मैं तो "सोडा" मिला कर पीता था यह मुझे "नीट" ही पिलाती हैं........महफ़िल सजा दी हैं आओ दीवानों
पंकज उदास जी की आवाज में .......सर्द काली रातों में
न जाने किस कोने से निकल कर आती हैं
फिर "साली" मेरे दिल में घुस जाती हैं
दर्द के साथ "सालसा" करके दिल को बड़ा रुलाती हैं
गम को दिल से निचोड़ कर
मन की आग पर शराब पकाती हैं
"कम्बक्त" खुद भी "पेग" लेती हैं
मेरे को भी पिलाती हैं
अब तो समझ जा "नवाबो के शहर की मल्लिका"
"दिल्ली के सुल्तान" को तेरी याद हर रोज सताती हैं
मैं तो "सोडा" मिला कर पीता था
यह मुझे "नीट" ही पिलाती हैं
5 टिप्पणियाँ:
अच्छी रचना है।
इस विडियो के लिये आभार.
रामराम.
...bahut sundar !!!!
wahwa....
बहुत अच्छी पोस्ट
आभार
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