शनिवार, 9 जनवरी 2010

साली के बाद अब पत्नी भी आईं पान दुकान में

पत्नी जी मीठा मसाला पान खाने की शौकीन तो हैं पर कभी पान दुकान में आकर नहीं खातीं, अक्सर हम ही ले जाते हैं उनके लिये ताकि वे खुश हो जायें। जब बहुत अधिक खुश करना होता हैं उन्हें तो चांदी के वर्क में लिपटी पान ले कर जाते हैं। पर आज वे पान दुकान में कैसे आ गईं? शायद हमारी साली याने कि अपनी बहन को खोजते खोजते आई होंगी।

हम तो भई, पत्नी को परमेश्वर मानते हैं क्योंकि हम तो वही करते हैं जो हमारे आदरणीय श्री गोपाल प्रसाद व्यास जी कहते हैं, और वे कहते हैं:

पत्नी को परमेश्वर मानो

गोपाल प्रसाद व्यास

यदि ईश्वर में विश्वास न हो,
उससे कुछ फल की आस न हो,
तो अरे नास्तिको! घर बैठे,
साकार ब्रह्‌म को पहचानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

वे अन्नपूर्णा जग-जननी,
माया हैं, उनको अपनाओ।
वे शिवा, भवानी, चंडी हैं,
तुम भक्ति करो, कुछ भय खाओ।
सीखो पत्नी-पूजन पद्धति,
पत्नी-अर्चन, पत्नीचर्या
पत्नी-व्रत पालन करो और
पत्नीवत्‌ शास्त्र पढ़े जाओ।
अब कृष्णचंद्र के दिन बीते,
राधा के दिन बढ़ती के हैं।
यह सदी बीसवीं है, भाई!
नारी के ग्रह चढ़ती के हैं।
तुम उनका छाता, कोट, बैग,
ले पीछे-पीछे चला करो,
संध्या को उनकी शय्‌या पर
नियमित मच्छरदानी तानो!!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

तुम उनसे पहले उठा करो,
उठते ही चाय तयार करो।
उनके कमरे के कभी अचानक,
खोला नहीं किवाड़ करो।
उनकी पसंद के कार्य करो,
उनकी रुचियों को पहचानो,
तुम उनके प्यारे कुत्ते को,
बस चूमो-चाटो, प्यार करो।
तुम उनको नाविल पढ़ने दो
आओ कुछ घर का काम करो।
वे अगर इधर आ जाएं कहीं ,
तो कहो-प्रिये, आराम करो!
उनकी भौंहें सिगनल समझो,
वे चढ़ीं कहीं तो खैर नहीं,
तुम उन्हें नहीं डिस्टर्ब करो,
ए हटो, बजाने दो प्यानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

तुम दफ्तर से आ गए, बैठिए!
उनको क्लब में जाने दो।
वे अगर देर से आती हैं,
तो मत शंका को आने दो।
तुम समझो वह हैं फूल,
कहीं मुरझा न जाएं घर में रहकर!
तुम उन्हें हवा खा आने दो,
तुम उन्हें रोशनी पाने दो,
तुम समझो ‘ऐटीकेट’ सदा,
उनके मित्रों से प्रेम करो।
वे कहाँ, किसलिए जाती हैं-
कुछ मत पूछो, ऐ ‘शेम’ करो!
यदि जग में सुख से जीना है,
कुछ रस की बूँदें पीना है,
तो ऐ विवाहितो, आँख मूँद,
मेरे कहने को सच मानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो ।

मित्रों से जब वह बात करें,
बेहतर है तब मत सुना करो।
तुम दूर अकेले खड़े-खड़े,
बिजली के खंबे गिना करो।

तुम उनकी किसी सहेली को
मत देखो, कभी न बात करो।
उनके पीछे उनके दराज से
कभी नहीं उत्पात करो।
तुम समझ उन्हें स्टीम गैस,
अपने डिब्बे को जोड़ चलो।
जो छोटे स्टेशन आएं तुम,
उन सबको पीछे छोड़ चलो।
जो सँभल कदम तुम चले-चले,
तो हिन्दू-सदगति पाओगे,
मरते ही हूरें घेरेंगी,
तुम चूको नहीं, मुसलमानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो!

तुम उनके फौजी शासन में,
चुपके राशन ले लिया करो।
उनके चेकों पर सही-सही
अपने हस्ताक्षर किया करो।
तुम समझो उन्हें ‘डिफेंस एक्ट’,
कब पता नहीं क्या कर बैठें ?
वे भारत की सरकार, नहीं
उनसे सत्याग्रह किया करो।
छह बजने के पहले से ही,
उनका करफ्यू लग जाता है।
बस हुई जरा-सी चूक कि
झट ही ‘आर्डिनेंस’ बन जाता है।
वे ‘अल्टीमेटम’ दिए बिना ही
युद्ध शुरू कर देती हैं,
उनको अपनी हिटलर समझो,
चर्चिल-सा डिक्टेटर जानो!
पत्नी को परमेश्वर मानो।

व्यास जी की यह रचना मुझे मेरे स्कूल के दिनों से ही पसंद है। आपको कैसी लगी यह लंबी कविता?

5 टिप्पणियाँ:

अजय कुमार झा 9 जनवरी 2010 को 7:03 pm बजे  

ओह तो पति के साथ जो परमेश्वर लगा होता है वो दरअसल श्रीमती जी होती हैं

मनोज कुमार 9 जनवरी 2010 को 7:27 pm बजे  

बेहतरीन। बधाई।

डॉ टी एस दराल 9 जनवरी 2010 को 7:46 pm बजे  

इससे तो परमेश्वर का लिंग बदल जायेगा।
वैसे ये सब तो करना ही पड़ता है सबको।

Udan Tashtari 9 जनवरी 2010 को 10:03 pm बजे  

आरती याद कर ली..प्रिन्ट करके धर ली..और अब से नियमित सुबह शाम किया करुँगा.


आभार आपका और व्यास जी का करते हुए.

राज भाटिय़ा 10 जनवरी 2010 को 12:32 am बजे  

अजी आप ने इस आरती मै फ़िर से लिंग का पंगा खडा कर दिया, कही नारी शक्ति ना आ जाये अपून चले... लेकिन आरती बहुत सुंदर लगी कल से करते है