कैसे भूलूँ
"कैसे भूलूं "
तुमको याद करुँ मैं इतना,
ख़ुद को ही भूल जाऊँ।
मैं तो भूली ही कब तुमको,
और न किया कब याद।
इस हृदय की सारी बातें,
एक तुम्हीं ने जाना।
अब क्या धरा हुआ इस जग में,
कैसे तुम्हें बताऊँ ।
कैसे तुम्हें बताऊँ ।
मेरी सारी खुशियाँ तुम थे,
मैं तो बस इतना जानूँ ।
रोम- रोम में तुम हो, तुम हो,
मैं क्यों कर भूल पाऊं।
तुम तो सदा कहा करते थे,
तुम तो बस मेरी हो।
पर तुम कभी न यह सोचे कि,
तुम भी तो बस मेरे हो।
बिना तुम्हारे इस दुनिया में,
मैं कैसे रह पाऊं।
इतना तो बस सोचे होते,
मैं फिर धन्य हो जाती।
-कुसुम ठाकुर-
4 टिप्पणियाँ:
कविता में सुन्दर भाव !
बिना तुम्हारे इस दुनिया में,
मैं कैसे रह पाऊं।
इतना तो बस सोचे होते,
मैं फिर धन्य हो जाती।
बहुत सुन्दर कुसुम जी बस औरत को ही सोचने का अभिशाप मिला हुया है। शुभकामनायें
तुम तो सदा कहा करते थे,
तुम तो बस मेरी हो।
पर तुम कभी न यह सोचे कि,
तुम भी तो बस मेरे हो।
बहुत ही गहराई लिये सुन्दर भाव ।
बहुत सुदंर अभिव्यक्ति भावों की-आभार
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