tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post772652185044773008..comments2023-10-03T19:02:00.108+05:30Comments on चर्चा पान की दुकान पर: नये शहर में एक पुराने दोस्त से मुलाकात...ब्लॉ.ललित शर्माhttp://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-43497051444684447032009-12-08T10:58:57.132+05:302009-12-08T10:58:57.132+05:30अनिल जी की निश्छल भावनात्मक टिप्पणी ने मेरी आंखे ह...अनिल जी की निश्छल भावनात्मक टिप्पणी ने मेरी आंखे ही नम कर दीं<br /><br />मैं भी पता नहीं कहाँ अतीत की भुलभुल्लैया में खो गया हूँ<br /><br /><a href="http://www.google.com/profiles/bspabla" rel="nofollow">बी एस पाबला</a>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-21067323359677237182009-12-08T10:50:19.877+05:302009-12-08T10:50:19.877+05:30तबियत अभी तक़ ठीक नही हुई।कल भी आधी रात को खांसी के...तबियत अभी तक़ ठीक नही हुई।कल भी आधी रात को खांसी के मस्त वाले दौरे से टूटी नींद का फ़ायदा उठा कर मैने ब्लाग की दुनिया की सैर की थी मगर खूब लम्बा शायद पोस्ट से भी बडा कमेण्ट टेक्निकल प्राबल्म के कारण पब्लिश नही हो पाया।खैर अभी उठ रहा हूं और सबसे पहले वही काम रिपीट कर रहा हूं।अय्यर दरअसल मेरी दुर्ग आने की हिम्मत ही नही थी।तबियत भी खराब थी इसलिये ललित को पहले ही मना कर दिया था मगर जब तुम्हारा फ़ोन आया तो खुद को रोक नही पाया और अच्छा हुआ वंहा आ गया,नही तो बहुत कुछ खो देता।तुमसे मिले भी काफ़ी समय हो गया था सो तुमसे मिलने का लालच संवार नही पाया।हो सकता है ये बात बाकी ब्लागर भाईयों को बुरी भी लगे मगर सच यही है कि मैं तुमसे मिलने का मौका खोना नही चाहता था।और वंहा आकर तो ऐसा लगा जैसे कुछ किलोमीटर नही कई साल दूर चले आया हूं।अय्यर वैसा का वैसा ही सीधा-सपाट गंभीरता और ईमानदारी से अपनी बात रखने वाला और हम लोग भी वैसे ही हर बात को हवा मे उड़ा देने वाले।बेमेल स्वाभाव और विचाराधाराओं के बावज़ूद मित्रता का वो अटूट रिश्ता और उसमे साईंस कालेज के बाहर तिवारी कैंटिन की चाय और समोसे का शुद्ध प्यार वैसा का वैसा ही मिला।मैं थोड़ा बदला ज़रूर हूं पर उसे वक़्त की डिमांड या सीधे-सीधे कहे तो वक़्त की मार भी कह सकते हैं।राज्य बनने के बाद पत्रकारिता और भी कठिन हो गई है।सिद्धांत,ईमानदारी और अक्खड़पन देखने या दिखाने के लिये तुम्हारे जैसे लोगों को ढूंढना पड़ता है।बहुत कुछ बदला है,तुम रायपुर से दुर्ग आ गये हो,मुलाकात भी कम हो गई है।उस दुर्ग जंहा कालेज केसमय हर सप्ताह नई फ़िल्म देखने के लिये बिना टिकट रेल से जाया करते थे अब खुद की गाड़ियां होने के बाद आ नही पाते।जाने दो मैं भी साला ट्रेक से उतर रहा हूं।एक बात ज़रूर है अय्यर तुमसे मिलने के बाद जो बातों का सिलसिला शुरू हुआ और सभी ब्लागर्स का प्यार मिला,शरद भाई के घर जो अपनापन मिला उसने मुझे और कंही जाने ही नही दिया।रास्ते भर लौटते समय वही सब दिमाग मे घूमता रहा और एक सवाल भी,आखिर क्यों ब्लाग या नेट की दुनिया को आभासी कहते हैं?मुझे तो ये हक़ीक़त से अच्छी दुनिया लगी।हां एक बात और तुम जितना अच्छा नाटक,हा हा हा हा हा अरे वही तुम्हारा रंगकर्म कर लेते हो उतना ही अच्छा लिख भी लेते हो।मुझे विश्वास है तुम लगातार लिखते रहोगे तो हम जैसों को हवा मे बात उड़ाने का मौका नही मिलेगा,कुछ अच्छा भी पढने मिलेगा।ये साला फ़िर से लम्बा हो गया है कमेण्ट लगता है।बहुत कुछ बाकी है कहने को अब मिल्कर ही कहूंगा।Anil Pusadkarhttps://www.blogger.com/profile/02001201296763365195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-55611070880653540972009-12-07T23:13:34.419+05:302009-12-07T23:13:34.419+05:30अनिल जी और आपकी बातचीत में शामिल नहीं हो पाया, शरद...अनिल जी और आपकी बातचीत में शामिल नहीं हो पाया, शरद जी के घर पर<br /><br />शरद जी के पीसी से दोस्ती कर रहा था मैं, वरना शरद जी आने नहीं देते मुझे वहाँ से :-)<br /><br />कितना सच कहा है आपने कि ब्लाग की दुनिया बहुत नयी है, और हर बार इसके भीतर प्रवेश करना एक ऐसी जानी पहचानी गुफा में रोज जाने जैसा है जो हर रोज बदल जाती है।<br /><br />आपकी लेखन शैली ने प्रभावित किया। आप जैसा संवेदनशील रंगकर्मी नियमित लेखन करे तो हम जैसे नादान भी कुछ सीख पाएँ<br /><br />आशा करता हूँ कि अपनी व्यस्तता के बीच लेखन जारी रखेंगे ब्लॉग पर<br /><br /><a href="http://www.google.com/profiles/bspabla" rel="nofollow"> बी एस पाबला</a>Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-12037694871936867542009-12-07T21:12:00.205+05:302009-12-07T21:12:00.205+05:30अय्यर आज तेरी यह पोस्ट पढ़कर मै भी नॉस्टेल्जिक हो र...अय्यर आज तेरी यह पोस्ट पढ़कर मै भी नॉस्टेल्जिक हो रहा हूँ ..और मुझे भी बार बार बचपन का शहर भंडारा याद आ रहा है .. और यह भी संयोग है कि आज बरसों बाद मेरे एक स्कूल लाइफ के दोस्त मोबीन का फोन आया ..। मुझे शरद बिल्लोरे की यह कविता याद आ रही है........ शहर आया अंत तक साथ और लौटा नहीं । अपने घर में अनिल भाई और तुम्हारी बातें सुन रहा था फिर अनिल भाई ने और बचपन के दोस्तों से बात की मुझे यह सब बहुत अच्छा लगा .. यह सिलसिला यूँही चलता रहे ...शरद कोकासhttps://www.blogger.com/profile/09435360513561915427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-49392831175132513432009-12-07T20:58:48.519+05:302009-12-07T20:58:48.519+05:30बडे भाई आपकी पाठकीय रूचि और लेखन की गंभरता से वाकि...बडे भाई आपकी पाठकीय रूचि और लेखन की गंभरता से वाकिफ हूं हिन्दी ब्लाग जगत शुरूआती दिनों में आपको कुछ अटपटी और कम्यूनिटी वेबसाईट के स्क्रैपों सी लग सकती है यही हम सब ब्लागरों को आपस में जोडे रखती है. इससे परे आप यकीन मानिये यहां आपकी रूचि अनुसार सामाग्री और पाठक दोनों मिलेंगें.<br /><br />अनिल पुसदकर जी तो हमारे ब्लागजगत के नगीने हैं, आपकी पुरानी मित्रता के संबंध में पढकर अच्छा लगा. आभार आपका आपने कलम उठाया. हैप्पी ब्लागिंग.36solutionshttps://www.blogger.com/profile/03839571548915324084noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-10519019916157712952009-12-07T20:56:45.385+05:302009-12-07T20:56:45.385+05:30अनिल जी से मुलाकात की तमन्ना है. फोन पर जरुर बात ह...अनिल जी से मुलाकात की तमन्ना है. फोन पर जरुर बात है...इन्जार में एक जल्द मुलाकात है.Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-28919289670820207982009-12-07T20:37:52.860+05:302009-12-07T20:37:52.860+05:30वाह आपके साथ हम भी नोस्टेलजिक हो गये आपकी पोस्ट पढ...वाह आपके साथ हम भी नोस्टेलजिक हो गये आपकी पोस्ट पढ के ...बहुत खूब ..यारों की महफ़िल की रौनक ही और होती है ...और पाबला जी का कैमरा साथ हो तो फ़िर सोने पे सुहागा ..<br />बढिया रहा ...आप लोगों का मिलनअजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1800578818916214815.post-49227737820887351272009-12-07T20:21:45.756+05:302009-12-07T20:21:45.756+05:30अय्यर भैया, अनिल भाई जैसा यारों का यार भी इस जमाने...अय्यर भैया, अनिल भाई जैसा यारों का यार भी इस जमाने मे मिलना बहुत मुस्किल है, मुझे एक बात उनकी सबसे ज्यादा पसंद आती है वो है, अक्खड़पन और सीधी बात, कल रात को उनका फ़ोन करके मेरे घर पहुँचने की जानकारी लेना दिल को छु गया। हमारे "ब्लागर परिवार" के सारे ही "परिजन" एक से एक "रतन" हैं, नि:संदेह, आभारब्लॉ.ललित शर्माhttps://www.blogger.com/profile/09784276654633707541noreply@blogger.com