पान दुकान हो और पान की चर्चा न हो ऐसा कैसे हो सकता है?
जी.के. अवधिया
पान खाने और खिलाने की प्रथा हजारों साल पहले से चली आ रही है। ऐसे प्रमाण मिले हैं कि भारत में ईसवी पूर्व सन् 2600 याने कि पूर्ववैदिक काल में हड़प्पा राजा पान खाया करते थे। प्राचीन काल में भारत और लंका के राजकुलों में पान खाने का रिवाज था और पान बनाने के लिये राजाओं के विशेष सेवक हुआ करते थे। रात्रि भोज के पश्चात् भारतीय दम्पतियों में पान खाने का प्रचलन था क्योंकि पान मुखशुद्धि करके मुँह के दुर्गन्ध को दूर करता है।
अली अल मसूदी, एक अरब इतिहासकार जिसने सन् 916 में भारत की यात्रा की थी, ने लिखा है कि भारत के सभी स्थानों में पान खाने और खिलाने की प्रथा है।
आज पान खाना हमारे देश का आम चलन है। मेहमाननवाजी करने के लिये मेहमानों को पान पेश करना औपचारिकता है हमारी। कई स्थानों में पान पेश करने का अर्थ मान सम्मान देना माना जाता है। हममें से कोई भी ऐसा नहीं होगा जिसने कभी पान खाया न खिलाया होगा। भारत के साथ ही साथ पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, म्यामार, फिलीपीन्स, कम्बोडिया वियतनाम आदि देशों में भी पान खाने का आम रिवाज है।
भारत के सभी स्थानों में पान दुकान पाये जाते हैं। स्थान स्थान में पान खाने के तरीके भी अलग अलग हैं। कहीं एक पान खाया जाता है तो कुछ स्थानों में जोड़े पान खाये जाते हैं। कहीं कहीं बिना लौंग के पान खाना और खिलाना अशुभ माना जाता है। कहीं पर पान की गिलौरियाँ बनाई जाती हैं। पान की सुन्दरता बढ़ाने के लिये उस पर चांदी का वर्क भी लपेटा जाता है।
हमारे यहाँ पूजा पाठ में पान और सुपारी को मांगलिक माना जाता है। पूजा पाठ करने का प्रचलन तो अत्यन्त प्राचीन है इससे भी सिद्ध होता है कि हमारे देश में पान और सुपारी का प्रचलन कई हजार वर्ष पूर्व से ही होते चला आ रहा है।
पान को ताम्बूल भी कहा जाता है संस्कृत ग्रंथ अमरकोष के अनुसार ताम्बूलवल्ली, ताम्बूली और नागबेलि पान के नाम हैं।
पान के अनेक प्रकार होते हैं क्योंकि भारत के अनेक हिस्सो में पान की पैदावार होती है। पान के कुछ लोकप्रिय प्रकार हैं कलकत्ता या कलकथिया पान जिसे मीठा पत्ती भी कहा जाता है, मघई, बनारसी, महोबा, नागपूरी मीठी पत्ती, बंगला, कपूरी आदि। मघई जैसी पान की कुछ पत्तियाँ इतनी नाजुक होती हैं कि मुँह में रखते ही घुल सी जाती हैं।
पान को उसमें चूना और कत्था लगाकर और सुपारी डाल कर खाया जाता है। चूना, कत्था, पान और सुपारी के इस काम्बिनेशन को कब और किसने बनाया यह तो ज्ञात नहीं है किन्तु अत्यन्त प्राचीनकाल से यह काम्बिनेशन चला आ रहा है। चूना, कत्था, पान और सुपारी के अलावा लोग पान में गुलकंद, चमन बहार जैसा मीठा मसाला आदि डाल कर खाना भी पसंद करते हैं। बहुत से लोग पान के साथ तम्बाकू का भी प्रयोग करते हैं।
आज तो पान और पान के सामान आनलाइन भी बिकने लगे हैं, यकीन न हो तो इन साइटों को क्लिक कर के देख सकते हैं - सुपारी खरीदने के लिये , चूना खरीदने के लिये
पान से सम्बन्धित इस लेख के अन्त में फिल्म तीसरी कसम के एक गीत के बोल याद आ रहे हैं
पान खाये सैंया हमारो
साँवली सूरतिया होठ लाल लाल
हाय हाय मलमल का कुरता
मलमल के कुरते पे छींट लाल लाल
चलते-चलते
अपने बनवारीलाल जी ने पान वाले को पान लगाने के लिये कहा। पान वाले ने जब पान लगा कर उन्हें दिया तो वे बोले, "अरे, एक पान से क्या होगा, तुम तो पान लगाते जाओ।"
पान वाला पान लगा लगा कर देता रहा और बनवारीलाल जी खाते रहे। सात-सौ पान खा डाला उन्होंने। फिर पान के पैसे दे कर चलते बने।
तीन चार दिन के बाद उस पान दुकान के सामने से वे निकले तो पान वाले ने खुश होकर उन्हें आवाज लगाई, "आइये, आइये, पान तो खाते जाइये।"
बनवारी लाल जी बोले, "नहीं भाई, आज तो खाना खा कर आ रहा हूँ।"
जी.के. अवधिया
7 टिप्पणियाँ:
अरे वाह, पान के संबंध में इतनी सारी जानकारी सुन्दर तरीके से प्रस्तुत की अवधिया जी आपने. यह इस ब्लाग के लिए आमुख पोस्ट होनी चाहिए.
ताम्बूलम प्रतिगृहताम ...........
शानदार जानकारी...अब पान खाने में और मजा आयेगा...इसी दुकान से..हा हा!!!
badhiya ...badhiya ..badhiya ..
bina paan khaaye hi paan ka aanand aa gaya
paan ke baare me itnee vistrit jaan kaari de kar aapne upkaar kiya hai..
dhnyavad !
बढ़िया पान चर्चा अवधिया साहब , वैसे एक बात बताऊ, पान अकेला पूरे देश में नहीं चल पाता अगर इसके साथ सिगरेट भाईसाहब नहीं होते !
सूरमा भोपाली स्टाइल,
मैं तो कह रिया हूं पान खा लो भईया...बड़ा मीठा है...
सात सौ पान...बाप रे बाप...
जय हिंद...
अवधिया जी का पान पुराण पानी की तरह बहता चला गया...कब खत्म हुआ?...पता ही ना चला
बहुत बढिया
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