कर्मचारी चयन आयोग की लापरवाही
बेरोजगार इंजीनियरों का भविष्य हुआ चौपट !
केंद्र सरकार के कुछ नासमझ और लापरवाह अधिकारी देश के बेरोजगार युवाओं के भविष्य के साथ किस बेशर्मी और बेरहमी से खिलवाड़ कर रहे हैं , इसका ताजा उदाहरण बीते रविवार 27 मार्च को केन्द्रीय कर्मचारी चयन आयोग द्वारा जूनियर इंजीनियर भर्ती के लिए दिल्ली , जयपुर , देहरादून , कोलकाता , मुम्बई , नागपुर, रायपुर और भोपाल सहित भारत के 33 शहरों में आयोजित परीक्षा में देखा गया .
यह अखिल भारतीय खुली संयुक्त परीक्षा केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग , सैन्य अभियांत्रिकी सेवा आदि सरकारी एजेंसियों में सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की भर्ती के लिए थी . इसमें भारत सरकार के मान्यता प्राप्त संस्थानों से सिविल अथवा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा या सम- कक्ष उपाधि प्राप्त आवेदक शामिल हो सकते थे , जैसा कि आयोग द्वारा एक जनवरी 2011 के साप्ताहिक 'रोजगार समाचार ' में प्रकाशित विज्ञापन में लिखा हुआ है .हालांकि इस विरोधाभासी विज्ञापन में यह भी लिखा हुआ है कि दोनों प्रश्न-पत्रों में सामान्य-अभियांत्रिकी के अंतर्गत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल के सवाल भी पूछे जाएंगे , लेकिन वास्तव में ये दोनों ही विषय इंजीनियरिंग की अलग-अलग शाखाओं के हैं और दोनों में अलग-अलग डिग्री -डिप्लोमा का प्रावधान है. दोनों के पाठ्यक्रम भी अलग-अलग स्वरुप के होते हैं. हैरत की बात है कि जब कर्मचारी चयन आयोग द्वारा केवल सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की भर्ती होनी थी तो उसके लिए आयोजित लिखित परीक्षा में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रश्न देने का क्या औचित्य था ? प्रश्न पत्र तैयार करने वाले की बुद्धि पर तरस आता है. विज्ञापन तो सिर्फ सिविल और इलेक्ट्रिकल वालों के लिए जारी हुआ था . लेकिन देश के हज़ारों बेरोजगार अभ्यर्थियों ने इस विज्ञापन के आधार पर यह सोच कर आवेदन कर दिया था कि शायद परीक्षा की तारीख आते तक आयोग वालों को अपनी गलती का एहसास हो जाएगा और वे इस विरोधाभासी प्रावधान को सुधार लेंगे .लेकिन जब परीक्षा हुई तो उसमें इलेक्ट्रिकल वालों को मैकेनिकल के सवाल हल करना भी अनिवार्य था .
कुछ परीक्षार्थियों ने बताया कि यह तो वही बात हुई , जैसे एलोपैथिक(एम.बी.बी. एस. ) डॉक्टरों की भर्ती परीक्षा में आयुर्वेदिक (बी. ए. एम. एस. ) या नहीं तो होम्योपैथिक (बी.एच. एम.एस. ) पाठ्यक्रम के प्रश्न दे दिए जाएँ , या फिर वनस्पति-विज्ञान की परीक्षा में गणित के और संस्कृत भाषा के प्रश्न-पत्र में अंग्रेजी भाषा के सवाल पूछे जाएँ ! आयोग द्वारा इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की संयुक्त भर्ती परीक्षा के प्रथम प्रश्न-पत्र में कुल दो सौ ऑब्जेक्टिव -टाईप के सवाल दिए गए थे . कुल अंक दो सौ थे . यानी प्रत्येक प्रश्न पर एक अंक. इनमे सामान्य बुद्धि और तर्क के 50 और सामान्य जानकारी के 50 प्रश्नों पर तो परीक्षार्थियों को आपत्ति नहीं हुई , लेकिन प्रश्न-पत्र के भाग-ख में सामान्य इंजीनियरिंग के तहत इलेक्ट्रिकल और मेकेनिकल के कुल 100 प्रश्नों पर उन्होंने यह सवाल उठाया है कि आखिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बी.ई. डिग्री अथवा पॉलीटेक्निक डिप्लोमा किया हुआ आवेदक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के सवाल कैसे हल कर पाएगा ?इसी तरह द्वितीय प्रश्न-पत्र केवल सामान्य-इंजीनियरिंग का दिया गया .इसमें कुल तीन सौ अंक थे और कुल एक दर्जन में से कोई दस सवाल हल करने थे. यह निबंधात्मक प्रश्न-पत्र था ,जिसमे अभ्यर्थियों को दो-दो उत्तर पुस्तिकाएं दी गयी. इनमें से एक उत्तर-पुस्तिका में इलेक्ट्रिकल और दूसरी पुस्तिका में मैकेनिकल के प्रश्नों को हल करना अनिवार्य था. मुश्किल यह हुई कि न तो इलेक्ट्रिकल वाले मैकेनिकल के सवाल हल कर पाए और न ही मैकेनिकल वाले इलेक्ट्रिकल के प्रश्नों को . कहने का आशय यह कि इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल इंजीनियरिंग के अलग- अलग स्वरुप के पाठ्यक्रमों में डिग्री अथवा डिप्लोमा लेकर आए आवेदकों को इस चयन-परीक्षा से काफी निराशा हुई . इसमें उन्हें केलकुलेटर का इस्तेमाल भी नहीं करने दिया गया ,जबकि इंजीनियरिंग स्नातकों के लिए होने वाली GATE की परीक्षा में केलकुलेटर रखने की सुविधा दी जाती है.
बहरहाल कुछ अयोग्य और अज्ञानी अधिकारियों द्वारा कर्मचारी चयन आयोग की जूनियर इंजीनियर चयन परीक्षा में गलत तरीके से तैयार प्रश्न-पत्रों के कारण हज़ारों बेरोजगार इंजीनियरों को रोजगार के एक बेहतर अवसर से वंचित होना पड़ा . उनका भविष्य चौपट हो गया . क्या इसके लिए कहीं कोई जिम्मेदारी तय होगी ? कुछ परीक्षार्थी इस अन्याय के खिलाफ अदालत जाने का मन बना रहे हैं.
3 टिप्पणियाँ:
अन्धेर नगरी चौपट राजा
pathetic
कौन सा मेरिट देखना है जी... जेब देखनी है :)
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