align: left;"> केंद्र सरकार के कुछ नासमझ और लापरवाह अधिकारी देश के बेरोजगार युवाओं के भविष्य के साथ किस बेशर्मी और बेरहमी से खिलवाड़ कर रहे हैं , इसका ताजा उदाहरण बीते रविवार 27 मार्च को केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग द्वारा जूनियर इंजीनियर भर्ती के लिए दिल्ली , जयपुर , देहरादून , कोलकाता , मुम्बई , नागपुर, रायपुर और भोपाल सहित भारत के 33 शहरों में आयोजित परीक्षा में देखा गया . </div><div style="text-align: left;"> यह अखिल भारतीय खुली संयुक्त परीक्षा केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग , सैन्य अभियांत्रिकी सेवा आदि सरकारी एजेंसियों में सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की भर्ती के लिए थी . इसमें भारत सरकार के मान्यता प्राप्त संस्थानों से सिविल अथवा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा या सम- कक्ष उपाधि प्राप्त आवेदक शामिल हो सकते थे , जैसा कि आयोग द्वारा एक जनवरी 2011 के साप्ताहिक 'रोजगार समाचार ' में प्रकाशित विज्ञापन में लिखा हुआ है .हालांकि इस विरोधाभासी विज्ञापन में यह भी लिखा हुआ है कि दोनों प्रश्न-पत्रों में सामान्य-अभियांत्रिकी के अंतर्गत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल के सवाल भी पूछे जाएंगे , लेकिन वास्तव में ये दोनों ही विषय इंजीनियरिंग की अलग-अलग शाखाओं के हैं और दोनों में अलग-अलग डिग्री -डिप्लोमा का प्रावधान है. दोनों के पाठ्यक्रम भी अलग-अलग स्वरुप के होते हैं.<b> हैरत की बात है कि जब कर्मचारी चयन आयोग द्वारा केवल सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की भर्ती होनी थी तो उसके लिए आयोजित लिखित परीक्षा में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रश्न देने का क्या औचित्य था ?</b> प्रश्न पत्र तैयार करने वाले की बुद्धि पर तरस आता है. विज्ञापन तो सिर्फ सिविल और इलेक्ट्रिकल वालों के लिए जारी हुआ था . लेकिन देश के हज़ारों बेरोजगार अभ्यर्थियों ने इस विज्ञापन के आधार पर यह सोच कर आवेदन कर दिया था कि शायद परीक्षा की तारीख आते तक आयोग वालों को अपनी गलती का एहसास हो जाएगा और वे इस विरोधाभासी प्रावधान को सुधार लेंगे .लेकिन जब परीक्षा हुई तो उसमें इलेक्ट्रिकल वालों को मैकेनिकल के सवाल हल करना भी अनिवार्य था .</div> कुछ परीक्षार्थियों ने बताया कि यह तो वही बात हुई , जैसे एलोपैथिक(एम.बी.बी. एस. ) डॉक्टरों की भर्ती परीक्षा में आयुर्वेदिक (बी. ए. एम. एस. ) या नहीं तो होम्योपैथिक (बी.एच. एम.एस. ) पाठ्यक्रम के प्रश्न दे दिए जाएँ , या फिर वनस्पति-विज्ञान की परीक्षा में गणित के और संस्कृत भाषा के प्रश्न-पत्र में अंग्रेजी भाषा के सवाल पूछे जाएँ ! आयोग द्वारा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की संयुक्त भर्ती परीक्षा के प्रथम प्रश्न-पत्र में कुल दो सौ ऑब्जेक्टिव -टाईप के सवाल दिए गए थे . कुल अंक दो सौ थे . यानी प्रत्येक प्रश्न पर एक अंक. इनमे सामान्य बुद्धि और तर्क के 50 और सामान्य जानकारी के 50 प्रश्नों पर तो परीक्षार्थियों को आपत्ति नहीं हुई , लेकिन प्रश्न-पत्र के भाग-ख में सामान्य इंजीनियरिंग के तहत इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल के कुल 100 प्रश्नों पर उन्होंने यह सवाल उठाया है कि आखिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. डिग्री अथवा पॉलीटेक्निक डिप्लोमा किया हुआ आवेदक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के सवाल कैसे हल कर पाएगा ?<br />
इसी तरह द्वितीय प्रश्न-पत्र केवल सामान्य-इंजीनियरिंग का दिया गया .इसमें कुल तीन सौ अंक थे और कुल एक दर्जन में से कोई दस सवाल हल करने थे. यह निबंधात्मक प्रश्न-पत्र था ,जिसमे अभ्यर्थियों को दो-दो उत्तर पुस्तिकाएं दी गयी. इनमें से एक उत्तर-पुस्तिका में इलेक्ट्रिकल और दूसरी पुस्तिका में मैकेनिकल के प्रश्नों को हल करना अनिवार्य था. मुश्किल यह हुई कि न तो इलेक्ट्रिकल वाले मैकेनिकल के सवाल हल कर पाए और न ही मैकेनिकल वाले इलेक्ट्रिकल के प्रश्नों को . कहने का आशय यह कि इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अलग- अलग स्वरुप के पाठ्यक्रमों में डिग्री अथवा डिप्लोमा लेकर आए आवेदकों को इस चयन-परीक्षा से काफी निराशा हुई . इसमें उन्हें केलकुलेटर का इस्तेमाल भी नहीं करने दिया गया ,जबकि इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए होने वाली GATE की परीक्षा में केलकुलेटर रखने की सुविधा दी जाती है.<br />
बहरहाल कुछ अयोग्य और अज्ञानी अधिकारियों द्वारा कर्मचारी चयन आयोग की जूनियर इंजीनियर चयन परीक्षा में गलत तरीके से तैयार प्रश्न-पत्रों के कारण हज़ारों बेरोजगार इंजीनियरों को रोजगार के एक बेहतर अवसर से वंचित होना पड़ा . उनका भविष्य चौपट हो गया . क्या इसके लिए कहीं कोई जिम्मेदारी तय होगी ? कुछ परीक्षार्थी इस अन्याय के खिलाफ अदालत जाने का मन बना रहे हैं. </div></div></div></div></div></div></div></div></div></div></div><div class="tabs-cap-bottom cap-bottom"> </div></div><div class="main-outer"> <div class="main-cap-top cap-top"> </div><div class="fauxborder-left main-fauxborder-left"> <div class="region-inner main-inner"> <div class="columns fauxcolumns"> <div class="fauxcolumn-outer fauxcolumn-center-outer"> <div class="cap-top"> </div><div class="fauxborder-left"> <div class="fauxcolumn-inner"> </div></div><div class="cap-bottom"> </div></div><div class="fauxcolumn-outer fauxcolumn-left-outer"> <div class="cap-top"> </div><div class="fauxborder-left"> <div class="fauxcolumn-inner"> </div></div><div class="cap-bottom"> </div></div><div class="fauxcolumn-outer fauxcolumn-right-outer"> <div class="cap-top"> </div><div class="fauxborder-left"> <div class="fauxcolumn-inner"> </div></div><div class="cap-bottom"> </div></div><div class="columns-inner"> <div class="column-center-outer"> <div class="column-center-inner"> <div class="main section" id="main"><div class="widget Blog" id="Blog1"> <div class="blog-posts hfeed"> </div></div></div></div></div></div></div></div></div></div></div>Swarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-28926688575232893202010-11-08T10:29:00.000+05:302010-11-08T10:29:55.639+05:30बढ़ते सड़क हादसे :एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या <b>स्वराज्य करुण </b><br />
विज्ञान और टेक्नालॉजी जहाँ हमारे जीवन को सहज-सरल और सुविधाजनक बनाने के सबसे बड़े औजार हैं , वहीं उनके अनेक आविष्कारों ने आधुनिक समाज के सामने कई गंभीर चुनौतियां भी पैदा कर दी हैं . बहुत पहले वाष्प और बाद में डीजल और पेट्रोल से चलने और दौड़ने वाली गाड़ियों का आविष्कार इसलिए नहीं हुआ कि लोग उनसे कुचल कर या टकरा कर अपना बेशकीमती जीवन गँवा दें , लेकिन अगर हम अपने ही देश में देखें तो अखबारों में हर दिन सड़क हादसों की दिल दहला देने वाली ख़बरें कहीं सिंगल ,या कहीं डबल कॉलम में या फिर हादसे की विकरालता के अनुसार उससे भी ज्यादा आकार में छपती रहती हैं .कितने ही घरों के चिराग बुझ जाते हैं , सुहाग उजड़ जाते हैं और कितने ही लोग घायल होकर हमेशा के लिए विकलांग हो जाते है .सड़क हादसों की दिनों-दिन बढ़ती संख्या अब एक गंभीर राष्ट्रीय समस्या बनती जा रही है.आंकड़ों पर न जाकर अपने आस-पास नज़र डालें , तो भी हमें स्थिति की गंभीरता का आसानी से अंदाजा हो जाएगा .<br />
तीव्र औद्योगिक-विकास , तेजी से बढ़ती जनसंख्या, तूफानी रफ्तार से हो रहे शहरीकरण और आधुनिक उपभोक्तावादी जीवन शैली की सुविधाभोगी मानसिकता से समाज में मोटर-चालित गाड़ियों की संख्या भी बेतहाशा बढ़ रही है . औद्योगिक-प्रगति से जैसे -जैसे व्यापार-व्यवसाय बढ़ रहा है , माल-परिवहन के लिए विशालकाय भारी वाहन भी सड़कों पर बढते जा रहे हैं. ट्रकें सोलह चक्कों से बढ़कर सौ-सौ चक्कों की आने लगी हैं. दो-पहिया ,चार-पहिया वाहनों के साथ-साथ यात्री-बसों और माल-वाहक ट्रकों की बेतहाशा दौड़ रोज सड़कों पर नज़र आती है. सड़कें भी इन गाड़ियों का वजन सम्हाल नहीं पाने के कारण आकस्मिक रूप से दम तोड़ने लगती हैं . त्योहारों , मेले-ठेलों , और जुलूस-जलसों के दौरान भी बेतरतीब यातायात के कारण हादसे हो जाते हैं . <br />
शहरों में ट्राफिक-जाम और वाहनों की बेतरतीब हल-चल देख कर मुझे तो कभी-कभी यह भ्रम हो जाता है कि इंसानी आबादी से कहीं ज्यादा मोटर-वाहनों की जन-संख्या तो नहीं बढ़ रही है ? सरकारें जनता की सुविधा के लिए सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने का कितना भी प्रयास क्यों न करे , लेकिन गाड़ियों की भीड़ या वाहनों की बेहिसाब रेलम-पेल से सरकारों की तमाम कोशिशें बेअसर साबित होने लगती हैं . वाहनों के बढ़ते दबाव की वजह से सरकार सिंगल-लेन की डामर की सड़कें डबल लेन ,में और डबल-लेन की सड़कों को फोर-लेन में बदलती हैं . फोर-लेन की सड़कें सिक्स -लेन में तब्दील की जाती हैं . इस प्रक्रिया में सड़कों के किनारे की कई बस्तियों को हटना या फिर हटाना पड़ता है . उन्हें मुआवजा भी दिया जाता है .सड़क-चौड़ीकरण और मुआवजा बांटने में ही सरकारों के अरबों -खरबों रूपए खर्च हो जाते हैं . यह जनता का ही धन है. लेकिन सरकारें भी आखिर करें भी तो क्या ? जिस रफ्तार से सड़कों पर वाहनों की आबादी बढ़ रही है , आने वाले वर्षों में अगर हमें सिक्स-लेन और आठ-लेन की सड़कों को बारह-लेन , बीस-लेन और पच्चीस -पच्चास लेन की सड़कों में बदलने के लिए मजबूर होना पड़ जाए , तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. लेकिन क्या सड़क-दुर्घटनाओं का इकलौता कारण वाहनों की बढ़ती जन-संख्या है ? मेरे विचार से यह समस्या का सिर्फ एक पहलू है. इसके दूसरे पहलू के साथ और भी कई कारण हैं ,जिन पर संजीदगी से विचार करने की ज़रूरत है. आर्थिक-उदारीकरण के माहौल ने देश में धनवानों के एक नए आर्थिक समूह को भी जन्म दिया है. कारपोरेट-सेक्टर के अधिकारियों सहित सरकारी -कर्मचारियों और अधिकारियों की तनख्वाहें पिछले दस-पन्द्रह साल में कई गुना ज्यादा हो गई हैं. बड़ी-बड़ी निजी कंपनियों में इंजीनियर और अन्य तकनीकी स्टाफ अब मासिक वेतन पर नहीं , लाखों रूपयों के सालाना 'पैकेज' पर रखे जाते हैं .इससे समाज में उपभोक्तावादी मानसिकता लेकर एक नए किस्म का मध्य-वर्ग तैयार हो रहा है . जिसके बच्चे भी अब दो-पहिया वाहन नहीं , बल्कि चार-चक्के वाली कार को अपना 'स्टेटस' मानने लगे हैं . सरकारी -बैंकों के साथ अब निजी बैंक भी अपने ग्राहकों को वाहन खरीदने के लिए उदार-नियमों और आसान-किश्तों पर क़र्ज़ लेने की सुविधा दे रहे है . कई बैंक तो गली-मुहल्लों में लोन-मेले आयोजित करने लगे हैं .इन सबका एक नतीजा यह आया है कि जिसके घर में चार-चक्के वाली गाड़ी रखने की जगह नहीं है , वह भी उसे खरीद कर अपने घर के सामने वाली सार्वजनिक-सड़क .या फिर मोहल्ले की गली में खड़ी कर रहा है और सार्वजनिक रास्तों को सरे-आम बाधित कर रहा है . उधर आधुनिक-तकनीक से बनी गाड़ियों में 'पिक-अप ' और रात में आँखों को चौंधियाने वाली हेड-लाईट की एक अलग महिमा है .ट्राफिक-नियमों का ज्ञान नहीं होना , हेलमेट नहीं पहनना , नाबालिगों के हाथों में मोटर-बाईक के हैंडल और गाड़ियों की स्टेयरिंग थमा देना , शराब पीकर गाड़ी चलाना जैसे कई कारण भी इन हादसों के लिए जिम्मेदार होते होते हैं .अब तो गाँवों की गलियों में भी मोटर सायकलों का फर्राटे से दौड़ना कोई नयी बात नहीं है. <br />
उत्तरप्रदेश के एक अखबार में वाराणसी से छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल जितनी मौतें आपराधिक घटनाओं में होती हैं , उनसे औसतन पांच गुना ज्यादा जानें सड़क हादसों में चली जाती हैं . रिपोर्ट में इसके जिलेवार आंकड़े भी दिए गए है और कहा गया है कि कहीं बदहाल सड़कों के कारण तो कहीं काफी अच्छी चिकनी सड़कों के कारण भी हादसे हो रहे हैं . इसमें यह भी कहा गया है कि अधिकतर हादसे ऐसी सड़कों पर हो रहे हैं , जिनकी हालत काफी अच्छी हैं .ऐसी सड़कों पर वाहन फर्राटे भरते निकलते हैं . फिर इन सड़कों पर यातायात संकेतक भी पर्याप्त संख्या में नहीं हैं . इससे वाहन चलाने वालों को खास तौर पर रात में अंधा-मोड़ या क्रासिंग का अंदाज नहीं हो पाता और हादसे हो जाते हैं . बहरहाल पूरे भारत में देखें तो सड़क -हादसों के प्रति-दिन के और सालाना आंकड़े निश्चित रूप से बहुत डराने वाले और चौंकाने वाले हो सकते हैं .इन दुर्घटनाओं को रोकने और सड़क-यातायात को सुगम और सुरक्षित बनाने के लिए मेरे विचार से तीन उपाय हो सकते हैं . इनमे से मेरा पहला सुझाव है कि देश में कम से कम पांच साल के लिए हल्के मोटर वाहनों का निर्माण बंद कर दिया जाए.यह सुझाव आज के माहौल के हिसाब से लोगों को हास्यास्पद लग सकता है ,लेकिन मुझे लगता है कि इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है ,क्योकि अब हमारे देश की सड़कों पर ऐसे वाहनों की भीड़ इतनी ज्यादा हो गयी है कि नए वाहनों के लिए जगह नहीं है .मेरा दूसरा सुझाव है कि मोटर-चालित वाहन खास तौर पर चौपाये वाहन खरीदने की अनुमति सिर्फ उन्हें दी जाए ,जो अदालत में यह शपथ-पत्र दें कि उनके घर में वाहन रखने के लिए गैरेज की सुविधा है और वे अपनी गाड़ी घर के सामने की सार्वजनिक गली अथवा सड़क पर खड़ी नहीं करेंगे . तीसरा सुझाव यह है कि बड़े लोग भी आम-जनता की तरह यातायात के सार्वजनिक साधनों का इस्तेमाल करने की आदत बनाएँ ,या फिर सायकलों का इस्तेमाल करें .सायकल एक पर्यावरण हितैषी वाहन है. इसके इस्तेमाल से हम धुंआ प्रदूषण को भी काफी हद तक कम कर सकते हैं . हर इंसान की जिंदगी अनमोल है .सड़क-हादसों से उसे बचाना भी इंसान होने के नाते हम सबका कर्तव्य है. अपने इस कर्तव्य को हम कैसे निभाएं ,इस पर गंभीरता से विचार करने की ज़रूरत है . <br />
स्वराज्य करुणSwarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-6746334573463762122010-11-07T22:31:00.000+05:302013-10-07T23:47:48.274+05:30दबंगों से भयभीत मानवता !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा की तीन दिवसीय भारत यात्रा के दूसरे दिन की सुबह एक निजी हिन्दी टेलीविजन समाचार चैनल ने अपने खास और लाइव कार्यक्रम में कुछ ऐसे शीर्षक भी दिए जो हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को आहत कर गए .मुझसे रहा नहीं गया और कुछ मिनटों तक देखने के बाद मैंने टेलीवजन ऑफ कर दिया ,लेकिन यह तय है कि चैनल का कार्यक्रम तो ऐसे शीर्षकों के साथ आगे कई घंटों तक चलता और बजता रहा होगा और देश के मान-सम्मान को बार-बार चोट पहुंचाता रहा होगा . ओबामा की भारत यात्रा के महिमा -मंडन के लिए इस चैनल के द्वारा प्रसारित विशेष कार्यक्रम की कुछ सुर्खियाँ ,जो शायद किसी भी देशभक्त भारतीय को विचलित कर सकती हैं , इस प्रकार थीं --<br />
<b> भारत में दुनिया का दबंग <br />
</b><b> दबंग की दीवाली </b><br />
ओबामा के साथ राजस्थान के अजमेर जिले की ग्राम पंचायत कानपुरा के लोगों की वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग पर इस टेलीविजन चैनल की एक हेड-लाईन थी-<b>-'दबंग देखेगा गाँव'. </b>महसूस करें तो वास्तव में 'दबंग' एक भय पैदा करने वाला शब्द है . .मानवता इस शब्द से भयभीत हो जाती है . वह दब कर रहती है , जिसे 'दलित' कहा जाता है . क्या अमेरिकी राष्ट्रपति को 'दबंग ' संज्ञा दे कर इस चैनल ने भारत को और हम भारतीयों को अप्रत्यक्ष रूप से 'दलित' साबित करने का प्रयास नहीं किया ? हिन्दी अखबारों में कई बार देश के कुछ राज्यों से ख़बरें छपती हैं- दबंगों ने दलितों को ज़िंदा जलाया . दबंगों ने दलितों को सरे-आम प्रताडित किया .ऐसे में क्या 'दबंग' शब्द का अर्थ किसी को अपने बाहुबल , धन-बल और आज के जमाने में शस्त्र -बल से दबाकर रखने वाले गुंडे-मवाली किस्म के लोगों से नहीं जुडता ? अमेरिकी राष्ट्रपति को 'दबंग' की संज्ञा देकर इस चैनल ने हमारे खास विदेशी मेहमान को जाने-अनजाने आखिर किस उपाधि से नवाजा है ,यह बताने की ज़रूरत नहीं है ,वहीं 'दबंग' के विपरीत शब्द 'दलित'को उसने अघोषित रूप से भारत की आम जनता पर थोप दिया है . इसमें दो राय नहीं कि लोकतंत्र के इस युग में , आज की आधुनिक दुनिया में अपने कई तरह के कारनामों के कारण अमेरिका की छवि 'दबंग ' जैसी ही बन गयी है , लेकिन चैनल की सुर्ख़ियों ने इस बदनाम शब्द को वहाँ के राष्ट्रपति के नाम से जोड़ कर जनता को क्या संदेश दिया , यह तो चैनल के कर्ता-धर्ता ही बता पाएंगे ,पर इतनी फुरसत किसे है कि जाकर उनसे यह पूछे .दबंग भले ही मुट्ठी भर होते हैं , लेकिन अपने साम-दाम ,दंड-भेद की नीतियों से समूची इंसानी आबादी को दबा कर रखते हैं. इंसानियत दबंगों की गुलाम बन जाती है . <br />
इन दिनों एक फ़िल्मी कलाकार के 'दबंग ' शीर्षक हिन्दी फिल्म के किसी अपराधी चरित्र को प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसी शीर्षक से काफी महिमा -मंडित किया जा रहा है . मानो ,यह किसी महान प्रेरणा दायक चरित्र का नाम हो . ध्यान देने लायक बात यह भी है कि 'दबंग' फिल्म में 'दबंग ' का किरदार निभाने वाले पर अपने वास्तविक जीवन में काले हिरणों के शिकार और फुटपाथ पर सोए गरीबों को मदहोशी में अपनी कार से कुचल कर मार डालने का संगीन आरोप लगा हुआ है .इन्ही आरोपों में वह जेल भी जा चुका है .यह आज के जमाने के विज्ञापन आधारित प्रचार-तंत्र का ही करिश्मा है कि इसके बावजूद लोग . खास तौर पर चालू-छाप मनोरंजन के दीवाने निठल्ले युवाओं को इस 'दबंग' पर फ़िदा होते देखा जा सकता है ,भले ही उन्हें इसके लिए उसके निजी सुरक्षा-गार्डों के हाथों मार खानी पड़े ,या फिर पुलिस की भी लाठियां खानी पड़ जाए. मानो 'दबंग' नामक इस फ़िल्मी किरदार ने देश के लिए कोई बहुत बड़ा काम किया हो, जिससे लाखों-करोड़ों लोगों का भला हुआ हो . ऐसा कुछ भी नहीं है .फिर भी उसके लाखों निठल्ले किस्म के दीवाने हैं .प्रचार-तन्त्र और उसके निजी विज्ञापन-तंत्र ने उसे हमारे समाज के एक 'रोल-मॉडल ' के रूप में स्थापित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. <br />
क्या यह आज की पढ़ी-लिखी ,साक्षर और शिक्षित कहलाने वाली आधुनिक दुनिया में नैतिक-मूल्यों के पतन और नैतिकता के प्रतिमानों में तेजी से आ रहे बदलाव का संकेत नहीं है ?आज़ादी के छह दशक बाद भी हम अपने लिए और अपनी नयी पीढ़ी के लिए महात्मा गांधी , स्वामी विवेकानंद और शहीद भगत सिंह जैसी महान विभूतियों को 'रोल मॉडल' नहीं बना पाए . न सिर्फ दबंग किस्म के लोग, बल्कि अघोषित चोरी ,अघोषित डकैती और अघोषित बेईमानी के धन से पूरी दबंगता के साथ अपना आर्थिक साम्राज्य फैला रहे लोग भी समाज का 'रोल-मॉडल ' बन रहे हैं . क्या यह हमारे दिल के किसी कोने में 'दबंगों' के भय से कांपती चुपचाप दुबक कर बैठी मानवता के अस्तित्व के लिए खतरे का संकेत नहीं है ?<br />
स्वराज्य करुण</div>
Swarajya karunhttp://www.blogger.com/profile/03476570544953277105noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-83721546976420117382010-09-23T18:08:00.000+05:302010-09-23T18:08:45.395+05:30मैं,मेरी श्रीमतीजी और.............भाग-५ (व्यंग्य)<b style="color: red;"> अरविन्द झा का व्यंग्य</b>...........<a href="http://krantidut.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html">भाग १</a>..........<a href="http://krantidut.blogspot.com/2010/09/blog-post_16.html">भाग२</a>.............<a href="http://krantidut.blogspot.com/2010/09/blog-post_19.html">भाग ३.</a>.........<a href="http://kaduvasach.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html">भाग ४ </a><br />
<br />
" दामादजी बिल्कुल सही कह रहे हैं "----- तब तक ससुरजी शोपिंग कर लौट आये थे------" आज मैंने महात्मा गांधी की तस्वीर खोजी.....नहीं मिली फ़िर चिर-यौवना मल्लिका शेरावतजी की तस्वीर ले आया. यह सोचकर कि किन हालातों में इस लङकी ने अपने वस्त्र का त्याग किया होगा ?"<br />
मैंने समानपूर्वक उन्हें समझाया---" पिताजी ये फ़िल्म की हिरोईन है. अपने शरीर को दिखाकर ये करोङो रुपये कमाती है". वह चौंक गये------" शरीर को दिखाकर करोङो रुपये ..? कैसे..?" "लोग इनके शरीर को देखना चाहते हैं इसलिये.."<br />
" वाह जन-इच्छा का कितना सम्मान करती है यह अबला "<br />
" पापाजी आप गलत समझ रहे हैं. इन हिरोइन को तो एक्टिंग करना चाहिये न ? "<br />
" ये अच्छा एक्टिंग नहीं करती क्या..?"<br />
" अच्छा एक्टिंग करती है लेकिन आज-कल के लोग सिर्फ़ आंग-प्रदर्शन देखना चाहते हैं. "<br />
" फ़िर.......मैं तो इसी हालात की बात कर रहा था. हालात ही ऐसे हो गये हैं जिससे इस बेचारी मल्लिका शेरावत को स्वयं अपना चीर-हरण करना पङा. कौरव- पांडव सभी एक जैसे हो गये. द्रौपदी करे भी तो क्या. महाभारत की पांचाली...आधुनिक भारत की सहस्त्रचाली बन गयी. धृतराष्ट्र तब भी अंधा था और आज भी अंधा है."---ससुरजी कुछ देर तक शांत रहे फ़िर अपनी बेटी से कहने लगे-----" अब तो बाजार भी बहुत बदल गया है. पहले सत्तु खोजा जब नहीं मिला तो कोल्ड-ड्रींक पी आया. लिट्टी-चोखा भी बाजार से गायब हो गया है .इसलिये मैंने फ़ास्ट फ़ूड पैक करवा लिया ." हमलोगों ने काफ़ी फ़ास्टली फ़ास्ट-फ़ूड खाया और अपने कामों मे लग गये. मक्के की रोटी---सरसो का साग और आलू चोखा---सत्तु लिट्टी जैसे विशुद्ध भारतीय खानों पर आजकल फ़ास्ट-फ़ूड और कोल्ड ड्रींक हावी है. यदि इस समय आप लंच या डीनर न कर रहे हों तो मैं उस फ़ास्ट फ़ूड का एफ़ेक्ट बताना चाहुंगा. कुछ देर में खतरनाक रुप से घर में प्रदुषण भी फ़ैला और ग्लोबल वार्मिंग भी बढता चला गया. ससुर दामाद का हमारा संबंध ही इतना मधुर रहा है कि हम दोनों में से किसी ने एक दूसरे पर उंगलिया नहीं उठायी. जबकि घर में फ़ैल रहे प्रदुषण में हम दोनों के योगदान के बारे में हम कन्फ़र्म थे. विडंबना देखिये कि हमारी उंगलियां वायु ग्रहण और त्याग स्थलों के इर्द-गिर्द मंडराता रही. प्रकृर्ति के नियम के मुताबिक इन छिद्रों को बंद भी नहीं किया जा सकता. हमारा पेट तो गैस का सिलिंडर बन ही चुका था. वो तो अच्छा था कि किसी ने माचिस की तिल्ली नहीं जलायी. हम दोनों ससुर दामाद एक दूसरे की समस्या को जान रहे थे लेकिन एक दूसरे से कहते भी तो क्या.<br />
<br />
<div>अगले भाग में फ़ास्ट-फ़ूड का एफ़ेक्ट जारी रहेगा... क्रमश:</div>ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-42824088941761854582010-08-15T12:39:00.001+05:302010-08-15T12:40:52.178+05:30स्वतंत्रता के छह दशक-क्या खोया क्या पाया -राजीव तनेजा<span style="font-size: small;">***राजीव तनेजा***</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://2.bp.blogspot.com/_gBWg3KQX_z0/TGeS5wSpjjI/AAAAAAAAEuU/vWrcJK5MB60/s1600/Independence_Day.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="241" src="http://2.bp.blogspot.com/_gBWg3KQX_z0/TGeS5wSpjjI/AAAAAAAAEuU/vWrcJK5MB60/s320/Independence_Day.jpg" width="320" /></a></div><br />
<span style="font-size: small;">कहने को तो आज साठ साल से ज़्यादा हो चुके हैँ हमें पराधीनता की बेड़ियाँ तोड़ आज़ाद हुए लेकिन क्या आज भी हम सही मायने में आज़ाद हैँ? मेरे ख्याल से नहीं।</span><br />
<span style="font-size: small;">बेशक!...हमने छोटे से लेकर बड़े तक...हर क्षेत्र में खूब तरक्की की है लेकिन क्यों आज भी हम इटैलियन पिज़्ज़ा खाने को तथा सिंगापुर,मलेशिया,बैंकाक तथा दुबई और मॉरिशस में छुट्टियाँ मनाने को उतावले रहते हैँ?</span><br />
<ul><li><span style="font-size: small;">संचार क्रांति की बदौलत हमारे देश में मोबाईल धारकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है लेकिन मोबाईल सैट अभी भी क्यों बाहरले देशों से ही बन कर आते हैँ? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आज सैंकड़ों देसी चैनल हमारे मनोरंजन के लिए उपलब्ध हैँ लेकिन उनकी ब्राडकास्टिंग दूसरे देशों द्वारा उपलब्ध कराए गए उपग्रहों द्वारा ही क्यों होती है? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">ये सच है कि हमारे कल-कारखानों में एक से एक ...उम्दा से उम्दा आईटम तैयार होती है लेकिन फिर भी हम खिलौनों से लेकर कपड़े तक और प्लाईबोर्ड से लेकर रैडीमेड दरवाज़ों तक हर सामान को चीन से आयात कर गर्व तथा खुशी क्यों महसूस करते हैँ? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">क्यों आज हम में से बहुत से लोग हिन्दी जानने के बावजूद अँग्रेज़ी में बात करना पसन्द करते हैँ?.... </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">हिन्दी के राष्ट्रीय भाषा होने के बावजूद क्यों हम अँग्रेज़ी के गुलाम बने बैठे हैँ? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आज हमारे देश का आम आदमी अपने देश के लिए काम करने के बजाय क्यों बाहरले देशों में बस अपना भविष्य उज्जवल करना चाहता है? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आज दुनिया भर के होनहार लोगों के होते हुए भी हमें आधुनिक तकनीक के लिए बाहरले देशों का मुँह ताकना पड़ता है तो क्यों? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आज हमसे...हमारी ही संसद में सवाल पूछने के नाम पे पैसा मांगा जाता है तो क्यों? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">क्यों खनिज पदार्थों के अंबार पे बैठे होने के बावजूद हमें बिजली उत्पादन के लिए यूरेनियम से लेकर तकनीक तक के लिए अमेरिका सहित तमाम देशों का पिच्छलग्गू बनना पड़ता है? </span> </li>
<li><span style="font-size: small;">आज अपनी मर्ज़ी से हम अपना नेता...अपनी सरकार चुन सकते हैँ लेकिन फिर भी किसी वोटर को चन्द रुपयों और दारू के बदले बिकते देखना पड़ता है तो क्यों? </span></li>
</ul>राजीव तनेजाhttp://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.com15tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-8047958834297269772010-07-24T18:47:00.001+05:302010-07-24T18:48:53.112+05:30नक्सल हिंसा,लोकतंत्र एवं मीडिया पर राष्ट्रीय परिचर्चा कल रायपुर में<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://3.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TErlnpBQD9I/AAAAAAAACYc/Yj-QBrdSwtY/s1600/DrKiranBedi21.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="133" src="http://3.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TErlnpBQD9I/AAAAAAAACYc/Yj-QBrdSwtY/s200/DrKiranBedi21.JPG" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">साधना न्युज चैनल की स्थापना के दो वर्ष पूर्ण होने पर नक्सल हिंसा, लोकतंत्र एवं मीडिया विषय पर एक राष्ट्रीय परिचर्चा का आयोजन कल 25/07/2010 को न्यु सर्किट हाऊस के सभागार रायपुर में किया जा रहा है। इस आयोजन में प्रशासनिक बौद्धिक एवं मीडिया जगत की मुर्धन्य हस्तियां रायपुर पधार रही हैं। जिनमें नक्सली हिंसा पर गंभीर चर्चा होगी। इस अवसर पर प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया के लोग भी उपस्थित रहेगें।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TErlz2FFF1I/AAAAAAAACYk/HH8NqgCzGtY/s1600/agnivesh1.jpg" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="164" src="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TErlz2FFF1I/AAAAAAAACYk/HH8NqgCzGtY/s200/agnivesh1.jpg" width="200" /></a></div><div style="text-align: justify;">इस राष्ट्रीय परिचर्चा के मुख्य वक्ता प्रथम महिला भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी किरण बेदी, प्रख्यात समाजसेवी स्वामी अग्निवेश, प्रभात खबर के सम्पादक श्री हरिवंश, वरिष्ठ सम्पादक अरविंद मोहन, आई आई एम सी के प्राध्यापक आनंद प्रधान ,इंडिया टुडे के रिपोर्टर रहे वरिष्ठ सम्पादक एन के सिंग, वरिष्ठ सम्पादक आशुतोष, नक्सल मामलों के विशेषज्ञ प्रकाश सिंह, वरिष्ठ सम्पादक रमेश नैयर, 36 गढविधान सभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, नेता प्रतिपक्ष रविन्द्र चौबे, प्रदेश के गृह मंत्री ननकी राम कंवर, लोकनिर्माण मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा हैं।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TErmyf_f0qI/AAAAAAAACYs/F-LFAwpntpg/s1600/soni.rajkumar.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TErmyf_f0qI/AAAAAAAACYs/F-LFAwpntpg/s200/soni.rajkumar.jpg" width="154" /></a></div><div style="text-align: justify;">ज्ञात हो विगत दशकों से 36 गढ नक्सली हिंसा से जूझ रहा है। शायद ही किसी दिन वारदात की खबर न आए। इस हिंसा में आम नागरिक एवं सुरक्षा बलों के लोग मारे जा रहे हैं। वातावरण में बारुद की गंध एवं आम नागरिक के दिलों में दहशत का आलम है इन परिस्थितियों में यह राष्ट्रीय परिचर्चा महत्वपूर्ण हो जाती है। इसे कल साधना चैनल पर लाईव प्रसारित किया जाएगा। परिचर्चा तीन सत्रों में होगी, इसका संचालन बिगुल ब्लाग के माडरेटर <a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/">राजकुमार सोनी</a> करेंगे। इस अवसर पर <a href="http://shilpkarkemukhse.blogspot.com/">ललित शर्मा</a> भी उपस्थित रहेंगे।</div>ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-58093036490781746192010-07-02T07:20:00.001+05:302010-07-02T07:32:22.722+05:30पंकज मिश्रा बाप बने !!!!!!!!!!<div style="text-align: justify;">पंकज मिश्रा (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की) के कंधों पर अब एक नई जिम्मेदारी आ गयी है। जब जिम्मेदारी आ ही गयी है तो निर्वहन भी करना ही है। यह जिम्मेदारी कुछ ऐसी है जिसे हंसते-हंसते उठाना पड़ता है। जिसे हंसते-हंसते उठाना पड़ता है। बस इसी चक्र में यह दुनिया भी चल रही है। कल उन्होने हमें एक खुशखबरी बताई, जिससे हम बहुत प्रसन्न हुए और सोचा की इस खुशी में आप सबको भी शामिल करलें। </div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://4.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TC1FVi5mQwI/AAAAAAAACNI/QqG8m6OLn3g/s1600/image001.gif" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://4.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/TC1FVi5mQwI/AAAAAAAACNI/QqG8m6OLn3g/s320/image001.gif" /></a></div><br />
<div style="text-align: justify;">उनके घर से टेलीग्राम आया है कि वे 18 जून को पिता बन गए, उन्हे अश्विनी नामक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है। इन्होने हमे बिना मिठाई खिलाए नामकरण भी कर लि्या। हमने सोचा चलिए कोई बात नहीं मिठाई तो आती ही होगी। पहले यह खबर ब्लाग जगत के मित्रों तक पहुंचा ही दें। आइए इस खुशी के मौके पर सब शरीक होते हैं।</div>ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-18402203803820691792010-06-02T17:26:00.002+05:302010-06-02T17:26:52.043+05:30मिलिए संस्कृत बोलने वाले चिट्ठाकार परिवार से----चिट्ठाकार चर्चा----ललित शर्मा<h3 class="post-title entry-title"><a href="http://blag4all.blogspot.com/2010/06/blog-post.html">मिलिए संस्कृत बोलने वाले चिट्ठाकार परिवार से----चिट्ठाकार चर्चा----ललित शर्मा</a></h3><h3 class="post-title entry-title"> </h3><h3 class="post-title entry-title"><a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/06/5.html">दिल्ली यात्रा-5...कारवां चल पड़ा है मंजिल की ओर...........!</a></h3><h3 class="post-title entry-title"> </h3>ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-40126124420257082822010-05-26T14:25:00.001+05:302010-05-26T14:25:47.242+05:30असली ज़लज़ला कौन?<p> </p> <p><a href="http://lh6.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zhwBQdQhI/AAAAAAAAEm4/hb1hH6l30z8/s1600-h/IMG_0282%5B4%5D.jpg"><img title="IMG_0282" style="border-right: 0px; border-top: 0px; display: inline; border-left: 0px; border-bottom: 0px" height="257" alt="IMG_0282" src="http://lh4.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zhx3O8gtI/AAAAAAAAEm8/1H8xRaIOQWE/IMG_0282_thumb%5B2%5D.jpg?imgmax=800" width="282" border="0" /></a> </p> <p><a href="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zhy04pz9I/AAAAAAAAEnA/NsnTUaPgqW8/s1600-h/19062008815%5B2%5D.jpg"><img title="19062008815" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="244" alt="19062008815" src="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zhz5Ft3yI/AAAAAAAAEnE/iTJQGP8h7LE/19062008815_thumb.jpg?imgmax=800" width="234" border="0" /></a></p> <p><a href="http://lh6.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh03tyHpI/AAAAAAAAEnI/k6ck3xtRCxI/s1600-h/Image%28137%29%5B2%5D.jpg"></a></p> <p><a href="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh1w2lETI/AAAAAAAAEnM/bDd32u0SAT8/s1600-h/IMG_0494%5B3%5D.jpg"><img title="IMG_0494" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="322" alt="IMG_0494" src="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh2_N19XI/AAAAAAAAEnQ/V-9Eb5cIBfY/IMG_0494_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800" width="244" border="0" /></a></p> <p><a href="http://lh4.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh4xJ8vLI/AAAAAAAAEnU/yzvDKF0-AF8/s1600-h/IMG_0360%5B3%5D.jpg"><img title="IMG_0360" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="239" alt="IMG_0360" src="http://lh6.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh57LSFwI/AAAAAAAAEnY/rDlKCnSCjWc/IMG_0360_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800" width="317" border="0" /></a></p> <p><a href="http://lh6.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh8XzQRrI/AAAAAAAAEnc/V4ECtXuJ3aQ/s1600-h/IMG_0505%5B3%5D.jpg"><img title="IMG_0505" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="236" alt="IMG_0505" src="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh9P5AvsI/AAAAAAAAEng/krpVAwYg69k/IMG_0505_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800" width="314" border="0" /></a><a href="http://lh4.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh4xJ8vLI/AAAAAAAAEnk/lOIsDZR_nWo/s1600-h/IMG_0360%5B2%5D.jpg"></a></p> <p><a href="http://lh3.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_ziAWoFzoI/AAAAAAAAEno/3JPzpjxbSyg/s1600-h/IMG_0523%5B3%5D.jpg"><img title="IMG_0523" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="236" alt="IMG_0523" src="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_ziBbdngnI/AAAAAAAAEns/qzu92Fq8QS0/IMG_0523_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800" width="314" border="0" /></a></p> <p> </p> <p> <a href="http://lh3.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_ziCVjdYtI/AAAAAAAAEnw/mXIW0_-q6Po/s1600-h/IMG_0519%5B3%5D.jpg"><img title="IMG_0519" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="313" alt="IMG_0519" src="http://lh4.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_ziDfRiNhI/AAAAAAAAEn0/ti4QG017Vjc/IMG_0519_thumb%5B1%5D.jpg?imgmax=800" width="236" border="0" /></a></p> <p> </p> <p><a href="http://lh6.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_zh03tyHpI/AAAAAAAAEnI/k6ck3xtRCxI/s1600-h/Image%28137%29%5B2%5D.jpg"><img title="Image(137)" style="border-top-width: 0px; display: inline; border-left-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-right-width: 0px" height="244" alt="Image(137)" src="http://lh5.ggpht.com/_gBWg3KQX_z0/S_ziEJck-SI/AAAAAAAAEn4/ywfx3ABP7Ss/Image%28137%29_thumb.jpg?imgmax=800" width="218" border="0" /></a></p> राजीव तनेजाhttp://www.blogger.com/profile/00683488495609747573noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-33803349249988064562010-05-15T20:55:00.002+05:302010-05-15T21:26:30.656+05:30गिरी्श दादा जहां कहीं भी हो चले आओ-(गुमशुदा की तलाश)---------ललित शर्मा<div style="text-align: justify;"><a href="http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/05/blog-post_13.html">गिरीश दादा जी</a>,</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/S-671vSmJ7I/AAAAAAAAB4U/daomRQrzfXs/s1600/girish.JPG" imageanchor="1" style="clear: right; float: right; margin-bottom: 1em; margin-left: 1em;"><img border="0" height="200" src="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/S-671vSmJ7I/AAAAAAAAB4U/daomRQrzfXs/s200/girish.JPG" width="143" /></a></div><div style="text-align: justify;">पान की दुकान पर निरंतर चर्चा चल रही है कि आप कहां चले गये, लोग कयास लगा रहे हैं। हमारा निवेदन है कि आप जहां कहीं भी हो लौट आओ, आपके जाने से हमें बहुत ही झटका लगा है। आपने ब्लाग जगत को पॉडकास्टर बन कर अपनी अनमोल सेवाएं दी हैं, जिसके लिए हम आभारी हैं। ऐसी कौन सी बात थी? जिससे आप आहत होकर ब्लागिंग छोड़ चले, हमारी तो समझ में ही नहीं आया। सब कुछ ठीक चल रहा था फ़िर आपने अचानक ऐसा निर्णय क्यों लिया? जब से आप गए हैं तब से हमारा भी मन नही लग रहा है और आपने जिससे पॉडकास्ट इंटरव्यु का वादा किया था उसके फ़ोन हमारे पास आ रहे हैं कि दादा ने हमारा पॉडकास्ट इंटरव्यु लेने का वादा किया था, लेकिन अब बताइए कैसे होगा इंटरव्यु? वो बहुत गमगीन है। </div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/S-68KH_QjkI/AAAAAAAAB4c/yZhZGLxR5Eg/s1600/girish1.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="http://1.bp.blogspot.com/_YV-l2hVTfAk/S-68KH_QjkI/AAAAAAAAB4c/yZhZGLxR5Eg/s320/girish1.jpg" /></a></div><div style="text-align: justify;">आप <b style="color: red;">वीर</b> पुरुष हैं छोटी मोटी बाधाओं से घबराकर जाना ठीक नहीं है, ब्लागिंग का मूलमंत्र "सुरेश चिपलुनकर भाई से साभार" हम <a href="http://sanskaardhani.blogspot.com/2010/05/blog-post_13.html">मिसफ़िट</a> पर छोड़ आए हैं, समय मिले तो पढ लेना, नई तुफ़ानी उर्जा देगा, शरीर में जोश भर देगा, नई ताजगी के साथ, अनुभूत नुख्शा है, हम उसका सेवन कर रहे हैं, आप भी करके देखिए, लाभ होने का शर्तिया दावा है, न होने पर पैसे वापस, वैसे भी कल अक्षय तृ्तीया है भगवान परशुराम जयंती मनाई जा रही है, जुलुस निकाला जा रहा है सर्व ब्राह्मण समाज के द्वारा, मेरे पास मैसेज और निमंत्रण दोनो आया है। उसमें आपको शामिल होना जरुरी है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">मिसिर जी भी हलकान हैं, इधर वे घर के काम में व्यस्त है और आपने मौके का फ़ायदा उठाकर राम राम कह दि्या और तो और सारे सम्पर्क सुत्र भी तोड़ लिए, आपके वो मोबाईल फ़ोन की घंटी जो सुर में बजती थी अब नहीं बज रही है। उसपर भी ताला लग गया है। राज भाटिया दादाजी कह रहे थे कि बहु्त गर्मी है और बैशाख का महीना है नौतपे लगने वाले हैं, इस समय टंकी पर चढना ठीक नहीं है लू भी लग सकती है जिससे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है, वैसे टंकी पर गर्मी भी बहुत है। निर्माता ने वहां एसी कूलर की व्यवस्था नहीं की है क्योंकि टंकी पर सर्वहारा वर्ग ही चढता है, सामंतो को कहां फ़ुरसत है टंकी पर चढने की, वे तो नीचे एसी कमरे में बैठ कर टंकी को दूरबीन से निहारते रहते हैं कि कौन मरदूद चढा है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">दादा जी हम समझ सकते हैं आपका दर्द क्योंकि ये तकलीफ़ हमने भी झेली है। इससे पहले कि आपको कोई डॉक्टर पागल या ब्लागोमेनिया का मरीज करार कर दे, जहां भी हो जैसे भी चले आओ। अम्मा बहुत परेशान हैं उनकी तबियत भी खराब हो सकती है, आपके बिना भैंस ने दूध देना बंद कर दिया है, कहती है कि पहले गिरीश दादा जी को लेकर आईए, इसलिए अम्मा को भी दूध नही मिल रहा है, बहुत कमजोर हो गयी हैं। आपका वह चपरासी भी मिला था जिससे आपने सहृदयता दिखाते हुए माफ़ी मांगी थी, कह रहा था कि साहब जब से बिना बताए गए हैं तब से हम भी आफ़िस नहीं जा रहे हैं। सारा काम ठप्प हो गया है।</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">इसलिए मेरा आग्रह है कि इस वक्त जहां भी हो जैसे भी हो उसी हालत में चले आओ कोई कु्छ नहीं कहेगा और इस आशय का इस्तेहार कल के अखबार की "गुमशुदा की तलाश" कालम में देने का विचार कुछ आपके चाहने वाले कर रहे थे, जहां भी हो चले आओ..................</div><div style="text-align: justify;"><br />
</div><div style="text-align: justify;">आपका</div><div style="text-align: justify;">अनुज</div><div style="text-align: justify;"><a href="http://lalitdotcom.blogspot.com/">ललित शर्मा</a></div>ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com31tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-35322843317155711262010-03-30T13:49:00.000+05:302010-03-30T13:49:38.811+05:30अरे बड़े मियां, बचा लिया नहीं तो आज तो इज्जत का फलूदा बन जाताजौंक कहते हैं न<br />
<span style="background-color: yellow;">"क्या-क्या मजा ने तेरे सितम का उठा लिया हमने भी लुफ्ते-ज़िन्दगी अच्छा उठा लिया" </span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;">तो जनाब हमने भी बोर्ड परीक्षा के सितम उठाये, दिन रात कमरे में बंद रहे , फ़ोन और गेम्स उठवाकर दूसरे कमरे में रखवा दिए. हमारे वालिद साहब हमसे बड़े खुश नजर आते थे उन दिनों, आखिर निठल्ले ने पढना जो शुरू कर दिया था. वैसे हमारे अन्दर लाख बुराइयाँ वो निकालते हो पर एक अच्छी बात जिसकी वो हमेशा तारीफ करते हैं. जनाब हमें टीवी देखना पसंद नहीं. फिल्मो का शौक तो भारत की हवा में साँस लेते ही समां गया था पर टीवी से हमेशा बचके रहे हम. इसके पीछे भी एक कहानी हैं जिसे हम चाहे तो दो पंक्तियों में सुना दे या उपन्यास में बदल डाले.</span></span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;"> </span></span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;"> </span></span><span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;">दिसंबर से मार्च तक तो बोर्ड परीक्षा में डूबे रहे फिर अप्रैल, मई परिणाम का इंतजार किया. इस बार तो अँधेरे में तीर मार ही दिया. सुबह सुबह साइकिल पर चढ़कर साइबर कैफे में परिणाम देखने गया. दिमाग अपनी चालें चल रहा था और दिल अपना ढोलक बजा रहा था. खैर टकलू राम को रोल नंबर वाला परचा दिया और उसने बोर्ड की वेबसाईट पर उसे डाला. अब आप दिल्ली की सडको से गुजरे और आपको जाम न मिले तो समझना किसी पुण्यात्मा के दर्शन करे हैं अपने. वही हाल यहाँ था. दूसरे computers पर वेबसाइट खुल नहीं रही थी, अपने मामले में तो दो सेकंड में परिणाम निकल दिया. ऑंखें मल ली, ३-४ थप्पड़ भी जमा लिए, कहीं जन्नत में तो नहीं पहुच गए. पहली दफा ज़िन्दगी में इतने नंबर आये थे. </span></span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: #f3f3f3;"><span style="background-color: white;"> </span></span><span style="background-color: white;"> </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">इतना खुश हो गया कि साइकिल उठा कर न जाने किस तरफ भागा और १०-१२ किलोमीटर चलाने के बाद ही रुका. फिर होश आया तो घर आया. अब्बूजान को खबर दी. कहा--अब आप वादा पूरा करिए. हाँ ठीक हैं कर देंगे पहले यह लो. </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">पांच सौ के चार हरे पत्ते. अब तो बस पूछिए मत. हम तो बस यही बोले उस वक़्त </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;"><span style="background-color: yellow;">"यह न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता, अगर और जीते रहते, यही इंतजार होता"</span> </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;"><br />
</span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">बस जल्दी से नहाया, दोस्तों को फ़ोन लगाया और चल दिए नशे में हम. जो मन में आया खाया, जहाँ मन में आया घुमे. फिर एक मियां ने फ़रमाया ---- क्यूँ न जबरदस्त पार्टी हो जाये???. आज सब अमीर थे, दिल से भी और जेब से भी. </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">मुफलिसी के दिन गए यारों और हम पहुचे दिल्ली के एक मशहूर और महंगे रेस्तरां में. आज तक कभी नहीं आये थे सो महाराज इस दुनिया की तहजीब और अदा से बेखबर हम सबने चिकन की टाँगे तोड़ी. आसपास के लोग हमारी तरफ यूँ घूर के देख रहे थे जैसे हम चाँद से उतर कर जमीं पर आयें हो. हम भी तो हैवानो की तरह चिकन लोलीपोप और चिकन सलामी ठूंस रहे थे. </span></span><br />
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<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">बगल की टेबल पर बैठे एक मियां बड़े गौर से हमें देख रहे थे. उम्र और तजुर्बे दोनों में बड़े जानकर मालूम होते थे. ऊपर से एक ग़ज़ल भी चल रही थी......</span></span><br />
<div style="background-color: #f3f3f3;">सरकती जायें हैं रुख से नकाब --- अहिस्ता अहिस्ता </div><div style="background-color: #f3f3f3;">निकलता आ रहा हैं आफताब ---- अहिस्ता अहिस्ता <br />
</div><span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;"><br />
</span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">अहिस्ता अहिस्ता हम चिकन को सलाम कर रहे थे, हमारी तहजीब का आफताब पूरे रेस्तरां को चमका रहा था.बड़ी मशहूर ग़ज़ल हैं और मुझे बहुत अच्छी भी लगती हैं सो मैं भी लता जी और किशोर कुमार का साथ देने लगा. बड़े मियां को बहुत अच्छा लगा. उन्होंने एक प्यारी सी मुस्कान हमारी तरफ फेंकी. इतने में वेटर महाराज एक थाली लेकर आये जिसमे कुछ कटोरियाँ थी. टेबल पर कटोरियाँ रखीं गयी. दोस्त बोले यार --- यह डीश तो हमने मंगवाई ही नहीं. कटोरियों में गरमपानी और कटा हुआ निम्बू डाला हुआ था. हमने निम्बू को पानी में निचोड़ दिया और बस लबों से लगाने ही वाले थे कि बड़े मियां कुछ बोलते हुए हमारी तरफ आये. वो हमारे पास आये और कान में बोले ---- यह पीने के लिए नहीं, हाथ धोने के लियें हैं. </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;"> </span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;">अरे बड़े मियां, बचा लिया नहीं तो आज तो इज्जत का फलूदा बन जाता हलाकि रबड़ी तो हम बना ही चुके थे. नहीं तो ग़ालिब का यह शेर बिलकुल सही फिट हो जाता </span></span><br />
<pre><span style="background-color: yellow;">निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन बहुत बे-आबरू हो कर तेरे कुचे से हम निकले </span> </pre><span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;"><br />
</span></span><br />
<span style="background-color: yellow;"><span style="background-color: white;"><br />
</span></span>Unknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-45878831269794475472010-03-27T19:01:00.000+05:302010-03-27T19:01:12.574+05:30ए गनपत जरा इंटरनेट तो खोल ए गनपत जरा ब्लाग तो खोल...ए गनपत जरा इंटरनेट तो खोल ए गनपत जरा ब्लाग तो खोल <br />
ए गनपत जरा जोरदार पोस्ट तो लिख रे <br />
ए गनपत के रे फिर से देख इस पोस्ट पर कितनी पोस्ट आई रे <br />
ए गनपत नहीं आती हैं तो तू भी टिप्पणी धकेल रे तब तो बाबा लोग आयेगा रे <br />
ए गनपत टिप्पणी नहीं आती है तो किसी खासे से पंगा ले न रे तेरी पूछ बढ़ जायेगी रे <br />
ए गनपत जरा धर्म पर पोस्ट लिख दूसरो की भी धो और अपनी भी धुलवा रे <br />
ए गनपत ज्ञानी है तो अपना ज्ञान और कहीं रे बघार इतनी बड़ी दुनिया पड़ी है रे <br />
ए गनपत लोग लुगाई के झगड़े में न पड़ना रे नहीं तो खाट भी न रहेगी रे <br />
ए गनपत तू तो बड़ा टॉप क्लास ब्लॉगर है रे तू तो टिप्पणी देना पसंद नहीं करता है रे <br />
ए गनपत ब्लॉग पे तू अपनी ढपली अपना राग अलाप रे फटेला नहीं का समझे रे <br />
ए गनपत चम्मचो के मकड़जाल में न पड़ना रे <br />
ए गनपत जरा चैटिंग कर लिया कर रे <br />
ए गनपत दूसरो की वैसाखियों पर न चल रे बाबा <br />
ए गनपत तू तो एग्रीकेटर बन गयेला रे अब तो तेरी मर्जी चलती है रे .<br />
ए गनपत अखबारों की पोस्ट ब्लॉग में छाप रे और पसंदगी पे चटका लगवा और आगे बढ़ रे रेटिंग के शिखर में .<br />
ए गनपत तेरे को टॉप २० में नहीं रहना है क्या रे .<br />
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....Unknownnoreply@blogger.com2