शनिवार, 15 मई 2010

गिरी्श दादा जहां कहीं भी हो चले आओ-(गुमशुदा की तलाश)---------ललित शर्मा

पान की दुकान पर निरंतर चर्चा चल रही है कि आप कहां चले गये, लोग कयास लगा रहे हैं। हमारा निवेदन है कि आप जहां कहीं भी हो लौट आओ, आपके जाने से हमें बहुत ही झटका लगा है। आपने ब्लाग जगत को पॉडकास्टर बन कर अपनी अनमोल सेवाएं दी हैं, जिसके लिए हम आभारी हैं। ऐसी कौन सी बात थी? जिससे आप आहत होकर ब्लागिंग छोड़ चले, हमारी तो समझ में ही नहीं आया। सब कुछ ठीक चल रहा था फ़िर आपने अचानक ऐसा निर्णय क्यों लिया? जब से आप गए हैं तब से हमारा भी मन नही  लग रहा है और आपने जिससे पॉडकास्ट इंटरव्यु का वादा किया था उसके फ़ोन हमारे पास आ रहे हैं कि दादा ने हमारा पॉडकास्ट इंटरव्यु लेने का वादा किया था, लेकिन अब बताइए कैसे होगा इंटरव्यु? वो बहुत गमगीन है। 

आप वीर पुरुष हैं छोटी मोटी बाधाओं से घबराकर जाना ठीक नहीं है, ब्लागिंग का मूलमंत्र "सुरेश चिपलुनकर भाई से साभार" हम मिसफ़िट पर छोड़ आए हैं, समय मिले तो पढ लेना, नई तुफ़ानी उर्जा देगा, शरीर में जोश भर देगा, नई ताजगी के साथ, अनुभूत नुख्शा है, हम उसका सेवन कर रहे हैं, आप भी करके देखिए, लाभ होने का शर्तिया दावा है, न होने पर पैसे वापस, वैसे भी कल अक्षय तृ्तीया है भगवान परशुराम जयंती मनाई जा रही है, जुलुस निकाला जा रहा है सर्व ब्राह्मण समाज के द्वारा, मेरे पास मैसेज और निमंत्रण दोनो आया है। उसमें आपको शामिल होना जरुरी है।

मिसिर जी भी हलकान हैं, इधर वे घर के काम में व्यस्त है और आपने मौके का फ़ायदा उठाकर राम राम कह दि्या और तो और सारे सम्पर्क सुत्र भी तोड़ लिए, आपके वो मोबाईल फ़ोन की घंटी जो सुर में बजती थी अब नहीं बज रही है। उसपर भी ताला लग गया है। राज भाटिया दादाजी कह रहे थे कि बहु्त गर्मी है और बैशाख का महीना है नौतपे लगने वाले हैं, इस समय टंकी पर चढना ठीक नहीं है लू भी लग सकती है जिससे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है, वैसे टंकी पर गर्मी भी बहुत है। निर्माता ने वहां एसी कूलर की व्यवस्था नहीं की है क्योंकि टंकी पर सर्वहारा वर्ग ही चढता है, सामंतो को कहां फ़ुरसत है टंकी पर चढने की, वे तो नीचे एसी कमरे में बैठ कर टंकी को दूरबीन से निहारते रहते हैं कि कौन मरदूद चढा है।

दादा जी हम समझ सकते हैं आपका दर्द क्योंकि ये तकलीफ़ हमने भी झेली है। इससे पहले कि आपको कोई डॉक्टर पागल या ब्लागोमेनिया का मरीज करार कर दे, जहां भी हो जैसे भी चले आओ। अम्मा बहुत परेशान हैं उनकी तबियत भी खराब हो सकती है, आपके बिना भैंस ने दूध देना बंद कर दिया है, कहती है कि पहले गिरीश दादा जी को लेकर आईए, इसलिए अम्मा को भी दूध नही मिल रहा है, बहुत कमजोर हो गयी हैं। आपका वह चपरासी भी मिला था जिससे आपने सहृदयता दिखाते हुए माफ़ी मांगी थी, कह रहा था कि साहब जब से बिना बताए गए हैं तब से हम भी आफ़िस नहीं जा रहे हैं। सारा काम ठप्प हो गया है।

इसलिए मेरा आग्रह है कि इस वक्त जहां भी हो जैसे भी हो उसी हालत में चले आओ कोई कु्छ नहीं कहेगा और इस आशय का इस्तेहार कल के अखबार की "गुमशुदा की तलाश" कालम में देने का विचार कुछ आपके चाहने वाले कर रहे थे, जहां भी हो चले आओ..................

आपका
अनुज

31 टिप्पणियाँ:

महेन्द्र मिश्र 15 मई 2010 को 9:03 pm बजे  

.... (फोटो देखकर जो आपने लगाईं है) वैसे आज वे धार तेज करने में लगे है .....भाई गिरीश जी आएंगे कल परशुराम जयंती पर ...सुबह सुबह मोबाइल पर मनाने की कोशिश की और जारी रहेगी ....

सूर्यकान्त गुप्ता 15 मई 2010 को 9:10 pm बजे  

भगवान परशुराम की जयन्ती है कल। अवश्य प्रकट होन्गे जी गिरीश दादा।

महेन्द्र मिश्र 15 मई 2010 को 9:11 pm बजे  

ललित भाई
"""वे (राज भाटिया जी) तो नीचे एसी कमरे में बैठ कर टंकी को दूरबीन से निहारते रहते हैं कि कौन मरदूद चढा है """
तनिक ऐसा भी बताते की दादा के पास ऐसी कौन सी दूरबीन है जो बर्लिन में बैठकर इंडिया की टंकियो को दूर से निहारते रहते है की कौन सा मरदूद टंकी पर चढ़ रिया हैं ........

ब्लॉ.ललित शर्मा 15 मई 2010 को 9:14 pm बजे  

मिसिर जी

राज भाटिया जी तो सर्वहारा वर्ग से हैं,
हमने सामंतवादी प्रवृ्त्ति के लोगों के विषय में कहा है।
जो शासन करते हैं।
हम तो की बोर्ड के मजदूर है बकौल"अविनाश वाचस्पति जी"

समय चक्र 15 मई 2010 को 9:31 pm बजे  

ललित जी आपकी टीप से सहमत हूँ . दादा राज जी सामन्तवादी प्रवृति के नहीं ....वे हम सब ब्लागरो के सबके दादा है और लोकप्रिय हैं ... चूंकि दादा जी ब्लागरो की टंकी के प्रेमी है इसीलिए मैंने मजाक में ( राज भाटिया जी) लिख दिया है . वे कृपया मेरी टीप को हास्य के रूप में लें .... क्षमाप्राथी हूँ ... हम लोग तो की बोर्ड के खटरागी है ...

योगेन्द्र मौदगिल 15 मई 2010 को 9:56 pm बजे  

आएगा..
आएगा...
आएगा आने वाला....
फिर क्यों चिंतित हो लाला..

फिर क्यों चिंतित हो लाला
कहीं
ढूंढ लो अब ब्रिजबाला..
ढूंढ लो ना ब्रिजबाला....

या पूछो अवधिया जी से
भई कहां है दारूवाला....
भई कहां है दारूवाला....

girish pankaj 15 मई 2010 को 10:16 pm बजे  

paan thelaa fir shuroo ho gayaa hai to fir jaldi aataa hoo paan khane...

राज भाटिय़ा 15 मई 2010 को 10:46 pm बजे  

गिरी्श जी बसंती की तरह से अब हमारी टंखी की इज्जत भी खतरे मै लग रही है, ओर इतनी लू मै तो मै भी टंकी से दुर रहता हुं, अरे टंकी का पानी भी खुब गर्म हो जाता है तो भाई उतर आओ जल्दी से, लेकिन किसी को बताना मै मै गुगल मेप से ओर सेट्लिट से नजर रखता हुं टंकी की, आ जाओ भाई कृप्या मेरी टंकी की ही इज्जत रख लो, फ़िर सर्दियो मै दोनो चढेगे इस टंकी पर... अरे बाबा लू बू ना लग जाये आ जाओ यार सब लोग शिकंजवी ओर लस्सी ले कर इंतजार कर रहे है,
आशा करता हुं आज रात को आप नीचे आ जाओगे,आराम से उतरना, सीढियो की लाईट खराब है, ओर मिस्त्री दो दिन से आया नही.
चलिये कल मिलते है

राजीव तनेजा 15 मई 2010 को 11:17 pm बजे  

गिरीश जी ...आप लौट आएं ब्लॉगजगत में फिर से...हमें आपकी आवश्यकता है

बवाल 15 मई 2010 को 11:24 pm बजे  

हमारी भी आँखें उन्हें खोज खोज कर खुजाने लगी हैं ललित जी। ऎसे लोगों को खो जाने क्यों देते है आप ?

Amrendra Nath Tripathi 15 मई 2010 को 11:59 pm बजे  

आना तो चाहिए गिरीश जी को , अब आपके आवाहन से उम्मीद है
की वह यथाशीघ्र आयेंगे !

Smart Indian 16 मई 2010 को 12:27 am बजे  

मजेदार आलेख मगर फोटो वाकई गज़ब का है.

शिवम् मिश्रा 16 मई 2010 को 12:40 am बजे  

ई मामला का है भाई ??

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" 16 मई 2010 को 1:01 am बजे  

ये टंकी पर चढने का कोई सीजन चल रहा है क्या जो आए दिन कोई न कोई चढ बैठता है :-)
वैसे इतने प्यार से आप मान-मुनौव्वत कर रहे हैं तो फिर तो उम्मीद करते हैं कि गिरीश ही मान ही जाएंगें....

Udan Tashtari 16 मई 2010 को 2:34 am बजे  

चले आओ ...चले आओ...


हम तो बैठे ही रह गये पॉडकास्ट करवाने को और आप चल दिये.

इन्टरव्यू तो कर लो भाई दो चार ठो...प्लीज!

वरना हमारा इन्टरव्यू तो कोई लेने से रहा.

चले आओ ...चले आओ...

Mithilesh dubey 16 मई 2010 को 7:26 am बजे  

जायेंगे कहा भईया ये , अभी पकड़ कर लाते हैं ना ।

Unknown 16 मई 2010 को 8:13 am बजे  

रूठे हो सनम तो फिर क्या है हमको भी मनाना आता है ...

अजय कुमार झा 16 मई 2010 को 8:30 am बजे  

मैं तो बार बार इस बात को कहता रहा हूं कि हर संवेदनशील इंसान को ब्लोग्गिंग में ये चोट लगनी स्वाभाविक ही है < मगर आज जरूरत इस बात की है कि इससे उबर कर आगे बढा जाए । गिरीश भाई कहीं नहीं जाएंगें वे वापस आएंगे ।

ब्लॉ.ललित शर्मा 16 मई 2010 को 8:52 am बजे  

माफ़ किजिएगा भूल गया था,

फ़ोटो राजीव तनेजा जी से साभार है

राजकुमार सोनी 16 मई 2010 को 12:35 pm बजे  

गिरीश भाई आप चले आओ.. निवेदन स्वीकार करो। अभी तो मैं आया हूं। कुछ दिन पहले ही आपको जान पाया कि आप शरद बिल्लौरे जी के करीबी है। आप ऐसे ही थोड़े छोड़कर चले जाओंगे।

Girish Kumar Billore 16 मई 2010 को 1:57 pm बजे  

Aabhar
jo aap ne sneh diya

बेनामी 16 मई 2010 को 2:45 pm बजे  

गिरीश जी की जगह कोई भी संवेदनशील मानव होता तो यही करता

मेरा केवल एक आग्रह -वापस आ जाएँ,


बी एस पाबला

Pramendra Pratap Singh 16 मई 2010 को 4:40 pm बजे  

कोई कही नही जायेगा, हम आ गये है

Ra 16 मई 2010 को 5:43 pm बजे  

जिनकी चर्चा चल रही है उन्हें हम नहीं जानते ,,,नये है ना ब्लॉगजगत में इसलिए , पर लगता है कोई तगड़ी ही हस्ती है .....?

Khushdeep Sehgal 16 मई 2010 को 6:22 pm बजे  

गिरीश भाई तो बड़े उस्ताद निकले...मैं टंकी के रास्ते के बीच में ही खड़ा रहा और वो मुझे ही डॉज दे गए...चलिए आने दीजिए वापस, फिर निपटता हूं...

जय हिंद...

आभा 16 मई 2010 को 8:44 pm बजे  

एक भाई गुहार लगाए और दूसरा न आए . गिरीश दादा आओ .. चलिए मै भी कहे देती हूँ।

आभा 16 मई 2010 को 8:44 pm बजे  

एक भाई गुहार लगाए और दूसरा न आए . गिरीश दादा आओ .. चलिए मै भी कहे देती हूँ।

अन्तर सोहिल 17 मई 2010 को 4:19 pm बजे  

आजा रे मेरा दिल पुकारा

Girish Kumar Billore 18 मई 2010 को 12:47 pm बजे  

मित्रो
सादर अभिवादन
गहन विमर्श एवम आत्म मंथन से स्पष्ट हुआ कि हम किसी भी स्थिति में लेखन से दूर हो ही नहीं सकते ज़िन्दा होने का सबूत देना ही होगा आपका संदेश देख कर अभीभूत हूं .
अवश्य ही लौटूंगा मित्रों से इस अपेक्षा के साथ कि कोई दूसरा ”...” अपनी कुंठा न परोसें इस हेतु आप सबको साथ देना होगा . सच बेनामी आदमीयों जिनकी रीढ़ ही नहीं है से जूझना कोई कठिन नहीं ,

Girish Kumar Billore 18 मई 2010 को 12:52 pm बजे  

मैं भी परशुराम की सौगंध लेकर गलत बात को समाप्त करने का संकल्प लेता हूं. सुरेश जी का मत शिरोधार्य,
कोई बुराई नहीं मेहतर बनने में डस्टबीन इन धूर्त लोगों की प्रतीक्षा में हैं मुझे मेरा दायित्व समझना था किंतु मानवीय भाव वश घायल हो गया अब ठीक हूं. देखता हूं शब्द आडम्बर जीतेंगे या हम जो भाव जगत में सक्रिय है

बेनामी 18 मई 2010 को 4:46 pm बजे  

Hurrrrrrrrrrrrrrrrrrrrey