शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009

नौकरी में सफलता के सूत्र- जरुर पढिये बड़े काम के हैं

ललित शर्मा 


सुबह-सुबह मैं काम पर निकला तो देखा तो अपनी तम्बाखू-चुनौटी घर पर ही भूल आया, चलो आगे "छलिया" की दुकान से ले लेंगे-सोचा. जब दुकान पर पंहुचा तो देखते ही छलिया बोला 
" राम-राम महाराज चल दिये का ड्यूटी मा"?
"राम-राम भाई......हाँ यार जाना तो है ही, चाहे बरसात हो या ओले गिरे या आग लगे ..... पापी पेट का सवाल है" 
"हाँ भैया....... पापी पेट की खातिर तो सब करे के लागी.......पान लगाओं"
"लगाओ......... और तम्बाखू चुना भी दे देना हम अपनी चुनौटी घर में ही भूल आये"
"लीजिये भैया........ हमने पान छलिया के हाथ से लिया ही था कि सुनाई दिया......"पाय लगी महाराज........चल दिये ड्यूटी में" हमने गर्दन घुमाई तो देखा हमारी यूनियन के लीडर पी.पी.लाल जी थे. जो मॉल खा पी के लाल हो गए थे, नौकरी में तो जाते नहीं थे. यही पान दुकान या होटल के पास घूमते रहते थे, कोई ना कोई बकरा मिल ही जाता था, खाने पीने से लेकर सारा खर्च  उसी से निकाल लेते थे. उनकी तो रोज पार्टी जैसी ही रहती थी, आज फंदे में हम फांस लिए गये थे, 
पी.पी लाल खीसें निपोर रहे थे........."हे हे हे....मैंने आपको देखा तो महाराज सोच कि पै लागी हो जाये......... आपके आशीर्वाद से दिन बढ़िया निकल जाता है".
मैं मन ही मन सोच रहा था........आज साला मुझे ही"बकरा' फांस रहा है. और कुछ नहीं तो पान तो खिलाना ही पड़ेगा, 
मैंने झूठी मुस्कान चेहरे पर लाते हुए कहा........ "बहुत ही बढ़िया सोच है" आओ क्या लेंगे......"अरे पान लगा रे नेताजी का"
"एक पान लगा देना ....... १० पान बांध देना साथ में...... बाबा १२० का एक पाउच भी दे देना............. कौन दिन भर यही पान बनवाने का लफडा करे' पी.पी.लाल जी ने कहा.......
"अरे जल्दी कर रे छलिया........ मेरे बस का टाइम हो गया है......... आती ही होगी........... ये नेता जी क्या है.......... भाई इनको कोई भी कुछ नहीं कहता ........आफिस जाएँ तब ठीक है...... नहीं जाये तो तो ठीक है....... हमारा अधिकारी जरा कडक है.........थोडा सा लेट होने पर सीधा कारण बताओ नोटिस जारी करता है"
"अरे आप कहे चिंता करते हैं, महाराज हम तो हैं, अफसरों के अफसर"
"पी.पी.लाल जी आपका कुछ नहीं बिगडेगा लेकिन मेरी तो वाट लग जायेगी
"आप चिंता ना करे....... मुंह से लार टपकाते हुए बोले...... हम आपको आज गुरु मंत्र दे ही देते हैं....... जिसके सहारे हमने २८ साल की नौकरी पूरी कर ली."
मुझे उनकी बात सुनकर थोडा अच्छा लगा........ चलो ५० रूपये के खर्च में "गुप्त ज्ञान" तो मिल जायेगा...... घाटे का सौदा नहीं रहेगा........." बताओ भाई" ........ मैंने उतावला होते हुए कहा....... क्योंकि आफिस जाने की पडी थी....... बस भी आ चुकी थी.
पी.पी. लाल ने मेरे कंधे पर हाथ रखा...................... कुछ दूर ले गये....... "मैं ६ सूत्रीय कार्यक्रम बता रहा हूँ महाराज... गांठ बांध लो, हमेशा ऐश ही करोगे,"
"बता भाई जल्दी"
पहला..सूत्र........बने रहो पगला------------------ काम करेगा अगला,

दूसरा सूत्र..........बने रहो फूल-------- ------------तनखा पाओ फुल,
तीसरा सूत्र........मत लो टेंशन-----------------नहीं तो फेमली पायेगी पेंशन,
चौथा सूत्र...........काम से डरो नही----------------और काम करो नहीं,
पांचवा सूत्र.........काम करो या ना करो---------पर उसकी फिकर जरुर करो,
छठवा सूत्र.........और फिकर करो या ना करो-----उसका जिक्र जरुर करो,
"ये नौकरी में सफलता के ६ सूत्र हैं........ जिनका पालन करके मैं अपनी तो नौकरी बजा ली"
'धन्य हो भैया.......आपने बहुत उपकार किया मेरे उपर.......ये सूत्र मैं अपने अजीज साथियों के साथ बाँटना चाहूँगा ....... आपका कोई कापी राईट या पेटेंट तो नहीं है ना इसके उपर"
"नहीं-नहीं ये तो सफलता के सूत्र हैं.......... आप इसे नए साल के कलेंडर में छपवा कर बाँट सकते हो....लेकिन मेरा फोटू लगाना मत भूलना.......इतने सालों की नौकरी का निचोड़ है इसमें मेरा"
मैंने पी.पी. लाल जी को एक बार फिर धन्यवाद दिया....... मेरी बस आ चुकी थी.........मैं चल पड़ा .....अपनी ड्यूटी पर..........


ललित शर्मा

6 टिप्पणियाँ:

समयचक्र 30 अक्तूबर 2009 को 9:27 pm बजे  

बिलकुल सटीक व्यंग्य . बधाई .

राजीव तनेजा 31 अक्तूबर 2009 को 7:11 am बजे  

बढिया व्यंग्य

कुश 31 अक्तूबर 2009 को 10:31 am बजे  

बड़े काम के है ये सूत्र तो.. :)

Anil Pusadkar 31 अक्तूबर 2009 को 12:00 pm बजे  

अपना काम भी उन्ही मंत्रो से चल रहा है।

Arshia Ali 31 अक्तूबर 2009 को 3:00 pm बजे  

बढिया बढिया बाते बताने का बहुतै शुक्रिया।
--------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक।
चार्वाक: जिसे धर्मराज के सामने पीट-पीट कर मार डाला गया।

Udan Tashtari 31 अक्तूबर 2009 को 8:10 pm बजे  

सटीक सूत्र है..अब चलता हूँ काम की फिकर हो रही है, यह जिकर करता आऊँ.