शनिवार, 22 नवंबर 2014

अब तो ''समाजवादी'' बग्घी पे आ रहा है


'लोहिया' तेरे मिशन को ये कौन खा रहा है
अब तो ''समाजवादी'' बग्घी पे आ रहा है

लूटो गरीब को पर बातें गरीब की हों
ये मुल्क पूंजी-पूंजी अब खुल के गा रहा है.

जो लोग थे 'मुलायम' दिखते 'कठोर' कैसे
'आजम' का आज 'जाजम' अब इनको भा रहा है

सारे विचार अच्छे बेकार हो गए हैं
ये दौर देखिये अब क्या दिन दिखा रहा है

सच्चे समाजवादी बेकार हो गए हैं
नकली है माल जितना वो उतना छा रहा है

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मंगलवार, 18 नवंबर 2014

काली कमाई का सबसे सुरक्षित ठिकाना बैंक लॉकर !

         भ्रष्टाचार और काला धन दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं . दोनों एक-दूजे के लिए ही बने हैं और एक-दूजे के फलने-फूलने के लिए ज़मीन तैयार करते रहते हैं . यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दोनों एकदम सगे मौसेरे भाई हैं. भ्रष्टाचार से अर्जित करोड़ों-अरबों -खरबों की दौलत को छुपाकर रखने के लिए तरह -तरह की जुगत लगाई जाती है . भ्रष्टाचारियों द्वारा इसके लिए अपने नाते-रिश्तेदारों ,नौकर-चाकरों और यहाँ तक कि कुत्ते-बिल्लियों के नाम से भी बेनामी सम्पत्ति खरीदी जाती है . बेईमानी की कालिख लगी दौलत अगर छलकने लगे तो सफेदपोश चोर-डाकू उसे अपने बिस्तर और यहाँ तक कि टायलेट में भी छुपाकर रख देते हैं . .हालांकि देश के सभी राज्यों में हर साल और हर महीने कालिख लगी कमाई करने वाले सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के घरों पर छापेमारी चलती रहती है ,करोड़ों -अरबों की अनुपातहीन सम्पत्ति होने के खुलासे भी मीडिया में आते रहते हैं .
                      आपको यह जानकर शायद हैरानी होगी कि हमारे देश के राष्ट्रीयकृत और निजी क्षेत्र के बैंक भी भ्रष्टाचारियों  की   बेहिसाब दौलत को छुपाने का सबसे सुरक्षित ठिकाना बन गए हैं .जी हाँ !  ये बैंक  जाने-अनजाने इन भ्रष्ट लोगों की मदद कर रहे हैं और उनकी काली कमाई के अघोषित संरक्षक बने हुए हैं  ! वह कैसे ? तो जरा विचार कीजिये ! प्रत्येक बैंक में  ग्राहकों को लॉकर रखने की भी सुविधा मिलती है .हालांकि सभी खातेदार इसका लाभ नहीं लेते ,लेकिन कई इच्छुक खातेदारों को बैंक शाखाएं  निर्धारित शुल्क पर लॉकर आवंटित करती हैं  .उस लॉकर में आप क्या रखने जा रहे हैं , उसकी कोई सूची बैंक वाले नहीं बनाते . उन्हें केवल अपने लॉकर के किराए से ही मतलब रहता है . लॉकर-धारक से उसमे रखे जाने वाले सामानों की जानकारी के लिए कोई फ़ार्म नहीं भरवाया जाता .  .आप सोने-चांदी ,हीरे-जवाहरात से लेकर  बेहिसाब नोटों के बंडल तक उसमे रख सकते हैं . एक मित्र ने मजाक में कहा - अगर आप चाहें तो अपने बैंक लॉकर में दारू की बोतल और अफीम-गांजा -भांग जैसे नशीले पदार्थ भी जमा करवा सकते हैं .
          कहने का मतलब यह  कि बैंक वाले अपनी शाखा में लॉकर की मांग करने वाले किसी भी ग्राहक  को निर्धारित किराए पर लॉकर उपलब्ध करवा कर अपनी ड्यूटी पूरी मान  लेते हैं  .हाल ही में कुछ अखबारों में यह समाचार पढ़ने को मिला कि   एक भ्रष्ट अधिकारी के बैंक लॉकर होने की जानकारी मिलने पर जांच दल ने जब उस बैंक में उसे साथ ले जाकर लॉकर खुलवाया तो उसमे पांच लाख रूपए नगद मिले ,जबकि उसमे विभिन्न देशों के बासठ नोटों के अलावा कई विदेशी सिक्के भी उसी लॉकर से बरामद किये गए ..उसके ही एक अन्य बैंक के लॉकर में करोड़ों रूपयों की जमीन खरीदी से संबंधित रजिस्ट्री के अनेक दस्तावेज भी पाए गए .जरा सोचिये ! इस व्यक्ति ने  पांच लाख रूपये की नगद राशि को अपने बैंक खाते में जमा क्यों नहीं किया ? उसने इतनी बड़ी रकम को लॉकर में क्यों रखा ? फिर उस लॉकर में विदेशी नोटों और विदेशी सिक्कों को रखने के पीछे  उसका इरादा क्या था ? हमारे जैसे लोगों के लिए तो  पांच लाख रूपये भी बहुत बड़ी रकम होती है .इसलिए मैंने इसे 'इतनी बड़ी रकम' कहा .
          बहरहाल हमारे  देश में बैंकों के लॉकरों में पांच लाख तो क्या , पांच-पांच करोड रूपए रखने वाले भ्रष्टाचारी भी होंगे .आम धारणा है कि भारत के काले धन का जितना बड़ा जखीरा विदेशी बैंकों में है ,उससे कहीं ज्यादा काला धन देश में ही छुपा हुआ है और तरह-तरह के काले कारोबार में उसका धडल्ले से इस्तेमाल हो रहा है . ऐसा लगता है कि बैंक लॉकर भी काले-धन को सुरक्षित रखने का एक सहज-सरल माध्यम   बन गए हैं .ऐसे में अगर देश के भीतर छुपाकर रखे गए काले धन को उजागर करना हो तो सबसे पहले तमाम बैंक-लॉकर धारकों के लिए यह कानूनन अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए कि वे अपने लॉकर में रखे गए सामानों की पूरी जानकारी बैंक-प्रबंधन को दें .ताकि उसका रिकार्ड सरकार को भी मिल सके .अगर लॉकर धारक ऐसा नहीं करते हैं तो उनके लॉकर जब्त कर लिए जाएँ . मुझे लगता है कि ऐसा होने पर  अरबों-खरबों रूपयों का काला धन अपने आप बाहर आने लगेगा और उसका उपयोग देश-हित में किया जा सकेगा .(स्वराज्य करुण )

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