राजिम - छत्तीसगढ़ का प्रयाग
राजिम का स्थान छत्तीसगढ़ के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में आता है। यह महानदी के तट पर स्थित है।
प्राचीनकाल में राजिम को कमलक्षेत्र के नाम से जाना जाता था। माना जाता है कि शेषशैय्या पर सोये हुए भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल, जिससे ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी, यहीं पर स्थित था जिससे इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा। ब्रह्मा जी ने राजिम से ही सृष्टि की रचना की थी।
राजिम में छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध राजीवलोचन मंदिर है। राजीवलोचन मंदिर में भगवान विष्णु की प्रस्तर प्रतिमा प्रतिष्ठित हैं।
तीन नदियों, महानदी, पैरी नदी और सोंढुर नदी, का त्रिवेणी संगम होने के कारण राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहलाने का भी गौरव प्राप्त है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध एवं तर्पण किया जाता है।
संगम के बीचोबीच कुलेश्वर महादेव का विशाल मन्दिर बना हुआ है जिसकी शोभा देखते ही बनती है। किंवदन्ती है कि त्रेता युग में अपने वनवास काल के समय भगवान श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव जी की पूजा की थी इसलिये इस मन्दिर का नाम कुलेश्वर हुआ।
9 टिप्पणियाँ:
इतने रमणीय स्थान के प्रभाव से अभी तक वंचित था..जानकारी बढ़ी बहुत बहुत आभार अवधिया जी
आभार..बचपन में उस तट पर पिकनिक मनाना जरुर याद है. :)
कभी छतीसगढ़ जाना नहीं हुआ। अच्छी जानकारी। आभार।
राजिम के दर्शन कराने के लिए आभार...
दराल सर कभी साथ ही बनाएंगे छत्तीसगढ़ के भ्रमण का कार्यक्रम...
जय हिंद...
बहुत धन्यवाद इस सैर के लिये.
रामराम.
अच्छी जानकारी - धन्यवाद।
अपने छ्त्तीसगढ़ के इस भव्य मंदिर से जुड़ी तमाम बातों को लोगों तक पहुंचाने के लिये आभार्
विष्णु सहस्रनाम मे राजिवलोचन नाम नहीं है .रविलोचन नाम है श्लोक संख्या 94 मे .राजिवलोचन श्री राम जी के लिए रामचरितमानस मे प्रयोग हुआ है .राजिवलोचन कहने पर प्रकाश डालें .
राजीव कहते हैं कमल को।भगवान के नेत्र कमल के समान सुन्दर होनें से राजीवलोचन(कमल नयन)नामकरण किया गया है।
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