रविवार, 15 अगस्त 2010

स्वतंत्रता के छह दशक-क्या खोया क्या पाया -राजीव तनेजा

***राजीव तनेजा***


कहने को तो आज साठ साल से  ज़्यादा हो चुके हैँ हमें पराधीनता की बेड़ियाँ तोड़ आज़ाद हुए लेकिन क्या आज भी हम सही मायने में आज़ाद हैँ? मेरे ख्याल से नहीं।
बेशक!...हमने छोटे से लेकर बड़े तक...हर क्षेत्र में खूब तरक्की की है लेकिन क्यों आज भी हम इटैलियन पिज़्ज़ा खाने को तथा सिंगापुर,मलेशिया,बैंकाक तथा दुबई और मॉरिशस में छुट्टियाँ मनाने को उतावले रहते हैँ?
  • संचार क्रांति की बदौलत हमारे देश में मोबाईल धारकों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढती जा रही है लेकिन मोबाईल सैट अभी भी क्यों बाहरले देशों से ही बन कर आते हैँ?
  • आज सैंकड़ों देसी चैनल हमारे मनोरंजन के लिए उपलब्ध हैँ लेकिन उनकी ब्राडकास्टिंग दूसरे देशों द्वारा उपलब्ध कराए गए उपग्रहों द्वारा ही क्यों होती है?
  • ये सच है कि हमारे कल-कारखानों में एक से एक ...उम्दा से उम्दा आईटम तैयार होती है लेकिन फिर भी हम खिलौनों से लेकर कपड़े तक और प्लाईबोर्ड से लेकर रैडीमेड दरवाज़ों तक हर सामान को चीन से आयात कर गर्व तथा खुशी क्यों महसूस करते हैँ?
  • क्यों आज हम में से बहुत से लोग हिन्दी जानने के बावजूद अँग्रेज़ी में बात करना पसन्द करते हैँ?....
  • हिन्दी के राष्ट्रीय भाषा होने के बावजूद क्यों हम अँग्रेज़ी के गुलाम बने बैठे हैँ?
  • आज हमारे देश का आम आदमी अपने देश के लिए काम करने के बजाय क्यों बाहरले देशों में बस अपना भविष्य उज्जवल करना चाहता है?
  • आज दुनिया भर के होनहार लोगों के होते हुए भी हमें आधुनिक तकनीक के लिए बाहरले देशों का मुँह ताकना पड़ता है तो क्यों?
  • आज हमसे...हमारी ही संसद में सवाल पूछने के नाम पे पैसा मांगा जाता है तो क्यों?
  • क्यों खनिज पदार्थों के अंबार पे बैठे होने के बावजूद हमें बिजली उत्पादन के लिए यूरेनियम से लेकर तकनीक तक के लिए अमेरिका सहित तमाम देशों का पिच्छलग्गू बनना पड़ता है?
  • आज अपनी मर्ज़ी से हम अपना नेता...अपनी सरकार चुन सकते हैँ लेकिन फिर भी किसी वोटर को चन्द रुपयों और दारू के बदले बिकते देखना पड़ता है तो क्यों?

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