मंगलवार, 30 मार्च 2010

अरे बड़े मियां, बचा लिया नहीं तो आज तो इज्जत का फलूदा बन जाता

जौंक कहते हैं न
"क्या-क्या मजा ने तेरे सितम का उठा लिया  हमने भी लुफ्ते-ज़िन्दगी अच्छा उठा लिया"  
तो जनाब हमने भी बोर्ड परीक्षा के सितम उठाये, दिन रात कमरे में बंद रहे , फ़ोन और गेम्स उठवाकर दूसरे कमरे में रखवा दिए. हमारे वालिद साहब हमसे बड़े खुश नजर आते थे उन दिनों, आखिर निठल्ले ने पढना जो शुरू कर दिया था. वैसे हमारे अन्दर लाख बुराइयाँ वो निकालते हो पर एक अच्छी बात जिसकी वो हमेशा तारीफ करते हैं. जनाब हमें टीवी देखना पसंद नहीं. फिल्मो का शौक तो भारत की हवा में साँस लेते ही समां गया था पर टीवी से हमेशा बचके रहे हम. इसके पीछे भी एक  कहानी हैं जिसे हम चाहे तो दो पंक्तियों में सुना दे या उपन्यास में बदल डाले.

दिसंबर से मार्च तक तो बोर्ड परीक्षा में डूबे रहे फिर अप्रैल, मई परिणाम का इंतजार किया. इस बार तो अँधेरे में तीर मार ही दिया. सुबह सुबह साइकिल पर चढ़कर साइबर कैफे में परिणाम देखने गया. दिमाग अपनी चालें चल रहा था और दिल अपना ढोलक बजा रहा था. खैर टकलू राम को रोल नंबर वाला परचा दिया और उसने बोर्ड की वेबसाईट पर उसे डाला. अब आप दिल्ली की सडको से गुजरे और आपको जाम न मिले तो समझना किसी पुण्यात्मा के दर्शन करे हैं अपने. वही हाल यहाँ था. दूसरे computers पर वेबसाइट खुल नहीं रही थी, अपने मामले में तो दो सेकंड में परिणाम निकल दिया. ऑंखें मल ली, ३-४ थप्पड़ भी जमा लिए, कहीं जन्नत में तो नहीं पहुच गए. पहली दफा ज़िन्दगी में इतने नंबर आये थे. 
 
इतना खुश हो गया कि साइकिल उठा कर न जाने किस  तरफ भागा और १०-१२ किलोमीटर चलाने के बाद ही रुका. फिर होश आया तो घर आया. अब्बूजान को खबर दी. कहा--अब आप वादा पूरा करिए. हाँ ठीक हैं कर देंगे पहले यह लो. 
पांच सौ के चार हरे पत्ते. अब तो बस पूछिए मत. हम तो बस यही बोले उस वक़्त 
"यह न थी हमारी किस्मत कि विसाले-यार होता, अगर और जीते रहते, यही इंतजार होता"  


बस जल्दी से नहाया, दोस्तों को फ़ोन लगाया और चल दिए नशे में हम. जो मन में आया खाया, जहाँ मन में आया घुमे. फिर एक मियां ने फ़रमाया ---- क्यूँ न जबरदस्त पार्टी हो जाये???. आज सब अमीर थे, दिल से भी और जेब से भी. 
मुफलिसी के दिन गए यारों और हम पहुचे दिल्ली के एक मशहूर और महंगे रेस्तरां में. आज तक कभी नहीं आये थे सो महाराज इस दुनिया की तहजीब और अदा से बेखबर हम सबने चिकन की टाँगे तोड़ी. आसपास के लोग हमारी तरफ यूँ घूर के देख रहे थे जैसे हम चाँद से उतर कर जमीं पर आयें हो. हम भी तो हैवानो की तरह चिकन लोलीपोप और चिकन सलामी ठूंस रहे थे. 

बगल की टेबल पर बैठे एक मियां बड़े गौर से हमें देख रहे थे. उम्र और तजुर्बे दोनों में बड़े जानकर मालूम होते थे.  ऊपर से एक ग़ज़ल भी चल रही थी......

सरकती जायें हैं रुख से नकाब --- अहिस्ता अहिस्ता 
निकलता आ रहा हैं आफताब ---- अहिस्ता अहिस्ता 


अहिस्ता अहिस्ता हम चिकन को सलाम कर रहे थे, हमारी तहजीब का आफताब पूरे रेस्तरां को चमका रहा था.बड़ी मशहूर ग़ज़ल हैं और मुझे बहुत अच्छी भी लगती हैं सो मैं भी लता जी और किशोर कुमार का साथ देने लगा. बड़े मियां को बहुत अच्छा लगा. उन्होंने एक प्यारी सी मुस्कान हमारी तरफ फेंकी. इतने में वेटर महाराज एक थाली लेकर आये जिसमे कुछ कटोरियाँ थी. टेबल पर कटोरियाँ रखीं गयी. दोस्त बोले यार --- यह डीश तो हमने मंगवाई ही नहीं.  कटोरियों में गरमपानी और कटा हुआ निम्बू डाला हुआ था.   हमने निम्बू को पानी में निचोड़ दिया और बस लबों से लगाने ही वाले थे कि बड़े मियां कुछ बोलते हुए हमारी तरफ आये. वो हमारे पास आये और कान में बोले ---- यह पीने के लिए नहीं, हाथ धोने के लियें हैं. 

अरे बड़े मियां, बचा लिया नहीं तो आज तो इज्जत का फलूदा बन जाता हलाकि रबड़ी तो हम बना ही चुके थे. नहीं तो ग़ालिब का यह शेर बिलकुल सही फिट हो जाता 
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन बहुत बे-आबरू हो कर तेरे कुचे से हम निकले  



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शनिवार, 27 मार्च 2010

ए गनपत जरा इंटरनेट तो खोल ए गनपत जरा ब्लाग तो खोल...

ए गनपत जरा इंटरनेट तो खोल ए गनपत जरा ब्लाग तो खोल
ए गनपत जरा जोरदार पोस्ट तो लिख रे
ए गनपत के रे फिर से देख इस पोस्ट पर कितनी पोस्ट आई रे
ए गनपत नहीं आती हैं तो तू भी टिप्पणी धकेल रे तब तो बाबा लोग आयेगा रे
ए गनपत टिप्पणी नहीं आती है तो किसी खासे से पंगा ले न रे तेरी पूछ बढ़ जायेगी रे
ए गनपत जरा धर्म पर पोस्ट लिख दूसरो की भी धो और अपनी भी धुलवा रे
ए गनपत ज्ञानी है तो अपना ज्ञान और कहीं रे बघार इतनी बड़ी दुनिया पड़ी है रे
ए गनपत लोग लुगाई के झगड़े में न पड़ना रे नहीं तो खाट भी न रहेगी रे
ए गनपत तू तो बड़ा टॉप क्लास ब्लॉगर है रे तू तो टिप्पणी देना पसंद नहीं करता है रे
ए गनपत ब्लॉग पे तू अपनी ढपली अपना राग अलाप रे फटेला नहीं का समझे रे
ए गनपत चम्मचो के मकड़जाल में न पड़ना रे
ए गनपत जरा चैटिंग कर लिया कर रे
ए गनपत दूसरो की वैसाखियों पर न चल रे बाबा
ए गनपत तू तो एग्रीकेटर बन गयेला रे अब तो तेरी मर्जी चलती है रे .
ए गनपत अखबारों की पोस्ट ब्लॉग में छाप रे और पसंदगी पे चटका लगवा और आगे बढ़ रे रेटिंग के शिखर में .
ए गनपत तेरे को टॉप २० में नहीं रहना है क्या रे .

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गुरुवार, 25 मार्च 2010

मैं तो "सोडा" मिला कर पीता था यह मुझे "नीट" ही पिलाती हैं........महफ़िल सजा दी हैं आओ दीवानों

सर्द काली रातों में
जाने किस कोने से निकल कर आती हैं
फिर "साली" मेरे दिल में घुस जाती हैं
दर्द के साथ "सालसा" करके दिल को बड़ा रुलाती हैं
गम को दिल से निचोड़ कर
मन की आग पर शराब पकाती हैं
"कम्बक्त" खुद भी "पेग" लेती हैं
मेरे को भी पिलाती हैं
अब तो समझ जा "नवाबो के शहर की मल्लिका"
"दिल्ली के सुल्तान" को तेरी याद हर रोज सताती हैं
मैं तो "सोडा" मिला कर पीता था
यह मुझे "नीट" ही पिलाती हैं

पंकज उदास जी की आवाज  में .......


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मंगलवार, 23 मार्च 2010

तमीज से बात कर बे.....कस्टमर से ऐसे बात करते

टयूसन वाले सर बोले ----- अबे गधे होम वर्क क्यों नहीं करता तू?????
तो बच्चा बोला ------ तमीज से बात कर बे.....कस्टमर से ऐसे बात करते हैं 
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टीचर ने पुछा ---- बताओ जो लोग गंदे काम करते हैं वो कहाँ जातें हैं???
छात्र --- जी बुद्धा गार्डेन, लोधी गार्डेन, पुराना किला, जापानी पार्क.........
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मुर्गा बोला --- आइ लव यू मेरी जान......तेरे लिए कुछ भी करूँगा.....
मुर्गी बोली ---- हाय मैं मर जावा.....सच क्या ???
मुर्गा बोला --- हाँ मेरी जान 
मुर्गी बोली --- तो चल फिर अंडा दे आज से..............
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मैडम ने बोला ---- टुन्नू दस तक गिनो तो एक पप्पी दूंगी.....
टुन्नू ------ अगर १०० तक गिनू तो क्या मिलेगा???????
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संता अंडरवेअर लेने दुकान पर जाता हैं और एक अंडरवेअर चुन लेता हैं 
दुकानदार --- यह पांच सौ का हैं 
संता --- अबे  डेलीवेअर चाहिए पार्टी वेअर नहीं...........
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संता नहा रहा था!!!!!!!!!!
बंता ने आवाज लगाई..........संता ऐसे ही बाहर आ गया 
बंता बोला --- कुछ तो पहन लेता यार!!!!
संता अन्दर गया और हवाई चप्पल पहन कर आ गया

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शनिवार, 20 मार्च 2010

बनारसी पान के किस्से फ़कीरा सुनाते पान की दुकान पर



भैया बनारसी पान तो वर्ल्ड फेमस हैं और उससे भी ज्यादा फेमस हैं बनारसी पान से जुड़े हुए किस्से और लतीफे। न जाने कितने ही संगीतज्ञों , लेखको, शायरों और राजनीतिज्ञों की कमजोरी रहा हैं यह बनारसी पान। तो जनाब बंदा हाज़िर हैं बनरसी पान की पीक से जुड़े दो किस्सों के साथ। एक तो महाराज देखा हैं दूसरा सुना हैं। जो देखा हैं उसको तो बाद दिखाया जायेगा पहले शो में सुना हुआ किस्सा सुनाया जाएगा।
तो महाराज सब जानते हैं कि विदेशो में शास्त्रीय संगीत की कितनी धूम हैं। विदेशी लोग बहुत पसंद करते हैं और हिन्दुस्तानी उनकी इस अदा को बहुत पसंद करते हैं। सितार तो सबने ही सुना होगा। हुआ यूं कि एक नामी सितार वादक फ्रांस गए। उस्ताद जी बनारसी पान का बहुत शौक था। जहाँ जाते थे पान भी उनके साथ जाता था। अब जहाँ शो हुआ वहीँ पर लोकल अख़बार के एक पत्रकार महोदय उपस्थित थे। उन्होंने क्या देखा कि उस्ताद जी सितार पर सुर लगाते और जब राग पूरे शबाब पर होता, तो मुहं से जबरदस्त "खून" की उलटी कर देते। पत्रकार ने "तानसेन" वाला किस्सा सुन रखा था। ब्रेअकिंग न्यूज़ कैसे मिस करता वो। अगले दिन अख़बार में अख़बार में चाप दिया।
"फलाने ढिमाके सितार वादक ने संगीत में प्राप्त करी महानता, राग "खुनी" का रोमांचक प्रदर्शन"। जब उस्ताद जी तक यह बात पहुची तो उन्होंने माथा पीट लिया।

अब आपको अगला एपिसोड दिखाते हैं। हमारे चाचा की शादी थी। बारात बस में जा रही थी। एक ढाबे पर रुकना हुआ। फिर खाना पीना और उसके बाद बनारसी पान। तो भइये , खा पी कर सब बस में सवार हो गए। यहाँ पर भी एक उस्ताद जी थे। अजी बस के ड्राईवर। प्यार से लोग बस ड्राईवर को भी बोलते हैं....."उस्ताद जी, जरा ब्रेक लगा देना"। अब इन उस्ताद जी ने मुहं में दो बनारसी पान डाल लिए और बस को फुल स्पीड में चलने लगे। पीक को सड़क पर, कोने में फेकने की "महान हिन्दुस्तानी आदत" का पालन करते हुए उस्ताद जी ने खिड़की से मुहं बाहर निकल कर १८० डिग्री का कोण बनाते हुए, पीक निवारण कर दिया। एक बाराती महाशय, भोजन के उपरांत रास्ते की ठंडी हवा का आनंद लेते हुए, खिड़की से मुहं बाहर निकल कर शयन कर रहे थे। उनका खुला मूह देख कर "पीक" को लगा निमत्रण हैं, सो पहुच गयी सीधे उनके मुख के अन्दर। हर तरफ से लाल वो महाशय तभी जाग गए और "श्लोक उच्चारण" शुरू कर दिया। बात "लत्तम-जुत्तम" तक पहुच गयीं। शादी का अवसर था, इसलिए वो "एक बोतल" में मान गए।

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शुक्रवार, 19 मार्च 2010

सॉरी नो "मोर" ब्लोगिंग -------->>> यशवंत मेहता "फ़कीरा"


  यह मोर ब्लॉग लिखता हैं

यह मोर भी ब्लॉग लिखता हैं


 अरे यह क्या लड़ पड़े??????

                                                          

                                                      सॉरी नो "मोर" ब्लोगिंग    

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गुरुवार, 11 मार्च 2010

सुनो सुनो सुनो....अब पढ़िए ब्लॉग वार्ता

लेकर आये आपके लिए ब्लॉग 4 वार्ता, चिट्ठों की कहानी ...... हमारी जुबानी........ टीम में शामिल हैं......राजीव तनेजा जी ...... यशवंत फकीरा जी ........संगीता पूरी जी --- अब होगी रोज वार्ता.............. चर्चा तो बहुत हो ली. यह ब्लॉग अभी ब्लॉग वाणी पर नहीं है......... इसलिए पाठकों की सुविधा के लिए..........पान की दुकान से लिंक जारी हो रहा है....... इस पर यहाँ से  और यहाँ से जा सकते हैं..... ब्लाग 4 वार्ता में आपका स्वागत है............

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सोमवार, 8 मार्च 2010

ऐसे वायरसों से डरते रहे तो बस समझो काम डल गया ...

बैठे ठाले मेरे दिल में ख्याल आया की आज होली के बाद पान की दूकान पर चलकर तबियत हरी भरी की जाए जिससे लबो पर मुस्कान आ जाए और लापता भाई लोगो की खोजखबर कर ली जाए ... टहलते टहलते जा पहुंचा पान की दूकान पर .

पान वाला बोला - महाराज कहाँ रहे ईद के चाँद हो गए भैय्या और सुनाओ ?

मैंने कहा पहले तुम जा बताओ कै तुम्हारी दूकान तो गणतंत्र दिवस से बंद है वो तो आज खुली दिखाई दे रही है . अरे हमारे ललित भैय्या कहाँ है कछु उनका पता ही नहीं चलता ?

पान वाला बोला - भैया का बताये उनके कंप्यूटर पर दुश्मन कीट का हमला हो गया था और महाराज के मित्र कीट दुश्मन कीट से सारी रात युद्ध करते रहे और महाभारत और पानीपत की तरह घनघोर लड़ाई चली और हमरे ललित महाराज के कंप्यूटर की हार्ड डिस्क शहीद हो गई .

सुनकर मेरी आँखों में आंसू आ गए मैंने मन ही मन में ललित जी की हार्ड डिस्क को शत शत नमन और प्रणाम किया फिर मैंने पान वाले से कहा - देखो वायरस ऐसे नहीं आते है दुश्मनों के द्वारा छोड़े जाते है . वायरस भी तरह तरह के होते हैं जैसे शब्द भेदी वायरस जो आदमियो के द्वारा आदमियो के ऊपर छोड़े जाते हैं जिससे अगला वायरसग्रस्त हो जाता है और सामने वाले आदमी का दिमाग गोल हो जाता है इस तरह के वायरस ब्लागिंग में भी पाए जाते हैं . दूसरा मेल वायरस जो मेल के द्वारा भेजे जाते है आपने जैसे ही किल्क किया और आपके ऊपर इनका हमला शुरू हो जाता है . तीसरे वे वायरस होते हैं जो हम खुद बुलाते हैं . खूब फक फिल्म और पोर्न देखो और वीडियो देखो तो वायरस आयेंगे ही .

पान वाला बीच में टोककर बीच में बोला - कहीं आपका आशय यह तो नहिहाई कै अपने ललित भइय्या जे सब खूब देखत हो तो वायरस आहे है हिन् . पानवाले के दिमाग की सोच को देखकर मुझे पहले तो खूब हंसी आयी दी मैंने पानवाले को खूब जोर से डपटकर कर कहा - चुप बे तै अपना पान लगा जे में सार है ये सब सोचने की बाते तो हम ब्लागर भाइयो की हैं और फिर पान बहार के साथ एक पान दबाया और अपनी राह पकड़ी .

चर्चा पान की दुकान पर - महेंद्र मिश्र

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