सरकार तो बेरोजगारों को ही लूट रही है
अपने राज्य छत्तीसगढ़ में सरकार इन दिनों बेरोजगारों को ही लूटने में लगी है। यह लूट कोई छोटी-मोटी नहीं बल्कि करोड़ों की लूट है। और लूट भी ऐसी है कि हर बेरोजगार को लुटने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। दरअसल मामला यह है कि प्रदेश में इन दिनों शिक्षा कर्मियों की भर्ती के लिए सभी पोस्ट आफिस में फार्म बेचे जा रहे हैं। इस फार्म की कीमत है 450 रुपए। अब तक दस लाख से ज्यादा फार्म बिक चुके हैं और इतने ही और बिकने की संभावना है। कुल मिलाकर 20 लाख से ज्यादा फार्म बिक जाएँगे और इन फार्मों ने मिलने वाली करोड़ों की राशि से ही व्यावसायिक परीक्षा मंडल का काम चलेगा। सभी बेरोजगारों को इस बात से इतराज है कि फार्म की इतनी ज्यादा कीमत रखी गई है। क्या यह सरकार बेरोजगारों की हितैशी हो सकती है, यही सवाल आज हर बेरोजगार की जुबान पर है।
कल शाम की बात है हमारे प्रेस के सामने एक चाय-पान की दुकान में कुछ बेरोजगार चर्चा करने में लगे थे कि यार जो भाजपा सरकार अपने को को बेरोजगारों की हितैषी बताती है, क्या वह सच में उनकी हितैषी है। अगर सरकार बेरोजगारों की हितैषी है तो फिर शिक्षा कर्मियों की भर्ती के जो परीक्षा फार्म बेचे जा रहे हैं उस फार्म की कीमती 450 रुपए क्यों रखी गई है? जिस राज्य में बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता महज 500 रुपए दिया जाता है, वहां बेरोजगारों से एक परीक्षा के फार्म की कीमत 450 रुपए वसूलना कहां का न्याय है।
हमें उन बेरोजगारों की बातों में बहुत दम लगा। वास्तव में यहां पर सोचने वाली बात है कि क्या इस तरह से सरकार बेरोजगारों को लूटने का काम नहीं कर रही है। अपने प्रदेश में अब तक करीब 10 लाख से ज्यादा फार्म बिक चुके हैं। फार्मों की कालाबाजारी हो रही है, वह तो अलग मुद्दा है, लेकिन जो फार्म बेचे जा रहे हैं, उन्हीं फार्मों से व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) के खाते में करीब 9 करोड़ रुपए जमा होने का अनुमान है। जानकारों का कहना है कि व्यापमं परीक्षा के लिए फार्म से जो पैसा लेता है उसी से परीक्षा लेता है। ये सारी बातें ठीक हैं। लेकिन क्या परीक्षा में इतना ज्यादा खर्च होता है कि परीक्षा के फार्म के नाम पर बेरोजगारों को लूटा जा रहा है। वैसे ही अपने देश में बेरोजगार कम ठगे नहीं जाते हैं कि अब सरकार भी उनको ठगने का काम कर रही है।
यह बात सब जानते हैं कि शिक्षा कर्मी के जितने पद हैं, उससे कई गुना ज्यादा बेरोजगार परीक्षा में बैठेंगे। परीक्षा देने के बाद किस की नियुक्ति होगी, यह बात भी सब जानते हैं। यहां पर चलेगा पैसों का खेल। जिनके पास नियुक्ति के लिए पैसे देने का दम होगा नियुक्ति उनकी ही होगी। जो वास्तव में हकदार और जरूतमंद होंगे उनको नियुक्ति मिल ही नहीं पाएगी। यहां पर एक सोचने वाली बात और है कि शिक्षा कर्मियों को जो नौकरी दी जाने वाली है, वह भी स्थाई नहीं है। यह दो साल के लिए होगी इसके बाद फिर से सब बेरोजगार हो जाएंगे।
बहरहाल सरकार को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए कि वह कम से कम बेरोजगारों के साथ इस तरह का खिलवाड़ न करे और उनको लूट से बचाने का काम करे। क्या व्यापमं को चलाना सरकार के बस में नहीं है जो वह बेरोजगारों के पैसों से उनको चलाने का काम कर रही है। किसी भी परीक्षा के फार्म के लिए थोड़ी सी राशि का लेना तो समझ में आता है, लेकिन 450 रुपए जितनी बड़ी राशि लेने का मतलब एक तरह की लूट ही है। लेकिन इसका क्या किया जाए कि अपने देश के बेरोजगार अपना घर फूंक कर भी नौकरी पाने की चाह में रहते हैं। लेकिन इसकी चाहत कभी पूरी नहीं हो पाती है, लेकिन सरकार के साथ अफसरों की तिजौरियां जरूर भर जाती हैं।
5 टिप्पणियाँ:
मानो या ना मानो :- "जिस राज्य में बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता महज 500 रुपए दिया जाता है, वहां बेरोजगारों से एक परीक्षा के फार्म की कीमत 450 रुपए वसूलना कहां का न्याय है।"
बहुत बढ़िया आलेख !
भाई आपने एकदम सही बात कही है ,,सरकार लूट रहे है
शिक्षाकर्मियों की भरती न केवल नियुक्ति में लूट हे वरन कुल मिलाकर ये एक बड़ी लूट प्रक्रिया है क्योंकि पदनाम भले ही शिक्षाकर्मी/पैराटीचर आदि हों पर काम लिया जाएगा पूरे शिक्षक का ही... वेतन शिक्षक के विधिक वेतन का केवल अंश भर रहेगा यानि समान काम के लिए असमान वेतन... राज्य द्वारा अपने ही नागरिकों को छलना।
ये तो सरासर लूट है...शिक्षाकर्मियों की भर्ती के लिए 450 रुपए का फार्म तो बिलकुल जायज़ नहीं है...
हाँ!...अगर पुलिस कर्मियों की भर्ती के फार्म को अगर 5000 रुपए का भी रख देते तो भी गलत नहीं होता...क्योंकि तेल तो तिलों में से ही निकलना था
शिक्षा कर्मी बर झउहा, गाडा ट्रक ट्रक्टर भर माने मरे जियो ले लईका मन आवेदन फारम ले बर लाइन माँ खड़े रथें ऊपर ले ४५० रूपया दाम उहू माँ
पूरा प्रोस्पेक्टस नहीं. का पूछे बर हे सरकार ये मन ला शिक्षा कर्मी नहीं भिक्षा कर्मी बना के छोड़ही.
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