मधु कोडा़
आज सुबह से ही पान की दुकान पर चर्चा है कि कल के सांध्य दैनिक छत्तीसगढ में 'बात की बात' पर मधु कोडा विशेष प्रकाशित है। दो लाईनों की संपूर्णता पढें -
कोड़ा के लिए
लाओ तो कोड़ा ......
'...ईएमएस नंबूदिरीपाद उससे कहीं ज्यादा बड़ी संम्पत्ति और दौलत के मालिक थे, अपना सब कुछ मजदूर वर्ग की पार्टी-कम्युनिस्ट पार्टी को समर्पित करने के बाद सादगी का जीवन बिना किसी के कहे उन्होंने चुना था। आजाद भारत के वे पहले विपक्षी मुख्यमंत्री थे। मगर मुख्यमंत्री बनने के बाद वे साइकिल से मंत्रालय जाया करते थे और उसी साइकिल के कैरियर पर टाइपराइटर बांधकर दौरे किया करते थे। 60 और 70 के दशक तक दिल्ली से तिरूअनंतपुरम साढ़े तीन दिन की यात्रा रेलगाड़ी के साधारण दर्जे या स्लीपर क्लास में करते थे। पार्टी एमपी (सांसद) के नाम मिले 20, जनपद के बंगले को 3-4 अन्य पार्टी साथियों के परिवारों के साथ साझा करने वाले इस दिग्गदज नेता से जब एक बार तबके प्रधानमंत्री चंद्रशेखर मिलने आए, तो उन्हें चाय पिलाने के लिए कप-प्लेट ईएमएस को पड़ोस से मांगने पड़े थे।...`
'...लंबे समय तक भारत की संसद में संसदीय दल के नेता और सीटू के महासचिव रहे 96 वर्षीय कॉमरेड समर मुखर्जी पिछले 70 साल से दर्जन भर कॉमरेडों के साथ एक पलंग, एक अलमारी और साझ बाथरूमवाले पार्टी कम्यून में रह रहे हैं।...`
'...मुख्यमंत्री निवास छोडते वक्त एक झोले में एक जोडी कुर्ता-पायजामा भर ले जाने वाले नृपेन चक्रवर्ती त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहते हुए स्टूडेंट्स फैडरेशन की कांफ्रेंस के लिए बिलासपुर आए थे। उनसे मिलने आए पत्रकार अचरज में पड़ गए, जब उन्होंने देखा कि यह मुख्यमंत्री खुद अपने कपड़े धोकर रस्सी पर सुखा रहा है और गमछा पहने उनके सूखने का इंतजार करते बैठा है। मुख्यमंत्री बनने के बाद 1978-79 में ज्योति बसु की भिलाई यात्रा स्थानीय अखबारों में उनकी बड़ी रैली की वजह से कम, उनके दुर्ग स्टेशन के रेलवे रिटायरिंग रूम में ठहरने की वजह से ज्या दा चर्चित हुई।...`
जब हम किफायत और सादगी की बात करते हैं तो वह कोई गांधी युग के साथ चल बस चुकीं चीजें नहीं हैं। वे आज भी इसी लोकतंत्र में कुछ विचारधाराओं के भीतर एक सीमित दायरे में निभ रही हैं और ऐसी बातें ही नेता शव्द को पूरी तरह गाली बनने से रोके हुए हैं, नेता चाहे संसद के, चाहे अदालत के, चाहे सरकार के।
(छत्तीसगढ से साभार)
यह चर्चा इसलिए भी आज गर्म है क्योंकि आज से भ्रष्टाचार उन्मूलन सप्ताह चालू आहे ....
4 टिप्पणियाँ:
मधु कोड़ा ने तो अपनी दरिद्री दुर करने की कोशिश की थी,सोचा होगा दो चार पीढी के लिए जमा कर लुँ, फ़िर मिलेगा की नही-लूट सके तो लूट्। तब यह नही पता था कि "कोड़ा" भी पड़ सकता है और बेहोशी भी आ सकती है और जेल भी जाना पड़ सकता है, उपर वाले की लाठी की मार बेआवाज होती है।
रोचक पोस्ट
संजीव मैं ब्लागिंग की दुनिया मे नया हुं, और ये लेख मेरे लिये, अब तक का सबसे परिपक्व लेख है, इसमें लिखी सारी जानकारी मुझे है, अच्छा ये लगा कि तुम्हे भी है. सचमुच अच्छा लगा.
छोटे राज्य बने ही हैं जनता को लूटने के लिए:)
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