अब तो ''समाजवादी'' बग्घी पे आ रहा है
'लोहिया' तेरे मिशन को ये कौन खा रहा है
अब तो ''समाजवादी'' बग्घी पे आ रहा है
लूटो गरीब को पर बातें गरीब की हों
ये मुल्क पूंजी-पूंजी अब खुल के गा रहा है.
जो लोग थे 'मुलायम' दिखते 'कठोर' कैसे
'आजम' का आज 'जाजम' अब इनको भा रहा है
सारे विचार अच्छे बेकार हो गए हैं
ये दौर देखिये अब क्या दिन दिखा रहा है
सच्चे समाजवादी बेकार हो गए हैं
नकली है माल जितना वो उतना छा रहा है
4 टिप्पणियाँ:
गोरख नाथ की कविता याद आती है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-11-2014) को "शुभ प्रभात-समाजवादी बग्घी पे आ रहा है " (चर्चा मंच 1807) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर।
वाह वाह
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