सर्दी की लहर में एक चर्चा मदक कलि और मंहगाई
नसों को हिला देने वाली सर्द हवाएं चल रही थी . करीब एक हफ्ते से पान नहीं खाया था ....यह फ़िल्मी गाना ओ मदकक्ली ओ मदककली गुनगुनाते हुए पान की दुकान पर पहुँच गया . तो पानवाला बड़ा खुश हो गया जैसे कोई मुर्गा हलाल होने पहुँच गया हो .
बनियो की आदत के मुताबिक मुस्कुराकर बोला - बाबू आज बड़ी मस्ती में दिख रहा हो ..आज का बात है .....
मैंने कहा ख़ाक मस्ती कर रहा हूँ . ठण्ड इतनी पड़ रही है की मुंह अपने आप फड़कने लगता है और तुम समझ रहे हो की मै गाना गुनगुना रहा हूँ . अरे उस मंहगाई रूपी मदक कलि की बात करो जो सबको मटक मटक कर हलाकान कर रही है . तुम्हें मालूम है इस फिल्म के डायरेक्टर केन्द्रीय मंत्री पावर साब है . अरे पान वाले एक ज्योतिष ने इनके बारे में यहाँ तक कह दिया है की पवार जी को ये वाला मंत्री नहीं होना था . ये वाले का अर्थ है दाल रोटी वाला विभाग का मंत्री . हर तरफ से ओले पड़ रहे है बस वे फ़िल्मी डायरेक्टर की तरह कह देते है की अभी मंहगाई की फिल्म और चलेगी.
पानवाले ने टोककर कहा - अरे इन बुढऊ को कोई भी विभाग दे दो इनके बस में अब कुछ नहीं है अब इन्हें इस उम्र में अपने घर के नाती पोतो को खिलाना चाहिए .
मैंने कहा - यार पानवाले तुम भी बड़ी मीठी मीठी बात करत हो जिससे तुम्हारी पान की दुकान खूब चलें . पान तो मीठा खिलाते हो पर पान में चूना बहुत डाल देते हो तो पान खाने की इच्छा नहीं होती है .
पान वाला था बनिया प्रवृति का ताड़ गया की ये ग्राहक महाराज खिसक लेंगे फिर कभी न आएंगे इसीलिए चेप्टर को फ़ौरन बदल कर बोला - महाराज वो लंगोटा नन्द महाराज नहीं दिख रहे है . कभी उनसे मुलाकात होती है की नहीं ?
मैंने कहा - हाँ पिछले सप्ताह हिमालय पर थे अकेले एक लंगोट पर थे अधिक ठण्ड खा रहे थे . शायद लंगोटी में सिगड़ी बांध कर बैठे होंगें और यह कहते हुए मुश्कुराते हुए मैंने पान की दुकान से अंतिम बिदा ली...
आलेख व्यंग्य - महेंद्र मिश्र
जबलपुर वाले की कलम से
1 टिप्पणियाँ:
जय हो महाराज-सही कहा, नाती खिलाओ और हरिकीर्तन करने की उमर मे देश की दाल रोटी की जिम्मेदारी ठीक नही है।
जोर दार व्यंग्य-आनंद आ गया। आभार
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