बुधवार, 13 जनवरी 2010

हाल क्या था दिलो का हमसे पूछो न सनम ...उनका पतंग उड़ाना गजब हो गया ....

आज अनमने से से पहुँच गए पान की दूकान पे ... पानवाला बोला - के आज चेहरा बड़ा उदास सा दिख रहा है का बात है जो बड़े परेशान से दिख रहे हो . मैंने कहा - मुझे मकर संक्रांति पर बचपन की यादे सता रही है . पान वाले ने कहा तनिक हमखो सो तो बताई ... बताने से जी हल्का हो जाता है तो मैंने अपनी दास्तान कुछ इस तरह से बयां की -----

ओह जब जब मकर संक्रांति आती है तब अपना बचपना भी याद आ जाता है और उन सुखद दिनों की स्मृतियाँ दिलो दिमाग में छा जाती है . वाकया उन दिनों का है जब मै करीब पन्द्रह साल का था . कहते है की जवानी दीवानी होती है . इश्क विश्क का चक्कर भी उस दौरान मेरे सर पर चढ़कर बोल रहा था .









मकरसंक्रांति के दिन हम सभी मित्र पतंग धागे की चरखी और मंजा लेकर अपनी अपनी छतो पर सुबह से ही पहुँच जाते थे और जो पतंगे उड़ाने का सिलसिला शुरू करते थे वह शाम होने के बाद ही ख़त्म होता था . मेरे घर के चार पांच मकान आगे एक गुजराती फेमिली उन दिनों रहती थी . उस परिवार के लोग मकर संक्रांति के दिन अपने मकान की छत पर खूब पतंग उड़ाया करते थे . उस परिवार की महिलाए लड़कियाँ भी खूब पतंगबाजी करने की शौकीन थी .








उस परिवार की एक मेरे हम उम्र की एक लड़की खूब पतंग उड़ा रही थी मैंने उसकी पतंग खूब काटने की कोशिश की पर उसने हर बार मेरी पतंग काट दी . पेंच लड़ाने के लिए बार बार नए मंजे का उपयोग करता .हर बार वह मेरी पतंग काटने के बाद हुर्रे वो काट दी कहते हुए अपनी छत पर बड़े जोर जोर से उछलते हुए कूदती थी और विजयी मुस्कान से मेरी और हंसकर देखती तो मेरे दिल में सांप लोट जाता था .





एक दिन मैंने अपनी पतंग की छुरैया में एक छोटी सी चिट्ठी बांध दी और उसमे अपने प्यार का इजहार का सन्देश लिख दिया और उसमे ये भी लिख दिया की तुमने मेरी खूब पतंगे काटी है इसीलिए तुम्हे मै अपना गुरु मानता हूँ . छत पर वो खड़ी थी उस समय मैंने अपनी वह पतंग उड़ाकर धीरे से उसकी छत पर उतार दी . पतंग अपनी छत पर देखकर लपकी और उसने मेरी पतंग को पकड़ लिया और पतंग की छुर्रैया में मेरा बंधा संदेशा पढ़ लिया और मुस्कुराते हुए काफी देर तक मुझे देखती रही और मुझे हवा में हाथ हिलाते हुए एक फ़्लाइंग किस दी . उस दौरान मेरे दिमाग की सारी बत्तियां अचानक गुल हो गई थी .





मकर संक्रांति के बाद एक दो बार उससे लुक छिपकर मिलना हुआ था . वह शायद मेरा पहला पहला प्यार था शायद उसका नाम न लूं तो भारती था . अचानक कुछ दिनों के बाद बिजनिस के सिलसिले में उनका परिवार गुजरात चला गया और वो भी चली गई उसके बाद उससे कभी मिलना नहीं हुआ . जब जब मकर संक्रांति का पर्व आता है तो उसके चेहरे की मुस्कराहट और और उसका पतंकबाजी करना और ये कह चिल्लाना वो काट दी है बरबस जेहन में घूमने लगता है .

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7 टिप्पणियाँ:

डॉ. मनोज मिश्र 13 जनवरी 2010 को 8:59 pm बजे  

ख़ूबसूरत पोस्ट.

डॉ टी एस दराल 13 जनवरी 2010 को 9:14 pm बजे  

वाह मिस्र जी, आज तो दिल खुश हो गया आपका पहला पहला प्यार देखकर ।

Udan Tashtari 13 जनवरी 2010 को 9:33 pm बजे  

काश!! वो आपका ब्लॉग पढ़ रही हो..
सुन्दर कोमल संस्मरण!!

सूर्यकान्त गुप्ता 15 जनवरी 2010 को 1:27 am बजे  

वही तो....... पहला पहला प्यार
बन जाता है यादगार
अच्छा संस्मरण

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 15 जनवरी 2010 को 7:25 am बजे  

वाह आनन्द आ गया!
मगर हमारे क्षेत्र में पतंगबाजी का प्रचलन नही के बराबर है!

निर्मला कपिला 15 जनवरी 2010 को 8:41 pm बजे  

ुन्दर संस्मरण शुभकामनायें

ब्लॉ.ललित शर्मा 16 जनवरी 2010 को 6:22 pm बजे  

मिसिर जी-आप भी नए छोकरों को बिगाडोगे। लेकिन पतंग भी किसी की छत पे उतारना एक कला है।
आज कल जे काम मोबाईल से हो जात है।