शनिवार, 26 नवंबर 2011

एक तमाचा तो नाकाफी है

एक थप्पड़ दिल्ली में ऐसा पड़ा कि अब इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। सुनाई पड़नी भी चाहिए। आखिर यह आम आदमी का थप्पड़ है, इसकी गूंज तो दूर तलक जानी ही चाहिए। कहते हैं कि जब आम आदमी तस्त्र होकर आप खोता है तो ऐसा ही होता है। आखिर कब तक आम जनों को ये नेता बेवकूफ बनाते रहेंगे और कीड़े-मकोड़े सम­ाते रहेंगे। अन्ना हजारे का बयान वाकई गौर करने लायक है कि क्या एक ही मारा। वास्तव में महंगाई को देखते हुए यह एक तमाचा तो नाकाफी लगता है।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि आज देश का हर आमजन महंगाई की मार से इस तरह मर रहा है कि उनको कुछ सु­झता नहीं है। ऐसे में जबकि कुछ सम­झ नहीं आता है तो इंसान वही करता है जो उसे सही लगता है। और संभवत: उस आम आदमी हरविंदर सिंह ने भी वही किया जो उनको ठीक लगा। भले कानून के ज्ञाता लाख यह कहें कि कानून को हाथ में लेना ठीक नहीं है। लेकिन क्या कानून महज आम जनों के लिए बना है? क्या अपने देश के नेता और मंत्री कानून से बड़े हैं? क्यों कर आम जनों के खून पसीने की कमाई पर भ्रष्टाचार करके ये नेता मौज करते हैं। क्या भ्रष्टाचार करने वाले नेताओं के लिए कोई कानून नहीं है? हर नेता भ्रष्टाचार करके बच जाता है।
अब अपने देश के राजनेताओं को सम­झ लेना चाहिए कि आम आदमी जाग गया है, अब अगर ये नेता नहीं सुधरे तो हर दिन इनकों सड़कों पर पिटते रहने की नौबत आने वाली है। कौन कहता है कि महंगाई पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता है। हकीकत तो यह है कि सरकार की मानसकिता ही नहीं है देश में महंगाई कम करने की। एक छोटा सा उदाहरण यह है कि आज पेट्रोल की कीमत लगातार बढ़ाई जा रही है। कीमत बढ़ रही है, वह तो ठीक है, लेकिन सरकार क्यों कर इस पर लगने वाले टैक्स को समाप्त करने का काम नहीं करती है। एक इसी काम से महंगाई पर अंकुश लग जाएगा। जब पेट्रोल-डीजल पर टैक्स ही नहीं होगा तो यह इतना सस्ता हो जाएगा जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता है। आज पेट्रोल और डीजल की कीमत का दोगुना टैक्स लगता है। टैक्स हटा दिया जाए तो महंगाई हो जाएगी न समाप्त।
पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों की मांग ही आम जनों के खाने की वस्तुओं पर पड़ती है। माल भाड़ा बढ़ता है और महंगाई बेलगाम हो जाती है। जब महंगाई अपने देश में बेलगाम है तो एक आम इंसान बेलगाम होकर मंत्री का गाल लाल कर देता है तो क्या यह गलत है। एक आम आदमी के नजरिए से तो यह कताई गलत नहीं है।
थप्पड़ पर अन्ना हजारे के बयान पर विवाद खड़ा करने का भी प्रयास किया गया। उनका कहना गलत नहीं था, बस एक मारा। वास्तव में महंगाई की मार में जिस तरह से आम इंसान पिस रहा है, उस हिसाब से तो एक तमाचा नाकाफी है।

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शनिवार, 12 नवंबर 2011

राजनीति अब धंधेबाजों का खेल

आज अपने देश की राजनीति पूरी तरह से धंधेबाजों का खेल बनकर रह गई है। यह बात हम हवा में नहीं कह रहे हैं। आज अपने राज्य और देश का विकास चाहने वाले राजनेताओं की जरूरत नहीं रह गई है। अच्छे राजनेता राजनीति से किनारा कर गए हैं। अपने राज्य छत्तीसगढ़ के पूर्व वित्त मंत्री डॉ. रामचंद्र सिंह देव भी ऐसे नेता हैं जिन्होंने राजनीति की गंदगी को देखते हुए राजनीति से किनारा कर लिया है। उनसे बात करने का मौका मिला तो उनका यह दर्द उभर कर सामना आया। उन्होंने जो कुछ हमें बताया हम उनके शब्दों में ही पेश कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में विकास का सपना लिए मैंने 1967 में पहला विधानसभा चुनाव रिकॉर्ड मतों से जीता था। मेरी जीत के पीछे मेरा नहीं बल्कि मेरे पिता डीएस सिंह देव का नाम था जिनके कारण मुझ जैसे अंजान को मतदाताओं ने सिर आंखों पर बिठाया था। यहां से शुरू हुए मेरे राजनीति के सफर के बाद मैंने छह बार चुनाव जीता। पांच बार कांग्रेस की टिकिट पर और एक बार निर्दलीय। लेकिन इधर राजनीति में जिस तरह से हालात बदले और आज राजनीति जिस तरह से व्यापार में बदल गई है उसके कारण ही मुझे सक्रिय राजनीति से किनारा करना पड़ा। राजनीति से भले मैंने संन्यास ले लिया है, लेकिन जब भी विकास की बात आती है तो मैं चाहे छत्तीसगढ़ हो या मप्र या फिर मेरा पुराना राज्य बंगाल, मैं सबके लिए लड़ने हमेशा तैयार रहता हूं।
राजनीति में आने का पहला मकसद होता है अपने क्षेत्र और राज्य के विकास के लिए काम करना। मैंने अपने राजनीतिक जीवन में यही प्रयास किया, लेकिन जब मुझे लगने लगा कि अब राजनीति ऐसी नहीं रह गई जिसमें रहकर कुछ किया जा सके तो मैंने संन्यास लेने का फैसला कर लिया। आज का मतदाता वोट डालने के एवज में पैसा चाहता है। वैसे मैं आज भी कांग्रेस में हूं, लेकिन सक्रिय राजनीति से मेरा कोई नाता नहीं रह गया है। मैं वर्तमान में राजनीतिक हालात की बात करूं तो आज कांग्रेस हो या भाजपा दोनों पार्टियों में अस्थिरता का दौर चल रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य के 11 सालों की यात्रा की बात करें तो कांग्रेस शासन काल के तीन साल तो राज्य की बुनियाद रखने में ही निकल गए। भाजपा सरकार के आठ सालों की बात करें तो इन सालों में भाजपा सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया है जिसको महत्वपूर्ण माना जा सके।
छत्तीसगढ़ बना तो इसकी आबादी दो करोड़ 5 लाख थी। छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से परिपूर्ण राज्य है। यहां कोयला, लोहा, बाक्साइड, चूना, पत्थर भारी मात्रा में हैं। राज्य में इंद्रावती नदी से लेकर महानदी के कारण पानी की कमी नहीं है। इतना सब होने के बाद जिस तरह से राज्य का विकास होना था वह नहीं हो सका है। राज्य की 75 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है, लेकिन जहां तक विकास का सवाल है तो राज्य में दस प्रतिशत ही विकास किया गया है और वह भी शहरी क्षेत्रों में। राज्य में 35 लाख परिवार गरीबी रेखा के नीचे हैं। राज्य में उद्योग तो लगे लेकिन ये उद्योग प्राथमिक उद्योग ही रहे। प्राथमिक उद्योग से मेरा तात्पर्य यह है कि कच्चे माल को सांचे में ढालने का ही काम किया गया है। उच्च तकनीक का कोई उद्योग राज्य में स्थापित नहीं किया जा सका है। अपने राज्य की तुलना में हरियाणा और पंजाब में कोई खनिज संपदा नहीं है, फिर भी इन राज्यों में उद्योगों की स्थिति छत्तीसगढ़ से ज्यादा अच्छी है। छत्तीसगढ़ का कच्चा माल बाहर जा रहा है, यह स्थिति राज्य के लिए हानिकारक है।
छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है पर कृषि के लिए कुछ नहीं किया गया है। मैं इंडिया टूडे के एक सर्वे का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें देश के राज्यों में छत्तीसगढ़ को कृषि में 19वें स्थान पर रखा गया है। इसी तरह से अधोसंरचना में 19वां, निवेश में छठा, स्वास्थ्य में तीसरा सुक्ष्म अर्थव्यवस्था में 19वां और संपूर्ण विकास के मामले में देश में 16वें स्थान में रखा गया है। यह सर्वे भी साबित करता है कि राज्य में विकास नहीं हो सका है। जो 10 प्रतिशत विकास हुआ है, वह अमीरों का हुआ है।
मेरा ऐसा मानना है कि भाजपा विकास के सही मायने समझ ही नहीं सकी। भाजपा को कृषि, लघु उद्योग, हस्तशिल्प पर जोर देना था ताकि गांवों में रहने वाली 75 प्रतिशत आबादी का विकास होता। ऐसा क्यूं नहीं हुआ यह एक चिंता का विषय है। जिस तरह से राज्य में उद्योग आ रहे हैं और खनिज संपदा का दोहन कर रहे हैं उससे राज्य आने वाले 40-50 सालों में खोखला हो जाएगा। सरकार ने दो रुपए किलो चावल दिया, यह अच्छी बात है, लेकिन इससे आर्थिक विकास कहां हुआ? सरकार को गरीबी रेखा में जीवन यापन करने वालों को इस रेखा से बाहर करने की दिशा में काम करना था।
मैं अंत में अक्टूबर 2000 में मप्र के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को लिए गए अपने एक पत्र का उल्लेख करना चाहूंगा जिसमें मैंने उन्हें लिखा था कि आपके पास तो बालाघाट का एक लांजी ही नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, लेकिन छत्तीसगढ़ में बहुत ज्यादा क्षेत्र नक्सल प्रभावित है, अगर नक्सली क्षेत्र में सही विकास नहीं हुआ तो छत्तीसगढ़ नक्सलगढ़ हो जाएगा, आज लगता है कि मेरी यह भविष्यवाणी सच साबित हो गई है।

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