क्या पता, कौन सा सवार, बहन जैसा भाई निकले?
ललित शर्मा
भैया का बताएं कुछ कहेंगे तो किसी के नाराज होने का डर है, ना कहेंगे तो जूता सर पर है, अब जो होगा देखा जायेगा जब पान की दुकान तक पहुच ही गए तो,चाहे जूते पड़े हजार,तमाशा घुस के देखेंगे,मजे भी रज्ज के लेंगे.
एक दिन की बात है
हम चौक पे पान ठेले पर शाम को खड़े थे
और भी दो चार लोग बतिया रहे थे.
बातों के घूँसे चला रहे थे
और सरकार को लतिया रहे थे.
बगल में कुछ शोहदे भी खड़े थे
जो अभी नए-नए अंडे फोड़ कर बाहर निकले थे.
नए पंखों से उड़ने को बेकरार
पंख फडफड़ा कर एकदम हुए थे तैयार,
मर्दानगी का जोश उफान पर था,
इसलिए उनका जम घट पान की दुकान पर था.
हम पहले भी ऐसे कईयों को पीट चुके थे
उनको सबक सिखा चुके थे.
अब हमने सोचा की आज तमाशा ही देखें,
हमें भी कुछ लिखने का सामान मिल जायेगा
और नही तो चाय पानी का ही खर्चा निकल जायेगा.
इतने में देखा कि एक हीरो होंडा पर
दो पुरुष जैसी नारियां सवार होकर सामने से निकली,
तभी एक लड़के की जबान फिसली,
उसने जोर से सीटी बजाई,
बाकी लड़कों ने भी साथ दिया
और हाँ में हाँ मिलाई,
मतलब क्रम से सीटी बजायी,
वो सवार कुछ दूर चले गए थे
उन्हें सीटी की आवाज दी सुनाई,
सुनते ही अपनी मोटर सायकिल घुमाई,
जैसे ही वो पास आये
सारे लड़के रह गए हक्के बक्के
वो ना नर थे,ना नारी थे,वो थे छक्के.
एक बोला बताओ किसने सीटी बजाई,
हम हैं बहन जैसे भाई
आज किसकी शामत है आई,
क्या तुमको चाहिए माँ जैसी लुगाई
इतना सुनते ही वो दल खिसक गया
और एक सीटी बजाने वाला लड़का फँस गया.
क्या बताऊँ वहां का आँखों देखा हाल,
दोनों छक्कों ने उस "नवोदित मर्द" का
मार-मार कर दिया बुरा हाल.
बीच चौराहे पर उसका तमाशा बना डाला,
कपडे फाड़ कर नंगा कर डाला,
वो मर्द बार -बार छक्कों से कर रहा था गुहार,
एक छक्का उसे पीछे से था पकडे
दूसरा कर रहा था प्रहार,
लड़का बोल रह था मुझे छोड़ दो
वो सीटी जिसने मारी थी वो तो भाग गया
उसे पकडो और उसका सर फोड़ दो,
तभी एक छक्का बोला
क्यों फिर लेगा छक्कों से पंगा
साले बड़ा मर्द बनता फिरता है
हो गया ना नंगा,
मर्दानगी का नशा उतर गया
की थोडा और उतारू
तेरी सलमान कट जुल्फे
थोडी उस्तरे से सुधारू
उस लड़के को सांप सूंघ गया
वो थूक गटक के लील गया था
सारे आम मार खा-खा के
पूरा अन्दर तक हिल गया था.
फिर हिम्मत करके बोला
माई बाप अब तो छोड़ दो
फिर कभी किसी को देख के
सीटी नहीं बजाऊंगा
अब मैं समझ गया अब मैं समझ गया
एक छोटी सी सीटी की इतनी बड़ी सजा
कभी भी नहीं पाई है
क्या पता कौन सा सवार
बहन जैसा भाई है.
बहन जैसा भाई है.
ललित शर्मा
5 टिप्पणियाँ:
एक सीटी आदमी को ...... बना देती है...
जय हिंद...
खाके पान बनारस वाला खुल जाय बंद अकल का ताला .
क्या बात है खुल गई है पान की दुकान
यहाँ के किस्से सुनकर होंगे फिर से हलकान
जारी रहे ...उम्दा
बहुत ही मज़ेदार
कवि का .... से साक्षात्कार दिलचस्प है
छक्कों से सावधान।
मजेदार किस्सा।
एक टिप्पणी भेजें