मंगलवार, 10 नवंबर 2009

आम जनता क्या डंडे खाने के लिए है

अबे सुनाई नहीं दे रहा है क्या कितनी बार बोलना पड़ेगा चलो यहां से निकलो नहीं तो इतने डंडे पड़ेंगे कि साले उठ भी नहीं पाओगे। और ये बार-बार पास क्या दिखा रहा है बे कितनी बार कहा कि ये पास-वास यहां चलने वाली नहीं है। किसी को भी यहां से जाने नहीं दिया जाएगा। साले अब पास दिखाएगा तो पास के साथ तुझे भी फाड़ दूंगा।

ये किसी फिल्म का सीन नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के राज्योत्सव के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम स्थल के बाहर उस गेट का नजारा है जहां पर अपने राजधानी के सबसे ईमानदार समझे जाने वाले सीएसपी शशिमोहन सिंह साहब आम जनता पर भड़क रहे थे। उनके तेवर देखकर अंत में सभी वीआईपी पास धारियों को भी वहां से पुलिस से खदेड़ दिया। ये नजारा वहां एक दिन का नहीं रोज का था। कभी कोई शशिमोहन आम जनता पर गरिया रहा था तो कभी कोई दूसरा मोहन गरिया रहा था। अब मोहन हैं तो वो तो गरियाएंगे ही क्योंकि सांस्कृतिक कार्यक्रम भी तो अपने प्यारे मोहन यानी प्रदेश के सबसे चहेते मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभाग का था। अब यह बात अलग है कि अपने ये प्यारे मोहन किसी पर गरियाते नहीं हैं और सभी से सहजता से मिल लेते हैं, पर पुलिस वाले अपनी जात न दिखाएं तो उनको पुलिस वाला कौन कहेगा।

राज्योत्सव में आम जनता को सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लुफ्त उठाने का मौका ही नहीं मिला। एक तरफ अपने राज्य के नेता-मंत्री और अफसर अपने घर परिवार, अड़ोसी-पड़ोसी सबको लेकर मजे से कुर्सियों में पैर पसारे आराम से कार्यक्रम देख रहे थे तो दूसरी तरफ बाहर गेट में आम जनता जिनमें वीआईपी पासधारी भी शामिल थे धक्के खाते हुए पुलिस की गालियां खाने को मजबूर थे। इतना सब सुनने और सहने के बाद भी आम जनता का दिल इतना बड़ा कि वह अपने चहेते कलाकारों की एक झलक पाने की आस में पुलिस के सामने गिड़गिड़ा रहे थे, लेकिन अपने पुलिस वाले कहां किसी की सुनते हैं। पुलिस वाले तो मीडिया वालों को भी भाव नहीं देते हैं तो फिर आम जनता की बिसात ही क्या है।

कुल मिलाकर इस बार का राज्योत्सव आम जनता के लिए बस इस लिहाज से अच्छा रहा कि उनको हमेशा की तरह कई तरह के स्टालों को देखने के साथ मेले का आनंद लेने का मौका मिला। अंतिम दिन रमन सरकार ने जनता पर एक सबसे बड़ा अहसान यह किया कि सूर्यकिरण का जो आसमानी शो करवाया उस शो ने ही राज्योत्सव की लाज रख ली। इस शो को देखने के लिए राजधानी में ऐसा सैलाब आया जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की थी। शो स्थल पर पैर रखने की जगह ही नहीं थी। जो जहां खड़ा है, वहां से हिल भी नहीं सकता था ऐसे हालात थे। काश अपने राज्योत्सव में सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी आम जनों के लिए इसी तरह से रखा जाता तो जरूर प्रदेश की जनता रमन की तारीफ करती। लेकिन ऐसा कभी होगा यह संभव नहीं है। जिस तरह से सांस्कृतिक कार्यक्रमों का वीआईपी करण किया गया था, वह गलत भी है और शर्मनाक भी।

इस पर एक रिपोर्ट राजतंत्र में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का वीआईपी करण आप देख सकते हैं।

2 टिप्पणियाँ:

M VERMA 10 नवंबर 2009 को 6:33 am बजे  

जनता के हिस्से मे तो डंडे ही है.

Dr. Zakir Ali Rajnish 10 नवंबर 2009 को 1:39 pm बजे  

लगता तो यही है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }