कैसे करूँ, किस-किस को दूँ!!!!
ललित शर्मा
हमारे गांव में चुनाव का घमासान मचा हुआ है. गांव के जितने भी छुटके-बड़के सेवक हैं सब जन सेवा का संकल्प लेकर ताल ठोक कर आ गए हैं मैदान में. पान की दुकान पर छुट भईये नेता लोंगो का जमावड़ा बढ़ गया है. यहाँ से सारी सूचनाएं प्रसारित होती रहती हैं.
कौन पार्टी से गद्दारी करके किसके साथ फिट हो गया है? कौन जितने वाला है कौन हारने वाला है? सबका फैसला यहीं पर खड़े-खड़े पान चबाते हुए हो रहा है. आज पान लगाने की ड्यूटी हमारी है और इलेक्शन के कारण हमारा फुल मनोरंजन हो रहा है. हम गुरु जी का पान लगाते-लगाते सबकी कथा कहानी सुन रहे हैं.
भईया "निष्ठावान" पार्टी से काफी नाराज है .पार्टी ने उसकी सेवाओं को किनारे रखते हुए उसका टिकिट काट दिया और एक नोट वाले "अवसरवादी" भईया को दे दिया. अब ये श्रीमान रात को एक पव्वा मार कर सबको हराते और जिताते फिर रहे है और कहते हैं सबकी वाट लगा कर छोड़ेंगे.
रात दिन प्रत्याशियों का दौरा चल रहा है. हाथ जोड़ कर पैर पकड के वोट मांग रहे हैं. एक प्रत्याशी तो हमें ही मिल गए और आकर पैरों में गिर गये भईया हमी को वोट देना. हमने इनकी सकल १० साल में देखी है. किसी से सरोकार नहीं रखते बस हाथ में डंडा लेकर रात दिन भांजते रहते है. अब बस सबका गोड़ धर के आशीर्वाद ही मांगने का काम कर रहे हैं.
एक कहते हुए घूम रहे हैं कि मैं आपके दरवाजे का कुत्ता हूँ, आपसे गद्दारी नहीं करूँगा. एक बार मेरी वफ़ादारी भी अजमा कर देख लो. ये सब फर्जी लोग आपके काम नहीं आयेंगे. आखिर मैं ही काम आऊंगा आपके. इन्होने दारू भट्ठी से आते हुए समारू बाबा का पैर पकड लिया. वो भी टुन्न थे उन्होंने कह दिया भईया मुझे कुत्तों से बड़ा डर लगता है काट ले चौदह इंजेक्शन लगवाना पड़ता है. बेचारा अपना सा मुंह ले कर चला गया.
एक नेता जी हैं टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय भाग्य अजमाने खड़े हो गए हैं. सुबह अपने घर से गेंदे का माला गले में डाल कर निकलते हैं. क्या पता कोई रास्ते में पहनाये या ना पहनाये. बिना माल और माला के नेता की कैसी शोभा? आगे आगे धमाल बैंड पार्टी का ढोल बजता है और ये सबकी चरण धूलि लेते हुए घूम रहे हैं.
एक बात आज मैंने खास देखी उसे तो बताना ही भूल गया था. कंस राम ठेले पर आकर खड़ा हुआ. फुल दारू के नशे में टुन्न. खड़े-खड़े झूम रहा था. पता नहीं कब से पी रहा था. इलेक्शन की मुफ्त की दारू नशा भी ज्यादा करती है. झूमते-झूमते एक छत्तीसगढ़ी की पैरोडी गा रहा था. एला दांव के ओला देंव, कईसे करंव कोन-कोन ला दंव, काला-काला दंव. (इसको दूँ कि उसको दूँ, कैसे करूँ, किस-किस को दूँ.)
तब मैंने कहा कि भईया- इतना माल सबसे क्यों ले लिए? कि जो खुद ही चक्कर में पड़ गए. अब मैं वोट किसको दूँ? तो उसने कहा " क्या बताऊँ महाराज! आते हैं और सब लोग अपनी-अंपनी दारू छोड़ कर चल देते हैं. अब मेरे को मुसीबत में डाल दिये हैं. सबका अलग-अलग ब्रांड घाल-मेल हो गया है. चुनाव चिन्ह ही समझ में नहीं आ रहा है?
तो ये हाल हो गया है. इस इलेक्शन में .
ललित शर्मा
13 टिप्पणियाँ:
भई जॊ आप का कुता बने उसे दुतकार दो, जो दारू पिलाये उसे दारू पी कर पीट दो, जो वाद करे उस के पीछे गली के कुत्ते लगा दो, वो जो सामाने टुटी साईकिल लिये चुपचाप खडा देख रहा है यह तमाशा बस उसे ही बिन मांगे वोट दो,बाकी सब को चुना लगा के पू्छो भाई आज तक क्या किया??
आप का पान आज बहुत मीठा लगा,
बढिया व्यंग्य
चली ललित की लेखनी व्यंग्य-बाण से चोट।
सोचें कल की, न करें दारू पीकर वोट।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
आप का पान आज बहुत मीठा लगा,
राज जी से सहमत हूं।
काकटेल?
कोए की पूँछ?
पान ठेले पर चल रही शाश्वत चर्चा है यह. कंस राम मेर अइनेहे म त अतका चेपटी सकला जही कि वो ह कोचिया बन जही.
बहुत सटीक ठोका जी.
रामराम.
बहुत बढ़िया व्यंग्य!!
बहुत ख़ूब
इस पोस्ट के लिए विशेष टीप
किस किस को प्यार करूँ मै कैसे प्यार करूँ
तुम भी हो वो भी है किसको प्यार करूँ मै .
Wah...Maharaaj wah....
dedanadan
बड़ा बवाल है ये तो।
बहुत खूब ललित भाई, आप तो चुनावी महौल में डूब से गये हो लगता है. खैर जीते कोई भी, हारना तो जनता को हि है....
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