बुधवार, 26 मई 2010

असली ज़लज़ला कौन?

 

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शनिवार, 15 मई 2010

गिरी्श दादा जहां कहीं भी हो चले आओ-(गुमशुदा की तलाश)---------ललित शर्मा

पान की दुकान पर निरंतर चर्चा चल रही है कि आप कहां चले गये, लोग कयास लगा रहे हैं। हमारा निवेदन है कि आप जहां कहीं भी हो लौट आओ, आपके जाने से हमें बहुत ही झटका लगा है। आपने ब्लाग जगत को पॉडकास्टर बन कर अपनी अनमोल सेवाएं दी हैं, जिसके लिए हम आभारी हैं। ऐसी कौन सी बात थी? जिससे आप आहत होकर ब्लागिंग छोड़ चले, हमारी तो समझ में ही नहीं आया। सब कुछ ठीक चल रहा था फ़िर आपने अचानक ऐसा निर्णय क्यों लिया? जब से आप गए हैं तब से हमारा भी मन नही  लग रहा है और आपने जिससे पॉडकास्ट इंटरव्यु का वादा किया था उसके फ़ोन हमारे पास आ रहे हैं कि दादा ने हमारा पॉडकास्ट इंटरव्यु लेने का वादा किया था, लेकिन अब बताइए कैसे होगा इंटरव्यु? वो बहुत गमगीन है। 

आप वीर पुरुष हैं छोटी मोटी बाधाओं से घबराकर जाना ठीक नहीं है, ब्लागिंग का मूलमंत्र "सुरेश चिपलुनकर भाई से साभार" हम मिसफ़िट पर छोड़ आए हैं, समय मिले तो पढ लेना, नई तुफ़ानी उर्जा देगा, शरीर में जोश भर देगा, नई ताजगी के साथ, अनुभूत नुख्शा है, हम उसका सेवन कर रहे हैं, आप भी करके देखिए, लाभ होने का शर्तिया दावा है, न होने पर पैसे वापस, वैसे भी कल अक्षय तृ्तीया है भगवान परशुराम जयंती मनाई जा रही है, जुलुस निकाला जा रहा है सर्व ब्राह्मण समाज के द्वारा, मेरे पास मैसेज और निमंत्रण दोनो आया है। उसमें आपको शामिल होना जरुरी है।

मिसिर जी भी हलकान हैं, इधर वे घर के काम में व्यस्त है और आपने मौके का फ़ायदा उठाकर राम राम कह दि्या और तो और सारे सम्पर्क सुत्र भी तोड़ लिए, आपके वो मोबाईल फ़ोन की घंटी जो सुर में बजती थी अब नहीं बज रही है। उसपर भी ताला लग गया है। राज भाटिया दादाजी कह रहे थे कि बहु्त गर्मी है और बैशाख का महीना है नौतपे लगने वाले हैं, इस समय टंकी पर चढना ठीक नहीं है लू भी लग सकती है जिससे स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है, वैसे टंकी पर गर्मी भी बहुत है। निर्माता ने वहां एसी कूलर की व्यवस्था नहीं की है क्योंकि टंकी पर सर्वहारा वर्ग ही चढता है, सामंतो को कहां फ़ुरसत है टंकी पर चढने की, वे तो नीचे एसी कमरे में बैठ कर टंकी को दूरबीन से निहारते रहते हैं कि कौन मरदूद चढा है।

दादा जी हम समझ सकते हैं आपका दर्द क्योंकि ये तकलीफ़ हमने भी झेली है। इससे पहले कि आपको कोई डॉक्टर पागल या ब्लागोमेनिया का मरीज करार कर दे, जहां भी हो जैसे भी चले आओ। अम्मा बहुत परेशान हैं उनकी तबियत भी खराब हो सकती है, आपके बिना भैंस ने दूध देना बंद कर दिया है, कहती है कि पहले गिरीश दादा जी को लेकर आईए, इसलिए अम्मा को भी दूध नही मिल रहा है, बहुत कमजोर हो गयी हैं। आपका वह चपरासी भी मिला था जिससे आपने सहृदयता दिखाते हुए माफ़ी मांगी थी, कह रहा था कि साहब जब से बिना बताए गए हैं तब से हम भी आफ़िस नहीं जा रहे हैं। सारा काम ठप्प हो गया है।

इसलिए मेरा आग्रह है कि इस वक्त जहां भी हो जैसे भी हो उसी हालत में चले आओ कोई कु्छ नहीं कहेगा और इस आशय का इस्तेहार कल के अखबार की "गुमशुदा की तलाश" कालम में देने का विचार कुछ आपके चाहने वाले कर रहे थे, जहां भी हो चले आओ..................

आपका
अनुज

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